राजकुमार
का अदम्य साहस।
पुराने
जमाने की बात है। एक राजा था। उसके
सात लड़के थे। छ: का विवाह हो
गया था। सातवां अभी कुंवारा एक
दिन वह महल में बैठा था कि उसे बड़े जोर
की प्यास लगी। उसने इधर-उधर देखा
तो सामने से उसकी छोटी भाभी आ दीं।
उसने कहा, “भाभी, मुझे
एक गिलास पानी दे दो।” महल
में इतने नौकर-चाकर होते हुए
भी सबसे छोटे राजकुमार की यह हिम्मत
कैसे हुई, भाभी मन-ही मन खीज
उठीं। उन्होंने व्यंग्य भरे स्वर में कहा, “तुम्हारा
इतना ऊंच है तो जाओ, रानी
पद्मिनी को ले आओ।” राजकुमार
ने यह सुना तो उसका पारा चढ़
गया। बोला, “जबतक मैं रानी
पद्मिनी को न आऊंगा, इस
घर का अन्न-जल ग्रहण नहीं
करूंगा।” बात छोटी-सी थी, लेकिन
उसने उग्र रूप धारण कर लिया। रानी
पद्मिनी काले कोसों दूर रहती थी। वहां
पहुंचना आसान न था। रास्ता
बड़ा दूभर था। जंगल, पहाड़, नदी-नाले, समुद्र, जाने
क्या रास्ते में पड़ते थे, किन्तु राजकुमार
तो संकल्प कर चुका था और वह पत्थर
की लकीर के समान था। उसने तत्काल
वजीर के लड़के को बुलवाया और उसे सारी
बात सुनाकर दो घोड़े तैयार करवाने
को कहा। वजीर के लड़के ने उसे बार-बार समझाया
कि रानी प पहुंचना बहुत मुश्किल है, पर
राजकुमार अपनी हठ पर अड़ा
रहा। उसने कहा, “चाहे
कुछ भी हो जाये, बिना
रानी पद्मिन मैं इस महल में पैर नहीं
रक्खूंगा।” दो घोड़े तैयार किये गये, रास्ते
के खाने- पीने के लिए सामान की
व्यवस्था की गई और राजकुमार तथा
वजीर का लड़का रानी पद्म में
निकल पड़े। उन्होंने पता
लगाया तो मालू हुआ कि
रानी पद्मिनी स द्वीप में रहती है, जहां
पहुंचने के लिए सागर पार करना
होता है। फिर रानी का महल चारों
ओर से राक्षसों से घिरा है। उनकी
किलेबंदी को त महल में प्रवेश पाना
असंभव है वजीर के लड़के ने एक बार फिर
राजकुमार को समझाया कि वह अपनी
प्रतिज्ञा को दे अपनी जान को
जोखिम में न डाले, किन्तु राजकुमार
ने कहा, “तीर एक बार तरकश से
छूट जाता है तो वापस नहीं आता। मैं
तो अपने वचन को पूरा करके ही
रहूंगा।” वजीर का
लड़का चुप रह गया। दोनों अपने- अपने
घोड़ों पर सवार होकर रवाना
हो गया। दोपहर को उन्होने एक
अमराई में डेरा डाला। खाना
खाया, थोड़ी देर आराम किया, उसके
बाद आगे बढ़ गये। चलते-चलते दिन
ढलने लगा, गोधूलि की बेला आई। इसी
समय उन्हें सामने एक बहुत बड़ा बाग दिखाई
दिया। राजकुमार ने कहा, “आज
की रात इस बाग में बिताकर कल तड़के
आगे चल पड़ेंगे।” बाग का फाटक खुला
था और वहां कोई चौकीदार या
रक्षक नहीं था। वजीर के लड़के ने उधर निगाह
डालकर कहा, “मुझे तो यहां कोई खतरा
दिखाई देता है। हम लोग यहां
न रुक कर आगे और कहीं रुकेंगे।” राजकुमार
हंस पड़ा। बोला, “बड़े
डरपोक हो तुम! यहां
क्या खतरा हो देखते नहीं, कितना
हरा- भरा सुन्दर बाग है!” वजीर
के लड़के ने कहा, “आप
मानें न मानें, मुझे
तो लग रहा है कि यहां कोई भेद
छिपा है।” राजकुमार ने उसकी
एक न सुनी और अपने घोड़े को फाटक के
अंदर बढ़ा दिया। बेचारा वजीर का
लड़का भी उसके पीछे-पीछे बाग में घुस गया।
ज्योंही वे अंदर पहुंचे कि बाग का
फाटक अपने आप बंद हो गया। राजकुमार
और वजीर के लड़के को
काटो तो खून नहीं। यह क्या
हो गया? वजीर के
लड़के ने राजकुमार से कहा, “मैंने
आपसे कहा था न कि
यहां ठहरना मुना नहीं? पर
आप नहीं माने। उसका
नतीजा देख लिया!” राजकुमार
ने कहा, “वह
सब छोड़ो! अब यह सोचो कि हम क्या
करें” वजीर का
लड़का बोला, “अब तो एक ही
रास्ता है कि हम घोड़ों को यहीं पेड़ों बांध
दें और किसी घने पेड़ के ऊपर चढ़ कर बैठ
जायें। देखें, आगे क्या
होता है।” दोनों ने यही किया। घोड़े
पेड़ से बांध कर वे एक ऊंचे पेड़ पर चढ़ गये
और चुपचाप बैठ गये।
अंधकार
फैल गया। सन्नाटा
छा गया। राजकुमार को नींद आने
लगी। तभी उन्होंने देखा
कि हवा में उड़ता कोई चला आ रहा
है। दोनों कांप उठे। हवा का वेग रुकते
ही वह आकृति नीचे उतरी। उसकी
शक्ल देखते ही दोनों को लगा क पेड़
से नीचे गिर पड़ेंगे। वह एक परी
थी। उसने नीचे खड़े होकर अपने इर्द- गिर्द
देखा। तभी इधर-उधर से कई परियां
आ गईं। उनके हाथों में पानी से भरे बर्तन
थे। उन्होंने वहां छिड़काव किया।
वह पानी नहीं, गुलाबजल था।
उसकी खुशबू से सारा बाग महक उठा। अब
तो उन दोनों की नींद उड़ गई
और वे आंखें गड़ाकर देखने लगे कि आगे वे क्या
करती हैं। हवा में उड़ती एक परी
आ रही थी उसी समय कुछ
परियां और आ गईं। उनके हाथों में कीमती
कालीन थे। देखते-देखते उन्होंने वे कालीन
बिछा दिये। फिर जाने क्या
किया कि वह सारा मैदान रोशनी
से जगमगा उठा। अब तो
इन दोनों के प्राण मुंह को आ गये। उस
रोशनी में कोई भी उन्हें देख सकता
था। उस जगमगाहट में उन्हें दिखाई
दिया कि एक ओर से दूध जैसे फव्वारे चलने
लगे हैं। पेड़ों की हरियाली अ बड़ी
ही मोहक लगने लगी। जब वे दोनों
असमंजस में डूबे उस दृश्यावली को देख रहे
थे, आसमान से कुछ परियां
एक रत्न- जटिलत सिंहासन लेकर
उतरीं और उन्होंने उस सिंहासन को
एक बहुत ही कीमती कालीन पर
रख दिया। सारी परियां मिलकर एक पंक्ति में खड़ी
हो गईं। राजकुमार ने अपनी
आंखें मलीं। कहीं वह सपना
तो नहीं देख रहा था! वजीर का
लड़का बार-बार अपने को धिक्कार रहा
था कि उसने राजकुमार की बात क्यों
मानी। पर अब क्या हो सकता था! आसमान
में गड़गड़ाहट हुई। दोनों ने ऊपर को
देखा तो एक उड़न-खटोला उड़ा आ रहा
था। “यह क्या?” राजकुमार फुसफुसाया।
वजीर के लड़के ने अपने होठों
पर उंगली रखकर चुपचाप बैठे
रहने का संकेत किया। उड़न- खटोला
धीर-धीरे नीचे उतरा और उसमें से
सजी-धजी एक परी बाहर आई। वह उन परियों
की मुखिया थ सारी परियों ने मिलकर उसका
अभिवादन किया और बड़े आदर भाव
से उसे सिंहासन पर आसीन कर दिया। थोड़ी
देर खामोशी छाई रही। फिर
मुखिया ने ताली बजाई। एक परी
आगे बढ़कर उसके सामने खड़ी हो गई। मुखिया
ने बड़ी शालीनता से कहा, “जाओ, उसको
लाओ।” “जो आज्ञा!” कहकर वह
परी वहां से चल पड़ी और उसी ओर आने लगी, जहां
पेड़ पर राजकुमार और वजीर का
लड़का बैठे थे। दोनों की जान सूख गई।
वे अपने भाग्य में क्या लिखाकर आये थे कि
ऐसे संकट में फंस गये! परी
उसी पेड़ के नीचे आई और राजकुमार की
ओर इशारा करके कहा, “नीचे
उतरो। हमारी राजकुमारी तुम्हें
याद किया है।” राजकुमार हिचकिचाया। उसकी
हिचकिचाहट देखकर परी ने कहा, “जल्दी
उतर आओ। हमारी राजकुमारी देख
रही हैं। कोई चारा नहीं था। राजकुमार
नीचे उतरा और परी के साथ
हो लिया। दोनों राजकुमारी के पास
पहुंचे। राजकुमारी ने सरक कर
