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सभी को शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएँ ॥ॐ॥
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शारदीय नवरात्र
प्रारम्भ – देवी भागवत में आता है कि विद्या, धन
और पुत्र के अभिलाषी को नवरात्र-व्रत का अनुष्ठान करना चाहिए ।
पूरे 9 दिन उपवास न कर सके तो सप्तमी, अष्टमी और नवमीं
तीन दिन उपवास करके देवी की पूजा करने से सम्पूर्ण
नवरात्र के उपवास का फल मिलता है । (ऋ.प्र. सितम्बर 2005, अंक
– 153, पृ. – 11)
१
अक्टूबर : शारदीय नवरात्र प्रारम्भ
सुख-समृद्धि प्रधायक :
नवरात्र-व्रत (नवरात्र
: १ से ११ अक्टूबर) प्राचीन समय की बात है - एक वैश्य
निर्धनता के कारण बहुत दुःखी था । बडी कठिनाई से वह
कुटुम्ब का भरण-पोषण करता था । इस कारण उसके मन में अपार चिता
रहती पर वह धर्म में सदैव तत्पर रहता था । वह कभी भी असत्य भाषण नहीं
करनेवाला व बडा ही सदाचारी था । वह सदैव धैर्य से कार्य करता व मन में
अहंकार, डाह तथा क्रोध नहीं आने देता था । इन्हीं उत्तम
गुणों के कारण उसका नाम सुशील रख दिया गया था । एक
दिन दरिद्रता से अत्यधिक घबराकर उसने एक शांतस्वभाव मुनि से पूछा : ''ब्राह्मण
देवता ! आपकी बुद्धि बडी विलक्षण है । कृपा करके आप यह बताइये कि
मेरी दरिद्रता कैसे दूर हो सकती है । मेरी छोटी बच्ची और बच्चे भोजन के
लिए रोते रहते हैं । मेरी एक लडकी विवाह के योग्य हो गयी है । मेरे पास
धन नहीं है, मैं क्या करूँ ? कोई भी ऐसा उपाय
बताइये, जिससे मैं अपने आश्रितजनों
का भरण-पोषण सुचारु रूप से कर सकूँ । बस, मुझे इतना ही धन चाहिए
। दयानिधे ! आपकी कृपा से मेरा परिवार सुखी हो जाय । मुनि
ने कहा : ''वैश्यवर ! तुम श्रेष्ठ नवरात्र-व्रत करो ।
भगवान श्रीराम राज्य से च्युत हो गये थे व उन्हें
सीताजी का वियोग हो गया था । उस समय किष्किन्धा में
उन्होंने यह व्रत कर भगवती जगदम्बा की उपासना की । फिर महाबली
रावण का वध किया तथा जनकनंदिनी सीताजी व निष्कंटक राज्य को पाया । यह
सब नवरात्र-व्रत के प्रभाव से ही हुआ था । मुनि की यह बात
सुनकर सुशील ने उन्हें अपना गुरु बना लिया और उनसे भगवती के
मंत्र की दीक्षा ले ली । फिर नवरात्र-व्रत करके संयमपूर्वक उत्तम भक्ति
के साथ उसने जप आरंभ कर दिया । आदरपूर्वक माँ भवानी की आराधना की । नौ
वर्षों के प्रत्येक नवरात्र में देवी का पूजन करके उसने मंत्र का जप किया
। नौवें वर्ष के नवरात्र में अष्टमी के दिन आधी रात के समय भगवती ने प्रकट
होकर उस वैश्य को दर्शन दिये तथा विविध प्रकार के वर देकर कृतकृत्य कर
दिया । किसी कठिन परिस्थिति में पडने पर व्यक्ति को यह
व्रत अवश्य करना चाहिए । विश्वामित्रजी, भृगु
ऋषि, वसिष्ठजी और कश्यप ऋषि ने भी इस व्रत का अनुष्ठान
किया था । वृत्रासुर का वध करने के लिए इन्द्र तथा त्रिपुर-वध के
लिए भगवान शंकर भी इस उत्कृष्ट व्रत का अनुष्ठान कर चुके हैं । मधु दैत्य
को मारने के लिए भगवान श्रीहरि ने सुमेरुगिरि पर यह व्रत किया था । नवरात्र-व्रत
पापनाशक है । इसमें उपवास करके देवी भगवती की पूजा, जप व होम
करने से उत्तम फल की प्राप्ति होती है । धर्म, अर्थ, काम
व मोक्ष - इन चारों की अभिलाषा करनेवाले को यह उत्तम व्रत
अवश्य करना चाहिए । (लोक कल्याण सेतु : सितम्बर २००५) ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ
माँ दुर्गा की पूजा कैसे करेँ??! https://www.youtube.com/watch?v=Q-098i83Pyw
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