अनुशासन
व प्रेम के समन्वय से जीवन होता समुन्नत।
विज्ञानियों
ने सुन रखा था कि भँवरी कीड़े को उठाकर ले आती है और अपने बनाये मिट्टी के घरौंदे
में रखती है तथा कीड़ा भँवरी का चिंतन करता है और भँवरी हो जाता है ।
मैं
गुफा में तपस्या कर रहा था तो मेरी गुफा में भी भँवरी ने मिट्टी का घर बनाया था और
कीड़ा उठा के लायी थी । मैं उसे देखता था, फिर क्या होता
है उस पर भी मैंने निगरानी रखी । हरे रंग का कीड़ा-सा होता है, उसकी
1 से.मी. लम्बाई हुई होगी । उसे उठा के भँवरी ने अपने घर में रखा ।
विज्ञानियों
ने देखा कि भँवरी उठाकर लाती है तो उन्होंने तो बड़े सूक्ष्म यंत्रों के द्वारा
जाँच की । कीड़े को अंदर रखते समय भँवरी एक डंक मार देती है, वह
छटपटाता है । डंक की पीड़ा से कुछ पसीना-सा निकलता है । समय पाकर वही पसीना जाला-सा
बन जाता है । दूसरा डंक मारती है तो वह जाला पूरे शरीर के दो भागों में विभक्त हो
जाता है । तीसरा डंक मारती है तो वही जाला पंख के रूप में फटता है और वह कीड़ा
भँवरी बन के उड़ान भरता है ।
विज्ञानियों
ने एकदम सूक्ष्म यंत्र बनाये कैंची जैसे । अब कीड़े पर भँवरी का पहला डंक लगा तो
पसीना हुआ, कुछ जाला बना । दूसरा डंक लगा, जाले
के दो हिस्से हुए । अब भँवरी का तीसरा डंक न लगे इसलिए उन्होंने उसके जाले को काट
दिया । तीसरे डंक की मुसीबत से तो बचाया लेकिन वह कीड़ा उड़ने के काबिल न रहा ।
अगर
उड़ान भरने के काबिल बनाना है तो उसे तीसरे डंक की भी आवश्यकता थी, यह
विज्ञानियों ने स्वीकार किया । ऐसे ही तुम परमात्मा के सपूत हो, परमात्मा
ने तुम्हें संसार में भेजा है । तुम अगर गलत ख्वाहिशें करते हो, गलत
जीवन जीते हो तो उसका परिणाम गलत आता है, जिससे तुम्हारी
समझ बढ़े और तुम अपने पैरों पर खड़े रहो । तुमने देखा-सुना होगा कि बच्चा चलते-चलते
गिर जाता है तो मूर्ख माँ-बाप उसको तुरंत गले लगा लेते हैं लेकिन जो बुद्धिमान
माता-पिता हैं वे बोलते हैं, ‘अरे, कुछ नहीं, हिम्मत
कर बेेटा ! उठ, गिर गया तो कोई बात नहीं ।’ उसको
हिम्मत देते हैं और अपने बल से उठना सिखाते हैं । अगर तुम दुःखों में, कष्टों
में हो और कहो कि वह (परमात्मा) दयालु है, तुम्हें उठा ले
तो तुम भोंदू बन जाओगे, ढीले-ढाले बन जाओगे । अगर दुःखों और
कष्टों में तुम जूझते-जूझते, सत्संग सुनकर दुःख और सुखों को पैरों
तले कुचल के उस परमात्मा को पा लेते हो तो उसको खुशी होती है कि ‘मेरा
बेटा अपनी हिम्मत से आया है, मेरा सपूत है ।’
प्रधानाचार्य
समर्थ है किसी बच्चे को पास करा देने में ऐसा विचार कर उसका बेटा उसीके विद्यालय
में जाय तथा पढ़े-लिखे नहीं और प्रधानाचार्य दयालु भी है, समर्थ
भी है और उसे पास करता ही चला जाय तो बेेटे का हित होगा कि अहित होगा ? उसने
बेटे के साथ न्याय किया कि अन्याय किया ? उसने दयालुता की
कि दयालुता का दुरुपयोग किया ? यह दयालुता का दुरुपयोग होगा ।
जो
माँ-बाप बच्चों को बहुत चढ़ाते हैं, बहुत मान देतेे
हैं, उनके बच्चे बिगड़ जाते हैं । जरा-सा कुछ हुआ तो ‘प्यारे
! मेरे मुन्ना ! मीठा खा ले...’ कभी-कभी तो करो, ठीक
है लेकिन बच्चा गलती करता है, बाप डाँटता है तो माँ बोलती है, ‘नहीं
डाँटो, बच्चा है ।’ बच्चे को बोलती है कि ‘तेरे
पिता ठीक नहीं ।’ अरे, तुमने तो कमजोर
बना दिया उसको । ज्यादा लाड़ लड़ाने से बच्चे का मन कमजोर हो जायेगा । ज्यादा डाँटो
भी मत, ज्यादा लाड़ भी मत लड़ाओ । कभी पिता बच्चे को डाँटता है तो माँ उसको
ज्यादा लाड़ नहीं करे और कभी माँ उसको समझाती है तो पिता बीच में न पड़े ।
और
कभी-कभी तो माँ-बाप ऐसा डाँट-डाँट करते हैं कि बच्चा बेचारा बिगड़ जाता है तथा कभी
दोनों बहुत लाड़-प्यार करते हैं तो भी बिगड़ जाता है । माँ का स्नेह चाहिए और बाप का
अनुशासन चाहिए । प्रभु की तरफ से कभी अनुकूलता तो कभी प्रतिकूलता चाहिए, तभी
घड़ा गढ़ेगा । जो गर्मियों की गर्मी नहीं सह सकता है वह बारिश का मजा क्या लेगा ! जो
बारिश का मजा नहीं ले सकता है वह खेती करने का स्वाद क्या लेगा ! जो खेती का स्वाद
नहीं लेता है वह फलों का स्वाद क्या लेगा ! तो भैया ! जिसको बारिश का रिमझिम जल
चाहिए उसको गर्मियों की गर्मी भी स्वीकार करनी पड़ती है तथा बारिश का मौसम भी
स्वीकार करना पड़ता है और फिर बारिश के द्वारा हुए फल-फूल भी उसीके भाग्य में होते
हैं ।
जीवन
में जो कुछ आये उसे स्वीकृति दो । अपमान आये और सोचे, ‘इसने
अपमान कर दिया, इसका बदला लूँगा ।’ तो
कितने-कितने का बदला लेगा ? जिसे अपमान की चोट लगती है ऐसे अपने ही
मन से बदला ले ले, झंझटप्रूफ बना दे और क्या है !
तू
तो भगवान का है और भगवान तेरा है । अपने मन को देख, दुःखी हुआ तो
देख, सुखी हुआ तो देख, अहंकारी हुआ तो देख, नम्र
हुआ तो देख । मन से संबंध-विच्छेद कर दे तो भगवान के प्रति अनन्य भाव जागृत हो
जायेगा, अपने आत्मस्वरूप का साक्षात्कार हो जायेगा ।
--------------
0 टिप्पणियाँ