सिंहासन पर जगह कर दी और कहा, “आओ, यहां
बैठ ज़ाओ।” राजकुमार
ने उसकी बात सुनी,पर उसकी
बैठने की हिम्मत न हुई। राजकुमारी
ने थोड़ी देर चुप रहकर कहा, “तुम
कौन हो?” राजकुमार
ने धीरे से कहा, “मैं राजगढ़
के राजा का बेटा हूं।” “तो तुम
राजकुमार हो!” राजकुमार
ने मुस्कराकर कहा।” राजकुमार
चुपचाप खड़ा रहा। राजकुमारी
ने कहा, “देखो, यहां
से कोसों दूर हमारा
राज है। मैं वहां की राजकुमारी बहुत
दिनों से इंतजार कर रही थी कि कोई राजकुमार
यहां आये। आज तुम आ गये।” इतना
कहकर राजकुमारी राजकुमा की
ओर एकटक देखने लगी। राजकुमार को
लगा कि वह बेहोश होकर गिर पड़ेगा, पर
उसने अपने को संभाला। राजकुमारी
की मुस्क और चौड़ी हो गई। बड़े
मधुर शब्दों में बोली, “तुम्हें
मुझसे विवाह करना
होगा।” राजकुमार पर मानो
बिजली गिरी। उसने कहा, “यह नहीं
हो सकता।” “क्यों?” राजकुमारी
ने थोड़ा कठोर होकर पूछा।
“इसलिए कि,” राजकुमार
ने कहा, “मैं रानी
पद्मिनी की त में निकला हूं। मैंने प्रतिज्ञा
की है कि जबतक वह नहीं
मिल जायेगी, मैं अपने
महल का अन्न- जल ग्रहण नहीं
करूंगा।” “ओह! यह
बात है?” राजकुमारी ने बड़े तरल
स्वर में कहा, “मैं नहीं
चाहूंगी कि तुम अपनी प्रतिज्ञा को प्रतिज्ञा
बड़ी पवि होती है। उसे तोड़ना
नहीं चाहिए। तुम अपनी
प्रतिज्ञा पूर मैं उसमें तुम्हारी मदद करूंगी।
पर एक शर्त पर।” राजकुमार
ने कहा, “वह शर्त क्या है?” राजकुमार
बोली, “पद्मिनी को लेकर तुम
यहां आओगे और मेरे साथ शादी करके अपने राज्य
को जाओगे।” राजकुमार ने कहा, “इसमें
मुझे क्या आपत्ति हो सकत राजकुमारी
थोड़ी दे मौन रही, फिर बोली, “तुम
सिंहल द्वीप चहुंचोगे कैसे?” राजकुमार
ने कहा, “क्यों, उसमें क्या
दिक्कत है!” राजकुमारी हंसने लगी।
हंसते-हंसते बोली, “तुम
बड़े भोले हो। अरे, वहां
पहुंचना हंसी- खेल नहीं है। रास्ते में एक
जादू की नगरी पड़ती है। सिंहल
द्वीप का रास्ता वहीं से होकर
जाता है। कोई भी तुम्हें अपने जादू में फंसा
लेगा।” “तब?” राजकुमार
ने हैरान होकर कहा। राजकुमारी
बोली, “तुम उसकी चिन्ता न करो।
यह लो, मैं तुम्हें एक
अंगूठी देती हूं। तुम जबतक इसे अपनी
उंगली में पहने रहोगे, तुम
पर किसी का जादू असर नहीं
करेगा।” इतना कहकर राजकुमारी
ने एक अंगूठी उसकी ओर बढ़ा
दी। राजकुमार ने कहा, “राजकुमारी
मैं, तुम्हारा उपकार कभी
नहीं भूलूंगा।” राजकुमारी बोली, “इसमें
उपकार की क्या बात है! इंसान
को इंसान की मदद करनी
ही चाहिए। राजकुमारी एक अंगूठी
उसे दे दी। तुम्हारी यात्रा सफ हो, तुम्हारी
प्रतिज्ञा राजकुमार ने उसका
आभार मानते हुए सिर झुका दिया। रात
बीतने वाली थी। राजकुमारी
उठी और अपने उड़न-खटोले पर बैठकर
चली गई। परियों ने सारा
सामान समेटा और वे भी अपनी- अपनी
दिशा को प्रस् कर गईं। राजकुमारी
से विदा होकर राजकुमार
डगमगाते पैरों से, पर
खुश-खुश, वहां आया, जहां
वजीर का लड़का बड़ी व्यग्र उसकी
प्रतीक्षा कर रहा था। राजकुमार को
सही-सलामत लौट आया देखकर वजीर
के लड़के की जान-में-जान आई।
वह पेड़ पर से उतरा। राजकुमार ने उसे
आपबीती सुनाकर कहा, “देखो, कभी- कभी
बुराई में से भलाई निकल आती
है।” फिर दोनों
ने अपने-अपने घोड़े तैयार किये और उनपर
सवार होकर चल पड़े। जैसे हीफाटक पर
आये कि वह खुल गया। दोनों बाहर हो
गये।
राजकुमार
ने चलते- चलते कहा, “यह तो
पहला पड़ाव था, अभी तो जाने कितने पड़ाव
और आयेंगे।” वजीर का
लड़का गंभीर होकर बोला, “यहां
से तो हम राजी-खुशी निकल आये, पर
आगे हमें होशियार रहना
चाहिए।” वे लोग
उस जादुई बाग से कुछ ही दूर गये होंगे
कि आसमान में काले-काले बादल घिर
आये। खूब जोर की वर्षा होने लगी। वे
एक घर में रुक गये। दोनों रात-भर के जगे थे।
राजकुमार लेट गया और गहरी नींद में
सो गया। वजीर के लड़के को नींद नहीं
आई। वह बैठा रहा। अचानक देखता
क्या है कि बराबर के कमरे से एक
काला नाग आया। यह उसी का घर था। अपने
घर में उन अजनबी आदमियों को वह गुस्से
से आग- बबूला हो गया। बड़े जोर
की फुंफकार मार कर वह राजकुमार की
ओर बढ़ा। राजकुमार तो बेखबर सो
रहा था। वजीर के लड़के ने म्यान से तलवार
निकाल कर सांप पर वार किया
और उसके दो टुकड़े कर डाले, फिर
तलवार से उसे एक कोने में पटक दिया।
बाहर अब भी पानी पड़ रहा
था। वजीर का लड़का उठकर घर के
दरवाजे पर आ खड़ा हुआ। थोड़ी देर बाहर का
नजारा देखता रह सोचने लगा कि बैठे- ठाले
राजकुमार ने यह क्या मुसीबत मोल ले ली। अच्छा
होगा कि अब भी उसका मन फिर जाये
और हम वापस लौट जायें, पर
वह राजकुमार को
जानता था। वह बड़ा हठी था। जो
सोच लेता था, उसे पूरा करके रहता
था। और न जाने क्या- क्या
विचार उसके दिमाग में चक्कर लगाते
रहे। पानी थम गया तो उसने राजकुमार को
जगाया। राजकुमार उठ बैठा। बोला, “बड़े
जोर की नींद आ गई। अगर तुम
जगाते नहीं तो मैं घंटों सोता रहता।” तभी
उसकी निगाह एक ओर की पड़े नागराज
पर गई। वह चौंक कर खड़ा
हो गया और विस्मित आवाज में बोला, “यह
क्या?” वजीर के लड़के ने सारा
हाल सुनाते हुए कहा, “वह तो
अच्छा हुआ कि मुझे नींद नहीं आई। अगर सो
गया होता तो य नाग हम दोनों
को डस लेता और हमारा सफर यहीं
खत्म हो गया होता।” राजकुमार
वजीर के लड़के के मुंह से सारी
घटना सुनकर बोला, “मित्र, जिसे
भगवान बचाता है, उसे
कोई नहीं मार सकता! यह भी
याद रक्खो, हम लोग
एक बड़े काम के लिए निकले हैं। जबतक वह
काम पूरा नहीं हो जायेगा हमारा
बाल बांका नहीं होगा।” वजीर
के लड़के ने इसका कोई जवाब नहीं
दिया। दोनों ने सामान संभाला, घोड़ों
पर ज़ीन कसे और आगे बढ़ चले। चलते-चलते
एक तालाब आया। सूरज सिर
पर आ गया था। आसमान एकदम निर्मल
हो गया था। वहां वे रुक गये। भोजन
किया। थोड़ी देर विश्राम किया।
फिर आगे चल दिये। आगे
एक बड़ा घना जंगल था। इतना
घना कि हाथ को हाथ नहीं
सूझता था। उसमें जंगली जानवर निडर होकर
घूमते थे। डाकू छिपे रहते थे। वहां से निकलना
हंसी खेल नहीं था। जब उन्हें यह जानकारी
मिली तो के लड़के का दिल दहल उठा।
उसने राजकुमार की ओर देखा, पर
राजकुमार तो जान हथेली पर लेकर
महल से निकला था। उसने कहा, “अगर
हम इन छोटी- छोटी
बातों से घबरा जायेंगे तो कैसे काम
चलेगा?” दोनों उस जंगल में घुसे। जैसा
बताया था, वैसा ही उन्होंने उसे पाया। अंधियारी
रात-का- सा अंधकार फैला था। आगे-आगे
राजकुमार, पीछे वजीर का
लड़का। जानवरों की नाना प् की
आवाजें आ रही थीं, पक्षी
कलराव कर रहे थे। वे लोग बड़ी
सावधानी से आगे बढ़ रहे थे। अचानक उन्हें
