तुलसी की जीवन में महत्ता व उपयोगिता

(तुलसी पूजन दिवस: 25 दिसम्बर)
तुलसी धार्मिक, आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दृष्टि से मानव-जीवन के लिए सब प्रकार से कल्याणकारी है । इसीलिए प्रायः प्रत्येक सुसंस्कृत परिवार के घर में तुलसी-पौधा अवश्य पाया जाता है । पूर्वकाल में तुलसी-पौधा हर घर में होता था ।
घर-घर में होती है तुलसी-पूजा
गाँवों में तो घर-घर में मिट्टी के चबूतरे पर तुलसी-पौधा लगाकर स्त्रियाँ प्रायः प्रतिदिन पूजा करती व अर्घ्य देती हैं तथा सायंकाल दीपक दिखाती-चढ़ाती हैं । तुलसीजी से प्रार्थना करती हैं कि ‘हमें सुख-समृद्धि, दीर्घायु, सौभाग्य, भगवत्प्रीति आदि प्रदान करें ।’ घर के अन्य सदस्य भी पूजा-अर्चना करते हैं । खास अवसरों पर तुलसीजी की पूजादि एवं आनुष्ठानिक कार्यक्रम विशेष रूप से आयोजित किये जाते हैं तथा तुलसी-पत्तों का प्रसादरूप में वितरण किया जाता है । चरणामृत में तो निश्चित रूप से तुलसी-पत्ते डाले जाते हैं ।
तुलसी-पूजन का राज
‘स्कंद पुराण’ (का. खं. : 21.66) में आता है :
तुलसी यस्य भवने प्रत्यहं परिपूज्यते ।
तद्गृहं नोपसर्पन्ति कदाचित् यमकिंकराः ।।
‘जिस घर में तुलसी-पौधा विराजित हो, लगाया गया हो, पूजित हो, उस घर में यमदूत कभी भी नहीं आ सकते ।’
अर्थात् जहाँ तुलसी-पौधा रोपा गया है, वहाँ बीमारियाँ नहीं हो सकतीं क्योंकि तुलसी-पौधा अपने आसपास के समस्त रोगाणुओं, विषाणुओं को नष्ट कर देता है एवं 24 घंटे शुद्ध हवा देता है । जिस घर में तुलसी के पर्याप्त पौधे लगाये गये हों वहाँ निरोगता रहती है, साथ ही वहाँ सर्प, बिच्छू, कीड़े-मकोड़े आदि नहीं फटकते । इस प्रकार तीर्थ जैसा पावन वह स्थान सब प्रकार से सुरक्षित रहकर निवास-योग्य माना जाता है । वहाँ दीर्घायु प्राप्त होती है ।
पूज्य बापूजी कहते हैं : ‘‘तुलसी निर्दोष है । हर घर में तुलसी के 1-2 पौधे होने ही चाहिए और सुबह तुलसी के दर्शन करो । उसके आगे बैठ के लम्बे श्वास लो और छोड़ो, स्वास्थ्य अच्छा रहेगा, दमा दूर रहेगा अथवा दमे की बीमारी की सम्भावना कम हो जायेगी । तुलसी को स्पर्श करके आती हुई हवा रोगप्रतिकारक शक्ति बढ़ाती है और तमाम रोग व हानिकारक जीवाणुओं को दूर रखती है ।’’
तुलसी को आवास के पास लगाने की इतनी अधिक महत्ता है कि सीताजी एवं लक्ष्मणजी ने भी इसे अपनी पर्णकुटी के आसपास लगाया था ।
तत्त्वदर्शी ऋषि-महर्षियों ने तुलसी में समस्त गुणों को परखकर इसमें देवत्व एवं मातृत्व को देखा । अतः देवत्व एवं मातृत्व का प्रतीक मानकर इसकी पूजा-अर्चना तथा पौधा लगाने का विशेष प्रावधान किया गया ।
तुलसी माहात्म्य
‘ब्रह्मवैवर्त पुराण’ (प्रकृति खंड : 21.34) में भगवान नारायण कहते हैं : ‘हे वरानने ! तीनों लोकों में देव-पूजन के उपयोग में आनेवाले सभी पुष्पों और पत्रों में तुलसी प्रधान होगी ।’
