नानक ! दुखिया सब संसार......
4 मार्च 1966, अजमेर।
दो मित्र चार-पाँच वर्ष के बाद एक-दूसरे से मिले और परस्पर खबर पूछने लगे। एक मित्र ने दुःखी आवाज में कहाः
"मेरे पास एक सुन्दर बड़ा घर था। दस बीघा जमीन थी। दस-बारह बैल थे। गायें थीं, पाँच बछड़े भी थे परन्तु मैंने वह सब खो दिया। मेरी पत्नी और मेरे बालक भी मर गये। मेरे पास केवल ये पहने हुए कपड़े ही रह गये हैं।"
यह सुनकर उसका मित्र हँसने लगा। उसको हँसता हुआ देखकर इसको गुस्सा आया। वह बोलाः
"त मेरा जिगरी दोस्त है। मेरी इस दशा पर तुझे दुःख नहीं होता और ऊपर से मजाक करता है? तुझे तो मेरी हालत देखकर दुःखी होना चाहिए।"
मित्र ने कहाः "हाँ....'तेरी बात सच्ची है। परन्तु अब मेरी बात भी सुनः मेरे पास पैंसठ बीघा जमीन थी। लगभग तीस मकान थे। मैंने शादी की तो 21 बालक हुए। लगभग तीस बैल और गायें थीं। सिंध नेशनल बैंक में पाँच लाख रुपये थे। मैंने वह सब खो दिया। मैंने अपनी परिस्थिति का स्मरण किया तो मेरी तुलना में तेरा दुःख तो कुछ भी नहीं है। इसलिए मुझे हँसी आ गयी।"
विचार करें तो संसार और संसार के नश्वर भोग-पदार्थों में सच्चा सुख नहीं है। यह सब आज है और कल नहीं। सब परिवर्तनशील है, नाशवान है।
एक सेठ प्रतिदिन साधु संतों को भोजन कराता था। एक बार एक नवयुवक संन्यासी उसके यहाँ भिक्षा के लिए आया। सेठ का वैभव-विलास देखकर वह खूब प्रभावित हुआ और विचारने लगाः
'संत तो कहते हैं कि संसार दुःखालय है, परन्तु यहाँ इस सेठ के पास कितने सारे सोने-चाँदी के बर्तन हैं ! सुख के सभी साधन हैं ! यह बहुत सुखी लगता है।' ऐसा मानकर उसने सेठ से पूछाः
"सेठजी ! आप तो बहुत सुखी लगते हैं। मैं मानता हूँ कि आपको कोई दुःख नहीं होगा।"
सेठजी की आँखों में से टप-टप आँसू टपकने लगे। सेठ ने जवाब दियाः "मेरे पास धन-दौलत तो बहुत है परन्तु मुझे एक भी सन्तान नहीं है। इस बात का दुःख है।"
संसार में गरीब हो या अमीर, प्रत्येक को कुछ न कुछ दुःख अथवा मुसीबत होती है। किसी को पत्नी से दुःख होता है तो किसी की पत्नी नहीं है इसलिए दुःख होता है। किसी को सन्तान से दुःख होता है तो किसी की सन्तान नहीं होती है इस बात का दुःख होता है। किसी को नौकरी से दुःख होता है तो किसी को नौकरी नहीं है इस बात का दुःख होता है।
कोई कुटुम्ब से दुःखी होता है तो किसी का कुटुम्ब नहीं है इस बात का दुःख होता है। किसी को धन से दुःख होता है तो किसी को धन नहीं है इस बात का दुःख होता है। इस प्रकार किसी-न-किसी कारण से सभी दुःखी होते हैं।
नानक ! दुखिया सब संसार....
तुम्हें यदि सदा के लिए परम सुखी होना है तो तमाम सुख-दुःख के साक्षी बनो। तुम अमर आत्मा हो, आनन्दस्वरूप हो.... ऐसा चिन्तन करो। तुम शरीर नहीं हो। सुख-दुःख मन को होता है। राग-द्वेष बुद्धि को होता है। भूख-प्यास प्राणों को लगती है। प्रारब्धवश जिन्दगी में कोई दुःख आये तो ऐसा समझो कि मेरे कर्म कट रहे हैं.... मैं शुद्ध हो रहा हूँ।
एक बार लक्ष्मण ने भगवान श्री राम से कहाः "कैकेयी को मजा चखाना चाहिए।"
भगवान श्री राम ने लक्ष्मण को रोका और कहाः
"कैकेयी तो मुझे मेरी माता कौशल्या से भी ज्यादा प्रेम करती है। उस बेचारी का क्या दोष? सभी कुछ प्रारब्ध के वश में है। केकेयी माता यदि ऐसा न करती तो बनवास कौन जाता और राक्षसों को कौन मारता? याद रखो कि कोई किसी का कुछ नहीं करता।
नाच नचे संसार मति, मन के भाई सुभाई।
होवनहार न मिटे कस, तोड़े यत्न कोढ़ कमाई।।

जो समय बीत गया वह बीत गया। जो समय बाकी रहा है उसका सदुपयोग करो। दुर्लभ योनि बार-बार नहीं मिलती इसलिए आज से ही मन में दृढ़ निश्चय करो कि 'मैं सत्पुरुषों का संग करके, सत्शास्त्रों का अध्ययन करके, विवेक और वैराग्य का आश्रय लेकर, अपने कर्त्तव्यों का पालन करके इस मनुष्य जन्म में ही मोक्ष पद की प्राप्ति करूँगा.... सच्चे सुख का अनुभव करुँगा।' इस संकल्प को कभी-कभार दोहराते रहने से दृढ़ता बढ़ेगी।