दो चमकती आंखें दिखाई दीं। राजकुमार
ने अपने घोड़े को रोक लिया। खड़े
होकर देखा तो सामने एक बाघ
खड़ा था। क्षणभर में उन दोनों
का खात्मा हो वाला था। पर मौत सामने
आ जाती तो कायर भी
शूर बन जाता है। वजीर के लड़के ने आव देखा
न ताव, घोड़े पर
से कूदा और तलवार से उस पर बड़े जोर
का वार किया। राजकुमार ने भी भाले से
उस पर हमला किया। बाघ वहीं
ढेर हो गया। अब तो दोनों और बाघ
पर तलवार से वारभी चौकन्ने हो
गये। बहुत से जानवर उनके पास से गुजरे, पर
वे उतने खूंखार नहीं थे। घोड़ों
को देखकर रास्ते से हट गये। वे लोग
पल-भर को भी नहीं रुके। उन्हें
पता नहीं चल रहा था कि वे कितना
जंगल पार कर चुके हैं। सूरज ने भी
वहां हार मान ली थी। उन्हें डर था
कि कहीं रात न हो जाय। रात में जंगली
लोमड़ी भी शेर बन जाती है। जंगली
सूअर, नील गाय, भैंसे, शेर, चीते इधर-उधर
विचरण करने लगते हैं, पर वहां
तो रात-दिन एक-सा था। उजाले का
कहीं नाम नहीं था। उन दोनों
ने हिम्मत नहीं हारी। उनके हौसले
के सामने जंगल ने हार मान ली। जंगल
समाप्त हुआ, खुला मैदान आ गया। दिन
ढल गया था। मारे थकान के दोनों
पस्त हो रहे थे। वजीर के लड़के ने कहा, “अब
हम यहीं कोई अच्छी जगह देखकर
ठहर जायें। हम लोगों की ताकत जवाब
दे रही है और हमारे घोड़े भी पसीने से
तर-बतर हो रहे हैं।” राजकुमार
ने उसके प्रस्ताव को
मान लिया। कुछ कदम आगे बढ़ने पर पेड़ों
के एक झुरमुट में उन्होंने डेरा डाला। पास
में कुंआ था। उससे पानी लेकर स्नान किया।
ताजा होकर खाना खाया। वजीर के
लड़के ने कहा, “मैं बहुत
थक गया हूं। आज की रात मैं खूब सोऊंगा, आप पहरा
देना।” राजकुमार बोला, “ठीक
है!” दोनों अपने-अपने बिस्तरों
पर लेट गये। पर थके होने पर भी
वजीर के लड़के की आंख नहीं लगी। वह
चुपचाप बिस्तर पर पड़ा रहा। राजकुमार
थोड़ी देर चौकीदारी करके जैसी
ही बिस्तर पर लेटा कि नींद ने आकर उसे
घेर लिया। वह सो गया। वजीर
के लड़के ने यह देखा तो उसे बड़े गुस्सा
आया, पर वह कर
क्या सकता था। राजकुमार राजा
का बेटा था औ वह उसका चाकर था। राजकुमार की
रक्षा करना उसक था और इसी के लिए वह
उसके साथ आया था। जैसे-तैसे सवेरा
हुआ। वजीर के लड़के ने राजकुमार को
जगाया। आंखें मलता राजकुमार उठा
और दिन के उजाले को लक्ष्य करके बोला, “मैंने
बहुत कोशिश की
कि जागता रहूं, पर मैं इतना थक गया
था कि न चाहते हुए भी मेरी पलकें भारी
हो गईं और नींद ने मुझे अपनी
गोद में ले लिया।” वजीर
के लड़के को उस पर अब क्रोध
नहीं, दया आई और
उसने कहा, “कोई बात
नहीं है।” फिर राजकुमार
का दिल रखने के लिए मुस्करा
कर कहा,”ईश्वर को
धन्यवाद दो कि रात को कोई दुर्घटना
नहीं हुई। अनजानी जगह का
आखिर क्या भरोसा कि कब क्या
हो जाये!” तैयार होकर वे फिर आगे
बढ़े।
चलते-चलते काफी
समय हो गया। आगे उन्हें एक नगर दिखाई
दिया। उसे देखकर वजीर के लड़के का
माथा ठनका। राजकुमार तो भूल गया
था,पर उसे याद था। परियों
की राजकुमारी ने कहा
था कि रास्ते में जादू की एक नगरी
पड़ेगी। हो न हो,यह वहीं
नगरी है। उसने राजकुमार से कहा,”हम
इस नगरी के किनारे के रास्ते
से निकल चलें। बस्ती में न जायें।” राजकुमार
ने तुनककर कहा,”इतने
दिनों से हम जंगलों और मैदानों
में घूम रहे हैं। जैसे-तैसे तो एक नगर आया
है और तुम कहते हो, इससे
बचकर निकल चलें! नहीं, यह नहीं
होगा।” राजकुमार की
इच्छा के आगे वजीर का लड़का झुक गया
और दोनों ने नगरी में प्रवेश किया। नगरी
की बनावट और सजावट को देखकर राजकुमार
मुग्ध रह गया। बोला, “वाह, ऐसी
नगरी को देखने के आनंद से तुम वंचित होना
चाहते थे! ऐसे घर, ऐसे
महल, ऐसे बाग-बगीचे, कहां
देखने को मिलते हैं?” अपने-अपने घोड़ों
पर सवार दोनों नगर के भीतर बढ़ते
गये। अकस्मात् भांति-भांति के फूलों
और लता- गुल्मों से सजे एक बगीचे
को देखकर राजकुमार अपने घोड़े पर
से उतर पड़ा और बगीचे की
शोभा को निहार लगा। तभी सामने के घर
से एक बुढ़िया दौड़ी आई और राजकुमार
से लिपट कर फूट-फूट कर रोने लगी। रोना
रुका तो बोली “मेरे बेटे, तुम कहां
चले गये थे?” राजकुमार भौंचक्का- सा
रह गया। यह माजरा क्या है? उसने बुढ़िया
की बांहों से अपने को छुड़ाने की
कोशिश की, पर बुढ़िया
ने उसे इतना जकड़ रखा
था कि वह अपने को छुड़ा नहीं पाया। बुढ़िया
फिर बिलखने लगी। राजकुमार को
उस पर दया आ गई। बोला, “तुम चाहती
क्या हो?” सिसकते हुए बढ़िया ने कहा, “थोड़ी-सी
देर को मेरे घर के भीतर चलो।” इतना
कहकर उसने राजकुमार का हाथ पकड़
लिया। अपना पीछा छुड़ाने के लिए
राजकुमार उसके घर जाने को तैयार हो
गया। वजीर के बेटे ने मना किया, पर
वह नहीं माना। उसने वजीर के लड़के से कहा, “तुम यहीं
रहो, मैं अभी
आता हूं।” इतना कहकर वह बुढ़िया
के साथ चल दिया। सामने के घर का
दरवाजा खुला था ज्योंही वे अंदर घुसे कि
दरवाजा बंद हो गया। वजीर
के लड़के ने दरवाजे पर जाकर उसे खटखटाया, पर
कोई नहीं बोला। उसने मन-ही-मन
कहा, “यह एक नई मुसीबत सिर
पर आ गई। पर अब हो
क्या सकता था!” उसने बार-बार दरवाजा
खटखटाया, राजकुमार को
पुकारा, लेकिन कोई
नहीं बोला। हारकर वह अपनी
जगह पर बैठ गया और राजकुमार के आने की
प्रतीक्षा करने लगी। घंटों बीत गये, न
दरवाजा खुला, न राजकुमार
आया। घर के भीतर जो हुआ, वजीर का
लड़का उसकी कल्प सकता था। बुढ़िया
जादूगरनी थ उसने देख लिया
कि राजकुमार की उंगली में एक ऐसी
अंगूठी है, जिस पर
जादू का प्रभाव नहीं हो सकता। इसलिए
उसने जैसे ही राजकुमार का
हाथ पकड़ा, अंगूठी उतार ली। अब राजकुमार
उसके बस में था। उसने घर के भीतर
जाकर राजकुमार को
मक्खी बना दिया मक्खी सामने की
दीवार पर जाकर बैठ गई। बुढ़िया ने जादू
के जोर पर अपना यह रूप बना
लिया था। असल में वह अपने असली रूप में
आ गई और राजकुमार को
भी मक्खी से उसके असली रूप मे ले आई। हंसते
हुए बोली, “बहुत दिनों में तुम जैसा
मनुष्य मिला है। राजकुमार हैरान रह गया।
कहां गई वह बुढ़िया, जो
उसे वहां लाई थी? उसकी
जगह यह सुन्दरी कहां से आ गई? विस्मय
से राजकुमारी कभी उस युवती
को देखता, कभी घर पर इधर- उधर
निगाह डालता, पर उसकी समझ में कुछ न
आता। राजकुमार की यह हालत देखकर युवती
जोर से हंस पड़ी। बोली, “घबराते
क्यों हो? मैं तुम्हारा
कुछ भी बिगाड़ नहीं
करूंगी। आओ, मेरे साथ
चौपड़ खेलो।” राजकुमार ने दु:खी
होकर कहा, “मैं यहां
रुक नहीं सकता।” “क्यों?” युवती
ने पूछा। राजकुमार
ने उसे सारी बात बता दी। बोला, “मुझे
जल्दी- से-जल्दी सिंहल द्वीप