‘श्रीमद् देवी भागवत’ (9.25.42-43) में भी आता है : ‘पुष्पों में किसीसे भी जिनकी तुलना नहीं है, जिनका महत्त्व वेदों में वर्णित है, जो सभी अवस्थाओं में सदा पवित्र बनी रहती हैं, जो तुलसी नाम से प्रसिद्ध हैं, जो भगवान के लिए शिरोधार्य हैं, सबकी अभीष्ट हैं तथा जो सम्पूर्ण जगत को पवित्र करनेवाली हैं, उन जीवन्मुक्त, मुक्तिदायिनी तथा श्रीहरि की भक्ति प्रदान करनेवाली भगवती तुलसी की मैं उपासना करता हूँ ।’
तुलसी रोपने तथा उसे दूध से सींचने पर स्थिर लक्ष्मी की प्राप्ति होती है । तुलसी की मिट्टी का तिलक लगाने से तेजस्विता बढ़ती है ।
पूज्यश्री कहते हैं : ‘‘तुलसी के पत्ते त्रिदोषनाशक हैं, इनका कोई दुष्प्रभाव नहीं है । 5-7 पत्ते रोज ले सकते हैं । तुलसी दिल-दिमाग को बहुत फायदा करती है । मानो ईश्वर की तरफ से आरोग्य की संजीवनी है ‘संजीवनी तुलसी’ । मेरे को तो बहुत फायदा हुआ ।
भोजन के पहले अथवा बाद में तुलसी-पत्ते लेते हो तो स्वास्थ्य के लिए, वायु व कफ शमन के लिए तुलसी औषधि का काम करती है । खड़े-खड़े या चलते-चलते तुलसी-पत्ते खा सकते हैं लेकिन और चीज खाना शास्त्र-विहित नहीं है, अपने हित में नहीं है ।
दूध के साथ तुलसी वर्जित है, बाकी पानी, दही, भोजन आदि हर चीज के साथ तुलसी ले सकते हैं । रविवार को तुलसी ताप उत्पन्न करती है इसलिए रविवार को तुलसी न तोड़ें, न खायें । 7 दिन तक तुलसी-पत्ते बासी नहीं माने जाते ।
विज्ञान का आविष्कार इस बात को स्पष्ट करने में सफल हुआ है कि तुलसी में विद्युत-तत्त्व उपजाने और शरीर में विद्युत-तत्त्व को सजग रखने का अद्भुत सामर्थ्य है । थोड़ा तुलसी-रस लेकर तेल की तरह थोड़ी मालिश करें तो विद्युत-प्रवाह अच्छा चलेगा ।’’
तुलसी की वृद्धि व सुरक्षा के उपाय
यदि तुलसी-दल को तोड़ें तो उसकी मंजरी और पास के पत्ते तोड़ने चाहिए जिससे पौधे की बढ़ोतरी अधिक हो । मंजरी तोड़ने से पौधा खूब बढ़ता है ।
यदि पत्तों में छेद दिखाई देने लगे तो गौ-गोबर के कंडों की राख कीटनाशक के रूप में प्रयोग करनी चाहिए ।
तुलसी पूजन दिवस’ हुआ विश्वव्यापी
पूज्य बापूजी द्वारा 2014 में शुरू किये गये  ‘तुलसी पूजन दिवस’ ने व्यापक रूप ले लिया है । पाश्चात्य सभ्यता के दुष्प्रभाव से लोग तुलसी की महिमा भूलते जा रहे थे । पूज्यश्री की इस पहल से लोगों में जागृति आयी है और लोग पुनः अपने घरों में तुलसी-पौधा लगा के तथा पूजन कर लौकिक-अलौकिक व आध्यात्मिक लाभ लेने लगे हैं । जो अभी तक इसका लाभ नहीं ले पाये वे भी इस बार से 25 दिसम्बर को अवश्य तुलसी-पूजन कर जीवन को उन्नत व खुशहाल बनायें । 
विश्वगुरु भारत कार्यक्रम
‘‘25 दिसम्बर से 1 जनवरी तक (धनुर्मास के) इन पवित्र दिनों में लोग मांस-दारू खाते-पीते हैं, गुनाह करते हैं तो 25 दिसम्बर को तुलसी-पूजन और 1 जनवरी तक दूसरे पर्व मनाने से समाज की प्रवृत्ति थोड़ी सात्त्विक हो जाय इसलिए यह कार्यक्रम मैंने शुरू कराया ।’’ - पूज्य बापूजी
(कार्यक्रम की रूपरेखा व तुलसी-पूजन विधि तथा तुलसी की उपयोगिता से संबंधित विस्तृत जानकारी हेतु पढ़ें ‘तुलसी रहस्य’ पुस्तक अथवा ऋषि प्रसाददिसम्बर 2015 का अंक)
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