Allopathy
और Convent Schools ने ही अयुर्वेद
और गुरूकुल का नाश किया।
आज
भी लागू है, भारत के विनाश के लिए
बनाया
गया ब्रिटिश चार्टर एक्ट 1813
अवश्य पढ़ें।
ईस्ट इंडिया
कंपनी के प्रारम्भिक दिनों में ही ईसाई मिशनरियों को ब्राटिश चार्टर एक्ट 1813
द्वारा लोगों को क्रिश्चियन बनाने और अँग्रेजी पढ़ाने की अनुमति दी गयी थी जिसे
समय-समय पर संशोधित किया गया था। इसके बाद तो अंग्रेजों ने भारत की जनता के पैसों
पर ही एक “इक्लेज़्टिकल डिपार्टमेंट” बनाया, जिसके
अधिकारी आर्चबिशप और बिशप होते थे। इस डिपार्टमेंट ने भारत के लगभग सभी नगरों के
सामरिक और प्रमुख स्थानों पर कब्जा कर भारतियों के धन से ही चर्च व स्कूल बनवाया
और शिक्षा तथा स्वास्थ्य (एलोपैथी अस्पताल) के नाम पर भारत की लाखों एकड़ जमीन
कब्ज़ा करके भारत के अंदर से गुरुकुल व आयुर्वेद का नामोनिशान मिटा दिया।
यह डिपार्टमेंट
भारत की स्वतन्त्रता तक बना रहा। भारत की तथाकथित स्वतन्त्रता के पश्चात भी सरदार
पटेल और राजेंद्र प्रसाद की आपत्तियों को दरकिनार करते हुये नेहरू और संविधान
रचनाकारों ने हिंदुओं के सांस्कृतिक अधिकारों का अतिक्रमण कर अल्पसंख्यकों के नाम
पर ईसाइयों और मुसलमानों को असीमित सांस्कृतिक अधिकार दे दिये। इसी कानून के तहत
ईसाई मिशनरियों को आज़ादी के बाद भी भारत में प्रवेश और अल्पसंख्यक (अँग्रेजी)
शिक्षा के नाम पर धर्म-प्रचार और धर्म परिवर्तन के अधिकार प्राप्त हुए जोकि आजतक
समाप्त नहीं किये जा सके हैं।
विदेशों से मिल
रहे अथाह पैसों पर ईसाई मिशनरी और मुसलमान प्रतिदिन हजारों हिंदुओं का धर्म
परिवर्तन करा रहे हैं। ये धर्म परिवर्तन के लिए सभी हथकंडे अपनाते हैं। प्रार्थना
सभा, चंगाई सभा, लव जेहाद इत्यादि नामों से हिंदुओं को
छला जाता है और कई बार तो ईसा और साई जैसें को हिन्दू देवी-देवताओं जैसा पेश किया
जाता है ताकि आसानी से हिंदुओं का धर्म परिवर्तन कराया जा सके।
और तो और, आज
खुद हिन्दू अपने बच्चों को अच्छी शिक्षा के नाम पर “कान्वेंट-शिक्षित” कहलाने
में गर्व महसूस करते हैं। यह कान्वेंट-शिक्षा का ही परिणाम है कि कुछ लोगों को
अपनी भाषा व धर्म छोटा लगता है। ऊपर से भारतीय संविधान द्वारा अल्पसंख्यकों के नाम
पर मुस्लिमों और ईसाइयो को दिये गए असीमित सांस्कृतिक अधिकार इस प्रवृति को बढ़ाने
में और मददगार साबित हो रहे हैं।
इन दो पंथों के आक्रामक विस्तारवादी
प्रवृति के कारण हिन्दू लोग एक दूसरे के दुश्मन बन गए हैं और भारत के प्राकृतिक
संसाधनों पर इन विदेशी चरमपंथियों का अल्पसंख्यक के अधिकारों के नाम पर कब्जा हो
गया है। ये लोग पश्चिमी स्वामित्व की भारतीय मीडिया को इस्तेमाल करके ‘भारत