पहुंचकर रानी पद्मिनी से मिलना
है।” “ठीक है।” युवती
ने उसकी ओर मुस्करा कर देखा, “पर
तुम वहां पहुंचोगे कैसे?” राजकुमार रानी
पद्मिनी के चारों ओर की
नाकेबंदी की बात सुन चुका था, फिर भी
उसने अनजान बन कहा, “क्यों?” युवती
बोली, “पहले तो
तुम सिंहल द्वीप पहुंच ही नहीं पाओगे। अगर
किसी तरह पहुंच भी गये तो
रानी पद्मिनी से मिल नहीं सकते।” राजकुमार
ने कहा, “मुझे हर हालत में अपनी
इच्छा पूरी कर यदि मेरा प्रण पूरा
नहीं हुआ तो मैं जान दे दूंगा।” युवती
करुणा से भर कर बोली, “नहीं, उसकी
नौबत नहीं आयेगी। मैं तुम्हें एक
काला और एक सफेद बाल देती हूं। काले
बाल को जलाओगे तो पिशाचों की फौज आ
जायेगी। सफेद बाल को जलाओगे तो
देवों की फौज आ जायेगी। वे तुम्हारी
हर तरह से मदद करेंगे। जो
कहोगे, वही करेंगे।” राजकुमार
के खोये प्राण आये। उसने उस युवती
का आभार मानना चाहा, पर उसके
मुंह से शब्द नहीं निकले। चुप रहा।
युवती बोली, “मेरी एक शर्त तुम्हें माननी
होगी।” “वह क्या?” राजकुमार
ने उत्सुकता से पूछा। युवती
ने गंभीर होकर पूछा, “तुम पद्मिनी
को लेकर जब लौटोगे तो मुझे भी
साथ ले जाओगे!” “तुम्हारी यह शर्त मुझे
स्वीकार है।” राजकुमार
ने बड़े सहज भाव से कहा। युवती
बोली, “मैं जानती
हूँ कि
तुम्हारे भीतर कितनी आग धधक
रही है। मैं तुम्हें रोकूंगी।’’….. उसे बीच
में ही रोककर राजकुमार ने कहा, “मेरा
मित्र बाहर बहुत बेचैन हो
रहा होगा। अब तुम मुझे जाने दो।” “मुझे
भी साथ ले चलो।” बड़ी
शरारत- भरी आवाज में युवती
बोली, “मैं तुम्हें
इस घर में अधिक दिन नहीं रक्खूंगी। बस, आज
की रात, सिर्फ आज की रात, तुम
मेरे साथ चौपड़ खेल लो।” राजकुमार राजी
हो गया। रात-भर उसके साथ चौपड़
खेलता रहा। उसने युवती को बार- बार
हराया, पर हराकर युवती
व्यथित नहीं हुई, उसे पता
चला कि राजकुम की बुद्धि कितनी प्र है।
सवेरा होने से पहले युवती ने उसे एक डिब्बी
में दो बाल दिये और उसकी
अंगूठी लौटा द बोली, “जाओ। रास्ता
कठिन जरूर है, पर
तुम्हें सफलता मिलेगी।” उसने
बड़े प्यार से राजकुमार को
विदा किया और उसके जाने के लिए दरवाजा
खोल दिया। उस एक रात में
वजीर के लड़के की जो हालत हो गई थी, उसे वही
जानता था। उसे लग रहा था कि अब राजकुमार
अंदर ही फंसा रहेगा, बाहर
नहीं आयेगा। पर सहसा
दरवाजा खुला राजकुमार बाहर आता
दीख पड़ा तो वह अपनी
आंखों पर विश्वास नहीं कर सका।
उसका जी भर गया। वह दौड़कर राजकुमार
से लिपट गया और बच्चों
की तरह फूट- फूट कर रोने लगा। राजकुमार
ने उसे ढांढस बंधाया। बोला, “मित्र, घबराने
की जरूरत नहीं है। जो होता है, अच्छा
ही होता है। इसके बाद उसने जादूगरनी
की पूरी क कह सुनाई। बोला, “मैं
तो मानता हूं कि मनुष्य का इरादा कामयाबी
मिलकर ही रहती है। उसके रास्ते
में बाधाएं आती हैं, पर
वे दूर हो जाती हैं।” वजीर के
लड़के ने कहा, “आप सही
कहते हो, साधना के बिना
सिद्धि नहीं म अब उन्होंने फिर आगे का
रास्ता पकड़ा। उस नगरी से निकल कर
अब वे खुले मैदान में थे। इधर-उधर खेतों
में फसल उग रही थी। लोग अपने- अपने
काम में लगे थे। वे लोग चलते गये, चलते गये।
रास्ते में खेत- खलिहानों के अलावा
कहीं- कहीं हरे-भरे बाग- बगीचे
मिलते, कहीं नदी-नाले, पर उन
सबको पार करते वे निर्विध्न बढ़ते ही
गये। रात होने से पहले उन्हें
एक आश्रम मिला। उस आश्रम के बाहर
एक साधु बैठे थे। सिर पर बड़ी
जटाएं, लम्बी दाढ़ी, घनी
मूछें, भरा- पूरा
चेहरा। राजकुमार का मन हुआ कि
रात को वहीं ठहर जायें। उसने
अपने साथी से सलाह की तो वह भी
राजी हो गया। राजकुमार ने तब साधु के
पास जाकर कहा, “हम मुसाफिर हैं। बहुत
दूर से आ रहे हैं। यदि आपकी अनुमति ह को यहां
ठहर जायें। सवेरे चले जायेंगे।” साधु
बोले, “यह तो
आश्रम है। हर कोई यहां रुक सकता। तुम
आराम से ठहरो और जबतक मन करे, हमारे
साथ रहो!” राजकुमार को
यह सुनकर बड़ी खुशी हुई। उन्होंने घोड़ों
को वहीं बांध दिया और आश्रम के एक
कमरे में बिस्तर लगाया। खा-पीकर जब
बैठे तो साधु महाराज भी वहीं आ गये।
बातें होने लगीं। साधु बाबा बहुत पहुंचे हुए
व्यक्ति थे। जब वह बोलते थे, ऐसा
प्रतीत होता था, मानो
उनके मुख से फूल झड़ रहे हों। उन्होंने पूछा, “तुम
लोग कहां से आ रहे हो? कहां
जा रहे हो? तुम्हारी यात्रा का क्या
है?” राजकुमार ने सारी
जानकारी वि से दे दी और अंत में कहा, “बाबाजी, आर्शीवाद
दीजिये कि हमें अपने उद्देश्य में
सफलता मिले।” बाबा विह्वल हो
आये। बोले, “मेरा आशीर्वाद तो
हमेशा सबके साथ रहता है। तुम्हारे साथ
भी है। पर वत्स, तुम्हारा काम तो
आकाश से तारे तोड़ लाने के समान है।” इतना
कहकर बाबा चुप हो गये। फिर
बोले, “पर मेरे यहां
से तुम खाली हाथ नहीं
जाओगे। मैं तुम्हें एक ऐसी भभूत दूंगा, जिसे
खाकर तुम सबको देख सकोगे, पर तुम्हें
कोई नहीं देख सकेगा।” बाबा
उठकर गये। लौटे तो उनके हाथ में भभूत
थी। उसे राजकुमार को सौंपते हुए
बोले, “इसे संभालकर
रखना और किसी को मालूम मत होने
देना।” राजकुमार ने बाबा
का आशीर्वाद मानते हुए भभूत ले ली।
अब तो धीरे- धीरे पद्मिनी
की नाकेबंद का रास्ता साफ होता
जा रहा था। बाबा कह रहे थे, “जीवन
में अपना उद्देश्य ऊंचा
रक्खो और उसे प्राप्त करने के लिए पूरे
साहस से काम लो। यह जीवन प्रभु ने
हमें बड़े-बड़े काम करने के लिए ही
दिया है। जिनके सामने कोई ऊंचा ध्येय नहीं
होता, वे छोटी- छोटी
चीजों में फंसे रहकर अपनी जीवन- यात्रा
पूरी कर देते हैं।” बाबा
ने भभूत की डिब्बी उसे दी। राजकुमार
और वजीर का बेटा उनकी बातें बड़े
ध्यान से सुन रहे थे। बाबा के मुंह से निकले
एक-एक शब्द के पीछे उनका विश्वास था।
उन्होंने कहा, “तुम लोग तीन-चार दिन
यहां विश्राम करके आगे बढ़ो। कौन जाने, आगे की
यात्रा अबतक की यात्रा से भी
कठिन हो। थके होगे तो लड़ोगे कैसे? ताजे
होगे तो पहाड़ की चोटी पर सहज ही
पहुंच जाओगे।” राजकुमार को
जल्दी थी। उसने ठहरने में आनाकानी
की, लेकिन वजीर
के बेटे ने बाबा की बात मान ली।
समझाने पर राजकुमार भी सहमत हो
गया। वे लोग आश्रम में चार दिन रहे।
इस बीच में बाबा छाया की भांत साथ
रहे। उनके पास अनुभवों का अनन्त भण्डार
था। उनका लाभ वह उन दोनों
को देते रहे। उन्होंने अंत में जोर देकर
कहा, “अपने किये
पर अभिमान मत करना, साथ ही
अपने मार्ग पर दृढ़तापूर्वक डटे रहना।” उन
चार दिनों में बाबा से और आश्रम
के जीवन से इतना मिला कि वे कृतकृत्य
हो गये। अपने उद्देश्य की सफलता में अब
उन्हें कोई संदेह नहीं रहा।
आश्रम
