स्वतंत्र भारत में गुलामी क्यों करना ?

प्रख्यात शिक्षाविद् एवं स्वाधीनता संग्राम के सेनानी डॉ. सम्पूर्णानंदजी की भारतीय जीवन-मूल्यों पर अगाध आस्था थी । वे चाहते थे कि भारत राजनीतिक ही नहीं, सांस्कृतिक रूप से भी स्वतंत्र हो और स्वाधीन भारत में भारतीय शिक्षा-प्रणाली लागू हो ।
स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद सम्पूर्णानंदजी उत्तर प्रदेश के शिक्षा मंत्री बने । एक दिन किसी विश्वविद्यालय के कुलपति उनसे मिलने आये । सम्पूर्णानंदजी ने उनसे कहा : ‘‘अंग्रेजों द्वारा चलायी गयी शिक्षा-पद्धति तो केवल भारत के नवयुवकों को पाश्चात्य कल्चर की गुलामी ही सिखाती है ।
कुलपति : ‘‘सर ! बात तो आपकी सही है । आप ऑर्डर दें कि क्या किया जाना चाहिए । बातचीत में जैसे ही कुलपति ने दो-तीन बार ‘सर कहा, वे नाराज हो गये : ‘‘आप कई भाषाओं के विद्वान हैं, एक विश्वविद्यालय के कुलपति हैं और लाखों छात्र-छात्राओं के चरित्र एवं भविष्य निर्माण का दायित्व आपके कंधों पर है फिर भी आप ‘सर-सर की रट लगाकर अंग्रेजियत का बोझ क्यों ढो रहे हैं ?
कुलपति थोडे सहम गये । तब शांत होते हुए सम्पूर्णानंदजी ने कहा : ‘‘अंग्रेजी की शिक्षा ने ही भारतीयों को अंग्रेजों के सामने ‘सर शब्द कहने की सीख दी थी लेकिन अब तो हम सब स्वतंत्र हैं । अब अंग्रेजों की भाषा, उनके रीति-रिवाज, आचार-व्यवहार, खान-पान की गुलामी क्यों करना ? अब तो हमें अपनी संस्कृति के अनुरूप व्यवहार करना सीखना चाहिए ।