के टुकड़े-टुकड़े’ करने का षडयंत्र कर रहे हैं। इनके षडयंत्रों को
देखते हुये यह बात सिद्ध हो जाती है कि भारत में हिंदुओं की संख्या घटते ही देश
बटँ जाएगा और भारत में खूनी संघर्ष शुरू हो जाएगा। जिसके लक्षण दिखाई देने लगे हैं।
इसी ब्राटिश
चार्टर एक्ट 1813 के तहत भारतीय पाठ्य पुस्तकों से रामायण, महाभारत, पंचतंत्र
आदि भारतीय महाग्रन्थों को योजना बना कर हटवाया गया और उनकी जगह पर पाकिस्तान
प्रेम और ईसाई-सेकुलरवाद को बढ़ावा देने वाली कहानियों को बच्चों को पढ़ाया जाने
लगा। यह सिलसिला अभी भी जारी है। भारतीय सांस्कृतिक की हत्या हेतु ही “शिक्षा
के अधिकार” (RTE) अधिनियम 2009 को
हिन्दुओं द्वारा चलाये जा रहे निजी स्कूलों पर थोप दिया गया जबकि अल्पसंख्यकों के
नाम पर मुस्लिम और ईसाई स्कूलों को इससे मुक्त रखा गया है। यहाँ तक की दूरदर्शन
द्वारा प्रारम्भ से ही प्रयोग किए जा रहे “सत्यम शिवम
सुंदरम” आदर्शवाक्य को बस इसलिए हटवाया क्योंकि यह
उपनिषदों से है जो की हिन्दुओं के महान ग्रंथो में से एक है।
इसी ब्राटिश
चार्टर एक्ट 1813 के तहत हिन्दुओं को सांस्कृतिक और सामरिक रूप
से कमजोर करने के लिए आज भी हिन्दू तीर्थों, मेलों और
आयोजनों पर अतिरिक्त कर लगाया जाता है जबकि मुस्लिम और ईसाई आयोजनों के लिए
हिन्दुओं से ही वसूला गया “कर” मुफ्त में
लूटाया जाता है। हमें यह बातें बिलकुल ही बुरी नहीं लगती क्यों कि हम हमेशा से यह
देखते आए हैं और हमारी सोच व मानसिकता को पाठ्य-पुस्तकों और समाचार संचार माध्यमों
से इस तरह की बना दी गयी है।
मुस्लिम और ईसाई
आज भले ही हिंदुओं की तुलना में कई गुना कम हों पर उनके चर्च और वक्फ बोर्ड के पास
हिन्दू-मंदिरों के मुक़ाबले कई-गुना ज्यादा जमीन-जायजाद व संपन्नता है फिर भी
नेताओं को मंदिरों में पड़ा सोना ही दिखाई देता है, मुस्लिम और
ईसाईयों की संपत्ति का हिसाब माँगने का साहस किसी राजनेता में नहीं दिखाई देता है।
आखिर हिन्दू इसी
ब्राटिश चार्टर एक्ट 1813 के तहत सभ्यता और संस्कृति के इस
क्षद्म-युद्ध को कब तक झेलेगा। हिन्दू सभ्यता
और संस्कृति विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक है, जिसे
ये दोनों चरमपंथी तमाम कोशिशों के बाद भी पूरी तरह खत्म नहीं कर पाये हैं। हालांकि
ये अभी भी प्रयासरत हैं। हमें इनके षड्यंत्र को समझते हुये अपनी संस्कृति को
पुनर्जीवित करना होगा। साथ ही अपने अस्तित्व के लिये विश्व के किसी भी मूल
संस्कृति पर ईसाई और इस्लाम द्वारा हो रहे हमले का प्रतिकार करना होगा।
अगर
हम आजाद हैं तो भारत के शोषण व लूट का ब्राटिश चार्टर आज भी भारत में क्यों लागू
है ?
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