से वे बड़े तड़के रवाना हो गये। अभी
उनकी मंजिल काफ़ी दूर थी। बिना
रुके वे चलते गये। दिन चढ़ आया, सूरज
सिर पर आ गया, तब
वे एक जलाशय के किनारे रुके, स्नान
किया, भोजन किया और थोड़ी
देर विश्राम करके आगे बढ़ चले। मौसम
अच्छा था। मंद-मंद पवन बह रही
थी। रास्ता साफ था। पक्षी
मस्ती से इधर- उधर उड़ान भर रहे थे।
राजकुमार ने मार्ग दृश्यों
को देखकर वजीर के लड़के से कहा, “देखो, सब
कुछ कितना गतिशील है। सूर्य
क्षमता नहीं, पवन रुकती नहीं, पक्षियों
का कलरव गान हमेशा
चलता रहता है मनुष्य को इससे सीख लेनी
चाहिए।” वजीर के लड़के ने देखा
कि राजकुमार का मन-कुरंग छलांगे भर
रहा है। उसने कहा, “धरती
भी कहां रुकत हर घड़ी
घूमती रहती है। वह रुक जाये तो
दुनिया में हाहाकार मच जाये।” “तुम
ठीक कहते हो, मित्र!” राजकुमार
ने प्रसन्न मुद्रा में कहा। फिर वह
चुप होकर चारों और फैले आनंद से पुलकित
होने लगा। घोड़ों ने भी जैसे स्वामी
के मनोभाव जान लिये। उनकी
गति भी तीव्र होती गई। दिन ढलने लगा, अंधेरा
अपनी चादर फैलाने लगा,तबतक
वे बराबर चलते रहे और फिर
एक घने वृक्ष के नीचे रात बिताने के लिए
रुक गये। राजकुमार के मन में विचारों
का ज्वार- भाटा उठ रहा था। वजीर का
लड़का तो सो गय पर उसे नींद नहीं
आई। थोड़ी देर में देखता क्या है कि
उस पेड़ पर एक तोता और एक मैना
आकर बैठ गये। उनमें बातें होने लगीं। राजकुमार पक्षियों
की भाषा ज वह ध्यान से उनकी
बातें सुनने लगा। तोते ने कहा, “मैना, कुछ कहो
जिससे रात कटे।” मैना
बोली, “आपबीती कहूं या
परबीती?” तोते ने
कहा, “अरी आपबीती तो र ही
सुनते रहते हैं। कुछ परबीती कहो।” मैना
बोली, “इस नगर
के राजा के एक लड़की है। बड़ी सुन्दर है, बड़ी
भली है, बड़ी भोली है।” तोते ने
उसकी बात काटकर शरारत से कहा, “तुम जैसी?” मैना
शर्मा गई। बोली, “तुम्हें
हर घड़ी मजाक सूझता
है।” तोते ने कहा, “अच्छा, अपनी
बात कहो।” मैना बोली, “राजकुमारी
बहुत दिनों से बीमार है। दुनिया
भर के वैद्य- डाक्टर उसका इलाज कर
चुके हैं, पर वह ठीक
नहीं होती। बेचारा राजा परेशा है।
उसके वही अकेली औलाद है।” तोते
ने कहा, “यह तो
बड़ी हैरानी की है।” “हैरानी
की बात तो है ही।” मैना
ने व्यथित स्वर में कहा, “राजा
ने यहां तक ऐलान कर दिया है कि
जो कोई राजकुमारी को अच्छ देगा, वह
उसी से बेटी का ब्याह कर देगा। राजकुमारी
को पाने के लालच में दुनिया
भर के चिकित्सक आ रहे हैं, पर
कोई भी उसे ठीक नहीं कर पाया। राजा
निराश हो गया है।” इतना
कह कर मैना की आवाज रुक गई।
तोता बोला, “राजकुमारी की बी करने
का कोई रास्ता है?” “रास्ता
है!”मैना ने कहा,”अगर
कोई सुनता हो तो इस पेड़ की
जड़ ले जाये और उसे घिस कर पानी में मिलाकर राजकुमारी
को पिल वह रोग से छुटकारा
पा जायेगी।” यह कहकर मैना मौन हो
गई। तोता भी कुछ नहीं
बोला। पर राजकुमार उठा और उसने
अपने भाले से एक ओर मिट्टी खोद कर पेड़
की थोड़ी-सी जड़ काट ली और आकर अपने
बिस्तर पर लेट गया। सवेरा हुआ। दोनों
मित्र उठे और तैयार होकर आगे बढ़ गये।
आगे उन्हें वही नगर मिला, जिसकी
चर्चा मैना ने की थी। शहर में बार-बार मुनादी
हो रही थी देगा, राजा
उसके साथ राजकुमारी
को ब्या देगा और अपना
आधा राज्य दे देगा। राजकुमार
ने अपना घोड़ा महल के फाटक
की ओर बढ़ा दिया। वजीर के लड़के
ने उसे रोकना चाहा, पर वह
कहां मानने वाला था। फाटक पर जब
चौकीदार ने उसे रोका तो उसने कहा, “मैं राजकुमारी
का इला करूंगा।” राजकुमार को
राजा के सामने पेश किया गया। राजा
ने कहा, “बड़े- से-बड़े
वैद्य इसका इलाज कर गये हैं, पर मेरी
प्यारी बेटी को भी अच्छा नहीं कर सका।” राजकुमार कुछ
बोला नहीं। थोड़ा पानी लेकर उसने
जड़ को घिसा और बेहाश पड़ी
राजकुमारी के होठों पर लगा
दिया। पानी का लगाना था बदन
में कुछ हलचल हुई। राजकुमार ने फिर थोड़ा
पानी उसके मुंह से लगाया तो उसने आंखें
खोल दीं। यह देख कर राजा का रोम- रोम
पुलकित हो उठा। उसने राजकुमार
को सीने से लगा लिया। कुछ ही
देर में राजकुमारी उठकर बैठ
गई और चलने- फिरने लगी। अपनी
शर्त के अनुसार राजा ने कहा, “अब तुम
मेरी बेटी को और मेरे आधे राज्य को
ग्रहण करो।” राजकुमार ने राजकुमारी
के अच्छा हो जाने पर प्रसन्नता
व्यक्त करते हुए राजा
को अपनी प्रत सुनकर राजा ने कहा,”कोई
बात नहीं है। तुम अपनी
प्रतिज्ञा पूर लौटो तो बेटी को स ले
जाना और मन हो तो यहीं राज करना।” सारे
नगर में शोर मच गया। प्रजा
ने राजकुमार को घेर लिया। राजा
ने बड़ी कठिनाई से लोगों
को रोका और बड़े मान-सम्मान से राजकुमार को
विदा देते हुए कहा, “यहां
से दस कोस पर पश्चिम में, एक बाबा
गुफा में रहते हैं। तुम उनसे मिलते
जाना। वह तुम्हारी मदद करेंगे।” राजकुमार
महल से बाहर आया तो वजीर का
लड़का उसकी राह देख रहा था। उसे सारा
समाचार मिल गया था। उसने राजकुमार
को सीने से लगाकर कहा, “यह क्या
चमत्कार हुआ?” राजकुमार ने उसे पिछली
रात की घटना सुनाकर कहा, “इस दुनिया
में, सचमुच कभी-कभी
चमत्कार हो जाता है। न हम उस
पेड़ के नीचे ठहरते, न
यह करिश्मा होता। हमें तोता- मैंना
का उपकार मानना चाहिए।” राजा
ने उन्हें बाबा से मिलने को
कहा था। राजकुमार ने उसी
दिशा में प्रस्थान किया। दस कोस
पर उन्हें वही गुफा मिल गई। उसमें
बाबा बैठे थे। राजकुमार घोड़े से उतर
कर उनके पास गया और उन्हें प्रणाम करके
सामने खड़ा हो गया। बाबा
आंखें बंद किये बैठे थे। थोड़ी देर में उन्होंने
आंखें खोलीं और जिज्ञासा भाव से कहा, “कैसे
आये हो?” राजकुमार ने सारा
हाल सुना कर कहा, “राजा
ने कहा था कि मैं आपके दर्शन
करूं।” बाबा बड़ी आत्मीयत बोले, “वत्स, तुमने काम
बड़ा कठिन और जोखिम भरा
उठाया है।” राजकुमार ने कहा, “बाबा, काम
कठिन जरूर है, लेकिन मनुष्य
तो बना ही क काम करने के लिए है।” बाबा
की आंखें चमक उठीं। बोले, “तुमने
ठीक कहा। जो कठिन काम से बचे वह मनुष्य
कैसा!” कुछ रुक
कर उन्होंने कहा, “अब तुम सिंहल द्वीप के
पास आ गये हो, लेकिन वहां पहुंचने के लिए
तुम्हें महासागर पार करना होगा। कैसे
करोगे?” राजकुमार ने कोई झिझक
नहीं दिखाई। बोला, “बाबा, जो
शक्ति मुझे यहां तक ले आई है, वही
शक्ति इस कठिनाई का
भी रास्ता निका “शाबाश,वत्स” बाबा
ने विभोर होकर कहा,‘‘मनुष्य
तो निम है। काम शक्ति
ही कराती है। इतना कहकर बाबा ने खड़ाऊं
की एक जोड़ी उसे देते हुए कहा, “इन्हें
पहन कर तुम सहज ही समुद्र पार
कर जाओगे। जाओ, मेरा
आशीर्वाद तुम्हारे साथ रहेगा।” राजकुमार ने
