आत्मशिव में आराम पाने का पर्व : महाशिवरात्रि
                    फाल्गुन (गुजरात-महाराष्ट्र में माघ) कृष्ण चतुर्दशी को 'महाशिवरात्रि' के रूप में मनाया जाता है। यह तपस्या, संयम, साधना बढ़ाने का पर्व है, सादगी व सरलता से बिताने का दिन है, आत्मशिव में तृप्त रहने का, मौन रखने का दिन है।
                    महाशिवरात्रि देह से परे आत्मा में, सत्यस्वरूप शिवतत्त्व में आराम पाने का पर्व है। भाँग पीकर खोपड़ी खाली करने का दिन नहीं है लेकिन रामनाम का अमृत पीकर हृदय पावन करने का दिन है। संयम करके तुम अपने-आपमें तृप्त होने के रस्ते चल पडो, उसीका नाम है महाशिवरात्रि पर्व।
                    महाशिवरात्रि जागरण, साधना, भजन करने की रात्रि है। 'शिव' का तात्पर्य है 'कल्याण' अर्थात यह रात्रि बड़ी कल्याणकारी है। इस रात्रि में किया जानेवाला जागरण, व्रत-उपवास, साधन-भजन, अर्थ सहित शांत जप-ध्यान अत्यंत फलदायी माना जाता है। 'स्कन्द पुराण' के ब्रह्मोत्तर खंड में आता है : 'शिवरात्रि का उपवास अत्यंत दुर्लभ है। उसमें भी जागरण करना तो मनुष्यों के लिए और दुर्लभ है। लोक में ब्रह्मा आदि देवता और वसिष्ठ आदि मुनि इस चतुर्दशी की भूरि-भूरि प्रशंसा करते हैं। इस दिन यदि किसी ने उपवास किया तो उसे सौ यज्ञों से अधिक पुण्य होता है। '
                    'जागरण' का मतलब है जागना। जागना अर्थात अनुकूलता-प्रतिकूलता में न बहना, बदलनेवाले शरीर-संसार में रहते हुए अब्दल आत्मशिव में जागना। मनुष्य-जन्म कही विषय-विकारों में बरबाद न हो जाय बल्कि अपने लक्ष्य परमात्म-तत्त्व को पाने में ही लगे - इस प्रकार की विवेक-बुद्धि से अगर आप जागते हो तो वह शिवरात्रि का 'जागरण' हो जाता है।
                    आज के दिन भगवान साम्ब-सदाशिव की पूजा, अर्चना और चिंतन करनेवाला व्यक्ति शिवतत्त्व में विश्रांति पाने का अधिकारी हो जाता है। जुड़े हुए तीन बिल्वपत्रों से भगवान शिव की पूजा की जाती है, जो संदेश देते हैं कि ' हे साधक ! हे मानव ! तू भी तीन गुणों से इस शरीर से जुड़ा है। यह तीनों गुणों का भाव 'शिव-अर्पण' कर दें, सात्विक, राजस, तमस प्रवृतियाँ और विचार अन्तर्यामी साम्ब-सदाशिव को अर्पण कर दे। '
                    बिल्वपत्र की सुवास तुम्हारे शरीर के वात व कफ के दोषों को दूर करती है। पूजा तो शिवजी की होती है और शरीर तुम्हारा तंदुरुस्त हो जाता है। भगवान को बिल्वपत्र चढ़ाते-चढ़ाते अपने तीन गुण अर्पण कर डालो, पंचामृत अर्पण करते-करते पंचमहाभूतों का भौतिक विलास जिस चैतन्य की सत्ता से हो रहा है उस चैतन्यस्वरूप शिव में अपने अहं को अर्पित कर डालो तो भगवान के साथ तुम्हारा एकत्व हो जायेगा। जो शिवतत्त्व है वही तुम्हारा आत्मा है और जो तुम्हारा आत्मा है वही शिवस्वरूप परमात्मा है।
                    शिवरात्रि के दिन पंचामृत से पूजा होती है, मानसिक पूजा होती है और शिवजी का ध्यान करके हृदय में शिवतत्त्व का प्रेम प्रकट करने से भी शिवपूजा मानी जाती है। ध्यान में आकृति का आग्रह रखना बालकपना है। आकाश से भी व्यापक निराकार शिवतत्त्व का ध्यान .......! 'ॐ....... नमः ........ शिवाय.......' - इस प्रकार प्लुत उच्चारण करते हुए ध्यानस्थ हो जायें।
                    शिवरात्रि पर्व तुम्हें यह संदेश देता है कि जैसे शिवजी हिमशिखर पर रहते हैं, माने समता की शीतलता पर विराजते हैं, ऐसे ही अपने जीवन को उन्नत करना हो तो साधना की ऊँचाई पर विराजमान होओ तथा सुख-दुःख के भोगी मत बनो। सुख के समय उसके भोगी मत बनो, उसे बाँटकर उसका उपयोग करो। दुःख के समय उसका भोग न करके उपयोग करो। रोग का दुःख आया है तो उपवास और संयम से दूर करो। मित्र से दुःख मिला है तो वह आसक्ति और ममता छुडाने के लिए मिला है। संसार से जो दुःख मिलता है वह संसार से आसक्ति छुडाने के लिए मिलता है, उसका उपयोग करो।
