तनोट
माता मंदिर (जैसलमेर) - जहा पाकिस्तान के गिराए ३००० बम हुए थे बेअसर।
तनोट
माता का मंदिर जैसलमेर से करीब १३० किलो मीटर दूर भारत - पाकिस्तान बॉर्डर
के निकट स्थित है। यह मंदिर लगभग १२०० वर्ष पुराना है। वैसे तो यह
मंदिर सदैव ही आस्था का केंद्र रहा है पर १९६५ के भारत - पाकिस्तान युद्ध
के बाद यह मंदिर देश - विदेश में अपने चमत्कारों के लिए प्रशिद्ध हो
गया। १९६५ कि लड़ाई में पाकिस्तानी सेना कि ओर से
गिराए गए करीब ३००० बम भी इस मंदिर पर खरोच
तक नहीं ला सके, यहाँ तक कि मंदिर परिसर में गिरे १५० बम तो
फटे तक नहीं। ये बम अब मंदिर परिसर में बने एक संग्रहालय में भक्तो के दर्शन
के लिए रखे हुए हैँ। १९६५ कि लड़ाई के बाद इस मंदिर का
जिम्मा सीमा सुरक्षा बल ( BSF ) ने ले लिया
और यहाँ अपनी एक चोकी भी बना ली। इतना ही नहीं एक
बार फिर ४ दिसंबर १९७१ कि रात को पंजाब रेजिमेंट और सीमा
सुरक्षा बल कि एक कंपनी ने माँ कि कृपा से लोंगेवाला में पाकिस्तान कि
पूरी टैंक रेजिमेंट को धूल चटा दी थी और लोंगेवाला को पाकिस्तानी टैंको
का कब्रिस्तान बना दिया था। लोंगेवाला भी तनोट माता के पास ही है। लोंगेवाला
कि विजय के बाद मंदिर परिदसर में एक विजय स्तंभ का निर्माण किया
गया जहा अब हर वर्ष १६ दिसंबर को सैनिको कि याद में उत्सव मनाया जाता
है। तनोट माता को आवड माता के नाम से भी जाना जाता
है तथा यह हिंगलाज माता का ही एक रूप है।
हिंगलाज माता का शक्तिपीठ पाकिस्तान के बलूचिस्तान में है।
हर वर्ष आश्विन और चैत्र नवरात्र में यहाँ विशाल मेले का आयोजन किया जाता
है। तनोट माता मंदिर का इतिहास :- बहुत
पहले मामडिया नाम के एक चारण थे। उनकी कोई संतान नहीं थी। संतान प्राप्त
करने की लालसा में उन्होंने हिंगलाज शक्तिपीठ की सात बार पैदल यात्रा
की। एक बार माता ने स्वप्न में आकर उनकी इच्छा पूछी तो चारण ने कहा
कि आप मेरे यहाँ जन्म लें। माता कि कृपा से
चारण के यहाँ ७ पुत्रियों और एक पुत्र ने जन्म लिया। उन्हीं
सात पुत्रियों में से एक आवड़ ने विक्रम संवत ८०८ में चारण के यहाँ
जन्म लिया और अपने चमत्कार दिखाना शुरू किया। सातों पुत्रियाँ देवीय चमत्कारों
से युक्त थी। उन्होंने हूणों के आक्रमण से माड़ प्रदेश की रक्षा
की। काँस्टेबल कालिकांत सिन्हा जो तनोट चौकी पर
पिछले चार साल से पदस्थ हैं कहते हैं कि
माता बहुत शक्तिशाली है और मेरी हर मनोकामना पूर्ण करती है। हमारे
सिर पर हमेशा माता की कृपा बनी रहती है। दुश्मन हमारा बाल भी बाँका नहीं
कर सकता है। माड़ प्रदेश में आवड़ माता की कृपा से
भाटी राजपूतों का सुदृढ़ राज्य स्थापित हो गया।
राजा तणुराव भाटी ने इस स्थान को अपनी राजधानी बनाया और आवड़
माता को स्वर्ण सिंहासन भेंट किया। विक्रम संवत ८२८ ईस्वी में आवड़ माता
ने अपने भौतिक शरीर के रहते हुए यहाँ अपनी स्थापना की। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
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