अत्यन्त कृतज्ञ भाव से बाबा के चरणों में सिर
रखा और बाबा ने समुद्र पार करने
के लिए खड़ाऊ की जोड़ी दी। उसकी
पीठ थपथपाकर उसे आशीर्वाद
देकर विदा किया। घोड़ों
पर सवार होकर जब वे चले तो
राजकुमार भाव- विह्वल हो रहा था। उसने
वजीर के लड़के से कहा,‘‘राजा
बड़ा उद था। उसके साथ जो
हुआ, उसका बदला उसने चुका
दिया। इतनी बड़ी समस्या क ही
हल कर दिया।” दोनों आगे बढ़े। उनकी
अब विशाल सागर को देखने के लिए
आतुरता थी। पर सहसा एक चिन्ता ने राजकुमार
को आ घेरा। वह तो खड़ाऊं की
मदद से सागर पार कर लेगा, पर उसके साथी
का क्या होगा उसने वजीर के लड़के से कहा, “मित्र, आगे की
लड़ाई अब मुझे अकेले को
ही लड़नी पड़ेगी। जबतक मैं लौट कर नहीं
आऊं, तुम यहीं
रुके रहोगे।” वजीर का
लड़का हतप्रभ हो गया। यह कैसे होगा? अकेला
राजकुमार कैसे उस किले को फतह कर सकेगा? जब
उसने राजकुमार से अपनी
आशंका व्यक्त की तो राजकुमार ने उसे
धीरज बंधाते हुए कहा, “तुम चिन्ता
मत करो। आगे के लिए मेरे पास सारे साधन
हैं।” फिर इधर-उधर
की बातें करते हुए वे आगे बढ़ते गये।
राजकुमार का मन परेशान था। वजीर का
लड़का भीतर- ही-भीतर परेशान था।
यदि राजकुमार को कुछ हो
गया तो वह राजा को कैसे मुंह दिखायेगा? राजकुमार
हिम्मत से आगे बढृ रहा था। साथी
का दिल बैठ रहा था। दिन भर चलने
के बाद अंत में उन्हें दहाड़ता सागर सामने
दिखाई पड़ा। बड़ी-बड़ी लहरें उठ- उठकर
एक भयानक दृश्य प्रस्तुत कर रही
थीं। तट पर पहुंच कर दोनों
घोड़ों से उतर पड़े और निर्निमेष नेत्रों
से सागर की विशाल जल- राशि
को देखने लगे।
अगले
दिन प्रात: प्रस्थान करने का
निश्चय किया। बड़े तड़के उठकर राजकुमार
ने अपने घोड़े को खूब प्यार किया, वजीर
के लड़के के बहते आंसूओं को पोंछ कर
उसे सीने से लगाया और सूर्य की
प्रथम किरण के फूटते ही पैरों में खड़ाऊं
पहन कर सागर के तट पर जा
खड़ा हुआ। उसके बाद ज्यों ही पैर पानी
पर रखा, उसका सारा बदन कांप
उठा; लेकिन तभी
उसने अनुभव किया कि वह पानी
पर ऐसे खड़ा है, जैसे धरती
पर खड़ा हो। फिर तो वह एक-एक कदम
रखते हुए आगे बढ़ने लगा। वजीर का
लड़का आश्चर्य से देख रहा
था कि पानी प यह इस प्रकार कैसे चल
रहा है? धीरे- धीर
राजकुमार आंखों से ओझल हो
गया। राजकुमार का वह पूरा दिन सागर
पर चलते-चलते समुद्र पर चलता
राजकुमार बीता। समुद्र की
छोटी- बड़ी मछलियां दूसरे जीव-जन्तु उसकी
तरफ आते थे, किन्तु उसके पास आने की
हिम्मत नहीं कर पाते थे, कुछ
दूर से ही भाग जाते थे। राजकुमार
बड़े आनंद से आगे बढ़ता गया। पर समुद्र
का अंत उसे दिखाई नहीं
देता था। पूरा दिन और पूरी
रात उसने चलते- चलते बिताई। अगला
दिन आया, तब उसे
सागर का किनारा दीख पड़ा।
वही था सिंहल द्वीप, जिसमें पद्मिनी
को पाने के लिए वह घर से निकला
था। उस भूमि को देख कर उसे रोमांच
हो आया, लेकिन दूर से ही उसने देखा
कि काले-काले खूंखार राक्षस द्वीप की
रक्षा के लिए खड़े हैं। राजकुमार ने भभूत की
डिब्बी खोली और एक चुटकी भभूत मुंह में डाल
ली। अब वह सबको देख सकता था। वह
बेधड़क राक्षसों के बीच पहुंच गया। राक्षस
बड़े ही डरावने थे। उनके रंग-रूप
और चेहरों को देखकर रौंगटे
खड़े हो जाते थे। उनके हाथों में हथियार
देखकर प्राण सूख जाते थे। राजकुमार
उस सबको देख कर सकपका
रहा था, हालांकि उसे पता
था कि कोई भी उसे देख नहीं
पा रहा है। राजकुमार ने निश्चय किया
कि वह पहले शहर का एक चक्कर लगा
ले। शहर को समझकर फिर आगे का
कार्यक्रम तय करे। वह शहर में खूब घूमा।
पद्मिनी के महल पर भी गया। किन्तु
उसे लगा कि जोर- जबरदस्ती
से महल में घुसना असंभव है। उसके लिए
कोई जुगत करनी होगी। नगर इतना
सुन्दर और कलापूर्ण था कि अपने को
भूल गया। ऐसा अनुपम नगर तो
उसने पहले कभी नहीं देखा था। जगह-जगह
पर हरी दूब के कालीन बिछे
थे और रंग-बिरंगे पुष्पों से सारा शहर सुशोभित
और महक रहा था। कदम-कदम पर
गुलाब जल के फव्वारे चल रहे थे। सड़कें
बड़ी साफ- सुथरी थीं। गंदगी
का कहीं नाम भी नहीं था। बढ़िया
पोशाकें पहन स्त्री-पुरुष, बच्चे इधर-उधर
घूम रहे थे। उनका रूप बड़ा
सलोना था। राजकुमार उस सबको
देखकर मुग्ध हो गया। उसे लग रहा
था, जैसे वह इन्द्रपुरी
में पहुंच गया है। वह घूमता
रहा, घूमता रहा। सहसा
उसे ध्यान आया कि वह अदृश्य तो
बन गया है, पर अपने
असली रूप में कैसे आयेगा। यह सोचकर उसका
मन व्यग्र हो गया। अब वह क्या
करे? उसकी हैरानी बढ़ती उसे
उन बाबा का ध्यान हो
आया, जिन्होंने भभूत
की वह डिबिया दी थी। तभी
उसे दिखाई दिया कि बाबा उसके सामने
खड़े हैं। वह कह रहे थे कि यह ले दूसरी
डिबिया, जिसकी भभूत खाते ही
तू अपने असली रूप में आ जायेगा। राजकुमार
ने खुश होकर दूसरी
डिबिया ले ली। बाबा अंतर्धान होते-होते
कह गये कि दूसरी डिबिया क होशियारी
से करना। यदि लोगों ने देख
लिया तो राक्षस तुझे कच्चा
ही खा जायेंगे। अब राजकुमार ने, आगे क्या
करना है, इस बारे
में सोचा। सोचते-सोचते उसने काला
और सफेद बाल निकाला। पहले उसने काला
बाल जलाया। उस बाल का
जलना था कि रा आकर खड़ी हो गई। उसने
आदेश दिया कि पहरे के राक्षसों
का खात्मा दो। देखते-देखते सारे राक्षस धराशायी
हो गये। उसने थोड़े-से राक्षसों
को रोककर शेष को विदा कर दिया।
इसके पश्चात उसने सफेद बाल जलाकर देवों
को बुलाया। उनके आने पर उसने कहा, “समुद्र
के किनारे हीरे- जवाहरात तथा
नाना प्रकार के आभूषणों से भरा एक जहाज
खड़ा कर दो। पलक झपकते ही एक बड़ा
ही सुन्दर जहाज खड़ा हो गया, उसमें हीरे-जवाहरात
भरे थे और तरह-तरह के आभूषण
थे। आभूषण एक से बढ़ कर एक थे। यह
सब होते ही नगर भर में खबर फैल गई कि
परदेस से एक बहुत बड़ा सौदागर आया
है। लोग अचंभे में रह गये कि
ऐसा एकदम कैसा हो गया, लेकिन उनके
सामने सौदागर उपस्थित था और उसके पास मूल्यवान आभूषणों का भण्डार था।
यह खबर उड़ती- उड़ती राजमहल में पहुंची।
पद्मिनी ने यह सब सुना
तो उसका मन मचल उठा। उसने कहा,”उस व्यापारी
को हमारे सामने लाओ।” तुरंत पद्मिनी
के दूत व्यापारी बने राजकुमार
के पास पहुंचे और पद्मिनी
का संदेश कह सुनाया। राजकुमार तो
यह चाहता ही था। वह पद्मिनी
से मिलने महल में पहुंचा
तो वहां के दृश्य देखता ही रह गया।
सबकुछ अनूठा था। महल का
द्वार बहुत ही कला- कारीगरी
पूर्ण था। अंदर लता-गुलमों के बीच
फव्वारे अपनी बहार दिखा
रहे थे। महल चारों ओर से घिरा
था, किन्तु दूत के
साथ होने के कारण उसे अंदर प्रवेश पाने में
कोई कठिनाई नहीं हुई। पद्मिनी