                    तुम शिवजी के पास मंदिर में जाते हो तो नंदी मिलता है - बैल। समाज में जो बुद्धू होते हैं उनको बोलते हैं तू तो बैल है, उनका अनादर होता है लेकिन शिवजी के मंदिर में जो बैल है उसका आदर होता है। बैल जैसा आदमी भी अगर निष्फल भाव से सेवा करता है, शिवतत्त्व की सेवा करता है, भगवतकार्य क्या है कि 'बहुजनहिताय, बहुजनसुखाय' जो कार्य है वह भगवतकार्य है। जो भगवन शिव की सेवा करता है, शिव की सेवा माने हृदय में छुपे हुए परमात्मा की सेवा के भाव से जो लोगों के काम करता है, वह चाहे समाज की नजर से बुद्धू भी हो तो भी देर-सवेर पूजा जायेगा। यह संकेत है नंदी की पूजा का।
                    शिवजी के गले में सर्प है। सर्प जैसे विषैले स्वभाववाले व्यक्तियों से भी काम लेकर उनको समाज का श्रृंगार, समाज का गहना बनाने की क्षमता, कला उन ज्ञानियों में होती है।
                    भगवन शिव भोलानाथ हैं अर्थात जो भोले-भाले हैं उनकी सदा रक्षा करनेवाले हैं। जो संसार-सागर से तैरना चाहते हैं पर कामना के बाण उनको सताते हैं, वे शिवजी का सुमिरण करते हैं तो शिवजी उनकी रक्षा करते हैं।
                    शिवजी ने दूज का चाँद धारण किया है। ज्ञानी महापुरुष किसी का छोटा-सा भी गुण होता है तो शिरोधार्य कर लेते हैं। शिवजी के मस्तक से गंगा बहती है। जो समता के ऊँचे शिखर पर पहुँच गये हैं, उनके मस्तक से ज्ञान की तरंगें बहती हैं इसलिए हमारे सनातन धर्म के देवों के मस्तक के पीछे आभामण्डल दिखाया जाता है।
                    शिवजी ने तीसरे नेत्र द्वारा काम को जलाकर यह संकेत किया कि 'हे मानव ! तुझमे भी तेरा शिवतत्त्व छुपा है, तू विवेक का तीसरा नेत्र खोल ताकि तेरी वासना और विकारों को तू भस्म कर सके, तेरे बंधनों को तू जला सके। '
                    भगवान शिव सदा योग में मस्त है इसलिए उनकी आभा ऐसे प्रभावशाली है कि उनके यहाँ एक-दूसरे से जन्मजात शत्रुता रखनेवाले प्राणी भी समता के सिंहासन पर पहुँच सकते हैं। बैल और सिंह की, चूहे और सर्प की एक ही मुलाकात काफी है लेकिन वहाँ उनको वैर नही है। क्योंकि शिवजी की निगाह में ऐसी समता है कि वहाँ एक-दूसरे के जन्मजात वैरी प्राणी भी वैरभाव भूल जाते हैं। तो तुम्हारे जीवन में भी तुम आत्मानुभव की यात्रा करो ताकि तुम्हारा वैरभाव गायब हो जाय। वैरभाव से खून खराब होता है। तो चित्त में ये लगनेवाली जो वृत्तियाँ हैं, उन वृत्तियों को शिवतत्त्व के चिंतन से ब्रह्माकार बनाकर अपने ब्रह्मस्वरूप का साक्षात्कार करने का संदेश देनेवाले पर्व का नाम है शिवरात्रि पर्व।
                    समुद्र-मंथन के समय शिवजी ने हलाहल विष पीया है। वह हलाहल न पेट में उतारा, न वमन किया, कंठ में धारण किया इसलिए भोलानाथ 'नीलकंठ' कहलाये। तुम भी कुटुम्ब के, घर के शिव हो। तुम्हारे घर में भी अच्छी-अच्छी समग्री आये तो बच्चों को, पत्नी को, परिवार को दो और घर में जब विघ्न-बाधा आये, जब हलाहल आये तो उसे तुम कंठ में धारण करो तो तुम भी नीलकंठ की नाई सदा आत्मानंद में मस्त रह सकते हो। जो समिति के, सभा के, मठ के, मंदिर के, संस्था के, कुटुम्ब के, आस-पड़ोस के, गाँव के बड़े हैं उनको उचित है कि काम करने का मौका आये तो शिवजी की नाई स्वयं आगे आ जाये और यश का मौका आये तो अपने परिजनों को आगे कर दें।
                    अगर तुम पत्नी हो तो पार्वती माँ को याद करो, जगजननी, जगदम्बा को याद करो कि वे भगवान शिवजी की समाधि में कितना सहयोग करती है ! तो तुम भी यह विचार करो कि 'आत्मशिव को पाने की यात्रा में आगे कैसे बढ़े ?' और अगर तुम पत्नी की जगह पर हो तो यह सोचो कि 'पत्नी पार्वती की नाई उन्नत कैसे हो ?' इससे तुम्हारा ग्रहस्थ-जीवन धन्य हो जायेगा।
                    शिवरात्रि का पर्व यह संदेश देता है कि जितना-जितना तुम्हारे जीवन में निष्कामता आती है, परदुःखकातरता आती है, परदोषदर्शन की निगाह कम होती जाती है, दिव्य परम पुरुष की ध्यान-धरणा होती है उतना-उतना तुम्हारा वह शिवतत्त्व निखरता है, तुम सुख-दुःख से अप्रभावित अपने सम स्वभाव, इश्वरस्वभाव में जागृत होते हो और तुम्हारा हृदय आनंद, स्नेह, साहस एवं मधुरता से छलकता है।