एक सजे-धजे कक्ष में सिंहासन पर विराजमान
थी। राजकुमार के कक्ष में प्रविष्ट
होते ही उसने उसका
अभिवादन किया। राजकुमार ने भी
हाथ जोड़कर, सिर झुका कर अपना
सम्मान व्यक्त किया। पद्मिनी ने उसे
बैठने का संकेत किया। वह आसन पर बैठ गया
तो पद्मिनी ने पूछा, “तुम
कहां से आये हो?” पद्मिनी
के मुंह से शब्द नहीं, मानों
फूल झड़े हों। राजकुमार एकटक उसकी
ओर देखते हुए बोला, “मैं
स्वर्ण- भूमि से आया हूं।” “वहां
क्या करते थे?” पद्मिनी ने अगला
प्रश्न किया। “जी, मैं
हीरे- जवाहरात का
व्यापारी हूं।” राजकुमार ने उत्तर दिया।
“यहां कैसे आये?” पद्मिनी
ने थोड़ा गंभीर होकर पूछा।
“सुना था, आप आभूषणों
और हीरे- जवाहरात की
पारखी और प्रेमी हैं।” राजकुमार का
संक्षिप्त उत्तर था। “तो
तुम कुछ आभूषण लाये हो?” “जी
हां।” “कहां हैं?” “समुद्र
के किनारे मेरा जहाज खड़ा है।” राजकुमार
ने सहज भाव से कह दिया। पद्मिनी
ने मुस्करा कर कहा, “तो
तुम उन्हें मुझे दिखा सकते हो?” “अवश्य।
मैं तो यहां आया ही इस काम
से हूं।” “ठीक है।
अब तुम जाओ।” पद्मिनी ने धीमी
आवाज में कहा, “कल मेरा दूत तुम्हारे पास
आयेगा। उसके साथ कुछ बढ़िया
आभूषण ले आना।” राजकुमार
ने पद्मिनी से विदा
तो ली, लेकिन उसके
रूप-लावण्य से इतना मोहित हो
गया कि अपनी सु बुधि खो बैठा। उसके लिए
चलना मुश्किल हो गया। वह मुड़-मुड़ कर
पीछे देखता था। ऐसी रूपसी तो उसने जीवन
में कभी नहीं देखी थी। परियां
अपनी सुन्दर लिए प्रसिद्ध होती
हैं, लेकिन वे भी
पद्मिनी के आगे पानी भरती थीं। चारों
दिशाओं में उसकी ख्याति ठीक ही
फैली थी। पद्मिनी के मोहपाश में
फंसा राजकुमार जब अपने जहाज पर आया
तो पद्मिनी उस आगे घूम रही थी। उसके
अंग-प्रत्यंग से सौंदर्य टपक रहा
था। राजकुमार की भूख-प्यास गायब हो
गई, नींद उड़ गई। बिस्तर
पर पड़ा- पड़ा उसकी याद में वह
लम्बी सांसें लेता रहा। तभी
देखता क्या है कि खड़ाऊं वाले बाबा
उसके सामने उसकी ओर देख रहे हैं। राजकुमार
ने उठने की कोशिश की, पर उससे
उठा नहीं गया। बाबा निमिष भर चुपचाप
खड़े रहे, फिर बोले,”क्या
तुम यहां आहें भरने के लिए आये
हो। अपने उद्देश्य को भूल गये? जो
अपने उद्देश्य को भूल जाता
है, वह पतित हो
जाता है। अब तुम आगे की सोचो और अपने
काम को जल्दी से निबटाओ।
ऐसी जगह देरी करना अच्छा नह कौन
जाने, क्या मुसीबत सिर पर आ
जाये।” यह चेतावनी
देकर बाबा अंतर्धान हो
गये। राजकुमार सिर झटककर उठ खड़ा
हुआ, पर पद्मिनी
की खुमारी दूर होने वाली
नहीं थी। पूरा दिन पद्मिनी
की याद मैं बीता। रात का
अंधेरा होने आया तो वह चौंक पड़ा
उसे याद आया कि अगले दिन पद्मिनी
का दूत आने वाला है और उसे अच्छे-अच्छे
आभूषण लेकर पद्मिनी के पास जाना
है। उसने उठकर अलमारियां खोलीं औ उनमें
से आभूषण निकाले। बात उतनी
आभूषणों की नह जितनी पद्मिनी को की
थी। उसने ऐसे आभूषण चुने, जिन्हें देखकर
पद्मिनी रीझ उठे। कान के, गले
के, वक्ष के, कटि
के, पैरों के, उसने
उन आभूषणों को चुना, जिन्हें
अप्सराएं धारण करती हैं। इन आभूषणों
का चुनाव करके उसने सोने की
चेष्टा की, लेकिन एक
पल को भी उसे नींद नहीं आई। वह दिन
का उजाला देखने का प्रयत्न करता
रहा। दिन निकलने से पहले ही
वह उठकर तैयार हो गया। सवेरा हुआ, दोपहर
हुई, पर कोई भी
उसे लेने नहीं आया। राजकुमार
ने समझ लिया कि पद्मिनी भू गई।
शाम को जब वह निराश हो
गया था तो बड़े सपाटे से दूत आया और उसे
तत्काल रवाना होने को
कहा। वह तो सवेरे से ही तैयार बैठा
था। दूत के साथ चल दिया।
जब
वह महल में पहुंचा, पद्मिनी
उसकी प्रतीक्षा कर
रही थी। आज वह दूसरे कक्ष में थी, जिसमें
चारों ओर मनुष्य के बराबरी
के शीशे लगे थे। प्रकाश
से सारा कमरा आलोकि हो
रहा था। पद्मिनी का सौंदर्य आज
कई गुना निखर उठा था। पिछले दिन की
तरह पद्मिनी ने और राजकुमार ने एक- दूसरे
का अभिवादन किया और पद्मिनी के संकेत
पर राजकुमार उसके समीप ही बैठ गया।
राजकुमार ने डिब्बे-डिब्बियों में से
आभूषण निकाल कर उसे दिखाना आरंभ किया। पद्मिनी
एक-एक आभूषण को हाथ में लेकर
अपने शरीर से लगाकर शीशे में देखती
कि कैसा लगता और जो उसे पसंद आता, उसे
एक ओर को रख देती। कभी- कभी
वह राजकुमार की भी सलाह लेती। आभूषणों
को देखते- देखते काफी देर हो
गई तो पद्मिनी ने कहा, “अब
हम कल देखेंगे।” बड़े अनमने भाव से राजकुमार
ने कहा, “जैसी आपकी मर्जी।” राजकुमार चला
तो आज उसकी हालत कल से भी
अधिक मोहासिक्त थी। आज उसने
पद्मिनी के जिस रूप की झांकी पाई थी, वह
तो अलौकिक था। उसकी आंखें चौंधिया
रही थीं। आज एक नई कल्पना ने उसके
मन-मस्तिष्क को झकझोर डाला
था। कुछ ही समय में वह उसे वहां
से ले जायेगा। तब उसके अनुपम सौंदर्य
के भार को वह कैसे वहन कर पायेगा? वह राजकुमार
है, इतने बड़े
राज्य के राजा का पुत्र है, किन्तु
कहां राजगढ़ का राज्य और कहां
सिंहल द्वीप की इस अपूर्व सुन्दरी
का वैभव। दोनों में जमीन- आसमान
का अंतर था। पर उठा कदम अब वापस तो
लिया नहीं जा स विचारों के अथाह सागर
में डूबता- उतरता राजकुमार अपने
जहाज पर आया। वह हाल-बेहाल हो
रहा था। भूख- प्यास, नींद
सब उससे रूठ गई थी। वह बिस्तर
पर पड़ा रहा। उसकी
हालत सन्निपात के रोगी के समान
हो रही थी। वह अपने से ही बात करता
था, पर उसके शब्द
अस्पष्ट थे। कभी उसकी आवाज तेज हो
जाती थी, कभी मंद पड़ जाती
थी। राजकुमार स्वयं हैरान
था कि उसे क्या हो गया है। यह
सब होते हुए भी उसने राजमहल में जाने
की तैयारी की। कल की अपेक्षा आज और
भी बढ़िया चीजें, निकालीं। उसे भरोसा
था कि पद्मि अवश्य पसंद करेगी। अगले
दिन उसे अधिक प्रतीक्षा नहीं करन जल्दी
ही पद्मिनी क आ गया और वह दोपहर
होने से पहले ही महल में पहुंच गया।
पद्मिनी इन आभूषणों को देखकर चकित
रह गई। ऐसे आभूषण उसने पहले कभी
नहीं देखे थे। उनमें से उसने ढेर सारे पसंद
कर लिये। जब वह उन्हें लेने लगी
तो उसने देखा कि वे अधूरे हैं। जोड़ीदार
आभूषणों में से अधिकांश एक-एक थे।
पद्मिनी ने पूछा, “यह क्या है?” राजकुमार
ने उत्तर दिया, “अभी
तो जहाज पर आभूषणों का भण्डार भरा
पड़ा है। मैंने सोचा कि आप जब अपनी
पसंद पूरी कर लेंगी तब उनकी
जोड़ियां पूरी दूंगा।” पद्मिनी
ने खीजकर कहा, “यह तुमने
क्यों सोचा!” राजकुमार ने कहा, “इसलिए कि
मेरी इच्छा थी क एक बार आभूषणों के सारे
भण्डार को देख लें। अगर आपको
आपत्ति न हो तो एक बार स्वयं जहाज
पर जाकर पूरे भण्डार को देख लें।” इस
सुझाव पर राजकुमारी थोड़ा स में
पड़ी। अंत में उसने राजकुमार की बात मान
ली और वह जहाज पर जाने को
राजी हो गई। इसके बाद राजकुमार पद्मिनी
से छुट्टी लेकर अपने जहाज
पर लौट आया। नियत समय पर पद्मिनी
जहाज पर आई। वहां
आभूषणों का अथा भण्डार था। उन्हें देखने
में पद्मिनी इतना लीन हो
गई कि वह समय को ही नहीं, अपने को
भी भूल गई। काम निबटाकर जाने को
हुई तो राजकुमार ने कहा, “अब
आप जाओगी कहां और कैसे?” पद्मिनी
चकित होकर बोली, “क्यों?” “क्यों
क्या? देखती नहीं कि जहाज चल
रहा है और हम किनारे से बहुत दूर निकल
आये हैं।” पद्मिनी पहले तो
मजाक समझी। फिर उसने देखा
कि जहाज सचमुच चल रहा है। मारे गुस्से
के उसका चेहरा तमतमा उत्तेजित
होकर बोली, “तुमने
मेरे साथ छल किया है। इसकी
तुम्हें सजा मिलेगी।” राजकुमार
हंस पड़ा। बोला, “पद्मिनी
जी, हम सिंहल
द्वीप की सीमा से बहुत दूर निकल
आये हैं।” पद्मिनी को लेकर जहाज
चल पड़ा पद्मिनी मछली तड़फड़ाने
लगी। उसके चेहरे का रंग फीका
पड़ गया। राजकुमार ने कहा, “घबराओ
नहीं। मैं राजगढ़ का
राजकुमार हूं।” इसके बाद उसने पद्मिनी
को शुरू से लेकर आखिर तक की
सारी कहानी सुन फिर बोला, “तुम्हें पाने
के लिए मुझे बड़े पापड़ बेलने पड़े हैं।” उस
कहानी को सुनकर पद्मिनी का संताप काफी
हद तक दूर हो गया। बोली, “इसके
लिए इतना कपट करने की
क्या जरूरत थी।” “कपट नहीं
किया होता तो राजी से आ जातीं?” पद्मिनी
ने इसका उत्तर नहीं
दिया। पर जो होना था, वह हो
चुका था, अब उसके
सामने बचने का कोई रास्ता
नहीं था। भाग्य के साथ समझौता
करने के अलावा अब और क्या
हो सकता था। आहत हिरनी की तरह वह
राजकुमार के पास आ बैठी। जहाज
तेजी से आगे बढ़ रहा था। पद्मिनी
आवेश और आवेग से थक कर चूर हो
गई थी। उसे सूझ नहीं रहा था, क्या
करे। मन उसका इतना आस्थिर हो
रहा था कि एका भाव से कुछ सोच भी
नहीं पा रही थी इतने में जहाज बड़े जोर
से इधर-उधर होने लगा। पद्मिनी
ने भयभीत होकर राजकुमार की
ओर देखा। राजकुमार ने उसे सांत्वना
देते हुए कह, “घबराने की कोई बात
नहीं है। समुद्री तूफान आ गया
है। थोड़ी देर में शांत हो जायेगा।” तूफान
का वेग बढ़ता गया। बड़ी- बड़ी
लहरें उठकर जहाज से टकराने लगीं।
जहाज डगमगाने लगा। किसी
आसन्न खतरे की आशंका से वह राजकुमार
से लिपट गई। राजकुमार ने धीरे-धीरे उसकी
पीठ थपथपाई और उसे भरोसा
दिया कि उन नहीं बिगड़ेगा। फिर हंस
कर राजकुमार बोला, “अब
तुम्हें परेशान होने की
जरूरत नहीं है। तुम्हारी रक्षा की ज तुम्हारी
नहीं, मेरी है।” राजकुमार उसे
दुलारता रहा। तूफान का वेग धीरे- धीरे
शांत होता गया। पद्मिनी
तन-मन से बेहद थक गई थी। सो
गई। पर राजकुमार की आंख नहीं
लगी। अचानक उसे बड़ा धीमा स्वर सुनाई
दिया। राजकुमार ने विस्मित
होकर इधर-उधर देखा। जहाज
पर उन दोनों के सिवा कोई नहीं
था, फिर वह स्वर
किसका था? पता चला कि एक तोता
और एक मैना आपस में बातें कर रहे
हैं। अपनी आदत के अनुसार तोते ने मैना
से कुछ कहने को कहा और मैना ने वही
बात दोहराई कि वह आपबीती कहे या
परबीती। तोता बोला, “कुछ आपबीती
कहो, कुछ परबीती।”मैना
ने कहा, “कल
मेरी जान बाल-बाल बची।” तोते
ने व्यग्र होकर पूछा, “क्या
हुआ?” मैना बोली, “क्या
कहूं, जमाना बड़ा खराब हो
गया है। मनुष्य ने हमारा जीना हराम कर
दिया है। हम उसका कुछ भी
नहीं बिगाड़ते, फिर भी वह हमारी
जान लेने पर तुला रहता है। कल मैं एक
पेड़ पर बैठी थी कि किसी आ मुझ
पर जानलेवा हमला किय वह
तो पेड़ के पत्तों और टहनियों ने मुझे
बचा लिया, नहीं तो जान जाने में कुछ
कसर नहीं रही थी।” तोते के
मुंह से एक दीर्घ निश्वास छूटा। फिर फुसफुसाया, “जाको
राखे साइयां, मारि न सकिये कोय।” मैना
ने कातर होकर कहा, “मर
भी जाते तो क्या? अब
मेरे लिए रोने वाला कौन है? बच्चे
बड़े होकर जाने कहां चले गये! अकेली
जान रह गई है।” मैना
सिसकने लगी। तोते ने कहा, “मैना
इतना दु:खी क् जिसका कोई नहीं
होता, उसका भगवान होता
है।” फिर कुछ चुप
रहकर बोला, “अब कुछ परबीती
कहो।” मैना ने कहा, “क्या
कहूं, चारों तरफ दु:ख है। इस
जहाज पर दो बड़े प्यारे लोग हैं, लेकिन हाय!” मैना
एकदम खामोश हो गई। फिर उसने
कहा, “इनकी सांसें गिनी
चुनी हैं! बेचारे !” तोता
व्यथित हो उठा। बोला, “रुक-रुक
कर क्यों बोलती हो। साफ-साफ कहो
कि इन्हें क्या होने वाला है।” मैना
ने कहा, “सवेरे यह
जहाज किनारे लग जायेगा। वहां वजीर का
लड़का मिल जायेगा। उसने इन दोनों
के ठहरने की व्यवस्था एक घर में
की है। इनके ठहरने के कुछ ही देर बाद घर
ढह जायेगा। दोनों उसमें दब जायेंगे।” तोते
ने व्यथित होकर कहा, “यह तो
बड़ा बुरा होगा, मैना। अभी इन बेचारों
ने दुनिया में देखा ही क्या है। क्या
इनके बचने का कोई उपाय नहीं
है?” “है।” बोली, “ये
वजीर के लड़के की बात न मानें और
उस घर में न ठहरें। अगर कोई सुनता
हो तो गांठ बांध ले कि अगर ये उस
घर में ठहरे तो इनके प्राण किसी
भी हालत में नहीं बचेंगे।” तोते
ने पूछा, ‘‘उसके
बाद तो खैरियत है न?’’ मैना
ने कहा, “कहावत है कि
मुसीबत कभी अकेली नहीं आती इनकी
मुसीबत यहीं खत्म नहीं
हो जाती। ये जहां ठहरेंगे, वहां
भी एक मुसीबत इनका पीछा कर रही
है। “वह क्या?”तोते
ने अधीर होकर पूछा। मैना
बोली, “सवेरे उठकर राजकुमारी
जैसे ही अपने जूते में पैर डालेगी, उसमें बैठा
सांप उसे काट लेगा।” तोते
के मुंह से निकला, “हे भगवान!” उसने
आहत होकर पूछा, “क्या
उससे बचने का कोई रास्ता
नहीं है?” मैना बोली, “रास्ता
सब चीजों का होता है। यदि
कोई सुनता हो तो राजकुम पहले
उठे और सांप को मारकर निकाल ले।” “वहां
से बचने के बाद तो फिर को
कोई बाधा नहीं है?” तोते ने
पूछा। “एक बाधा
और है।” मैना ने कहा। “एक बाधा
और है। “मैना ने कहा। “वह क्या?” “ये
दोनों एक उड़नखटोले में बैठेंगे।” मैना
बोली, “वह उड़नखटोला
ऊपर जाकर खराब हो
जायेगा और नीचे आ गिरेगा। उसमें ये दोनों
मर जायेंगे।” तोते ने कहा, “तुम्हारी
ये बातें सुन-सुनकर मेरा दिल बैठा
जा रहा है। जल्दी से बताओ कि
इस आफत से बचने का कोई मार्ग है?” मैना
ने कहा, “अगर कोई सुनता
हो तो वह इन्हें उड़नखटोले में न बैठने
दे। इन सब बाधाओं से पार जाने पर
इनकी जिन्दगी में आनंद ही आनंद है।” तोते
ने चैन की सांस ली। राजकुमार मैना
की एक-एक बात बड़े ध्यान से सुन रहा
था। अपने ऊपर आने वाली आपदाओं से वह
सिहर उठा, पर बचने
के उपाय जानकर उसे खुशी हुई। उसने मन
ही मन मैना का उपकार माना।
सवेरा होने में अब देर नहीं था। दोनों
पक्षी उड़ गये। किनारा भी तो अब दूर
नहीं था।
0 टिप्पणियाँ