श्रद्धा एवं भक्ती का उत्कट दर्शन करानेवाली जगन्नाथ रथयात्रा !
पुरी (ओडिसा) के भगवान जगन्नाथ के विश्वविख्यात रथयात्रा के उपलक्ष्य में . . .

                                 इस वर्ष पुरी (ओडिसा) में २५ जून २०१७ से विश्वकविख्यात जगन्नाथ रथयात्रा आरंभ होगी। यह यात्रा अर्थात् भगवान श्री जगन्नाथ के अर्थात् विश्वगउद्धारक भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए एक महान आैचित्त्य ही है ! पुरी का मंदिर कलियुग के चार धामों में से एक है। केवल भारत के ही नहीं, तो यह यात्रा विश्वह के श्रद्धालुओं के श्रद्धा एवं भक्ति का उत्कट दर्शन कराती है। यह विश्व  की सबसे महान यात्रा है। लक्षावधी विष्णुभक्त यहां इकठ्ठा होते हैं। इस स्थान की विशेषता यह है कि, अन्य अधिकांश मंदिरों में श्रीकृष्ण पत्नी के साथ विराजमान है; किंतु इस मंदिर में वे भाई बलराम तथा बहन सुभद्रा के साथ विराजमान हैं। पुरी विष्णुभूमि है। अन्य अनेक बुद्धिअगम्य विशेषताओं के साथ प्रकर्ष से ध्यान में आनेवाली बात यह है मंदिर के सिंहद्वार से अंदर प्रवेश करते ही समुद्र का आवाज बिलकुल बंद होती है; किंतु संपूर्ण पुरी शहर में अन्यत्र कहीं भी गए, तो समुद्र की आवाज आती ही रहती हैै। ऐसे अलौकिक मंदिर की रथयात्रा का इतिहास, प्राचीन विशेषताएं तथा सद्यस्थिती का दर्शन इस लेख द्वारा आगे के हिस्से में करेंगे !
                                  रथयात्रा के उपलक्ष्य में श्री जगन्नाथ के चरणों में यह प्रार्थना है कि, ‘परात्पर गुरु डॉ. आठवलेजी द्वारा कलियुग में किया जानेवाला धर्मसंस्थापना का कार्य शीघ्रातिशीघ्र पूर्णत्व की ओर जाएं तथा हिन्दू राष्ट्र की स्थापना हेतु हम साधकों को आशीर्वाद प्राप्त हो !
१. रथयात्रा में अग्रस्थान में श्री बलराम, बीच में सुभद्रा माता तथा पीछे भगवान जगन्नाथ इस प्रकार क्रम होता है !
                               पुरी का जगन्नाथ मंदिर भारत के ४ पवित्र तीथक्षेत्रों में से एक है। भगवान श्रीकृष्ण जगन्नाथ के रूप मे विराजमान हुए हैं। वर्तमान का मंदिर 800 वर्षों से अधिक प्राचीन है। भगवान श्रीकृष्ण के साथ उनके बडे भाई श्री बलराम तथा उनकी बहन सुभद्रादेवी का भी पूजन यहां किया जाता है। पुरी रथयात्रा के लिए श्री बलराम, श्रीकृष्ण तथा देवी सुभद्रा के लिए 3 पृथक रथ सिद्ध किए जाते हैं। इस रथयात्रा में सबसे आगे श्री बलराम का रथ, बीच में सुभद्रादेवी तथा तत्पश्चा त् भगवान जगन्नाथ का (श्रीकृष्ण का) रथ रहता है।
२. तीनों रथों को दिए गए विशेषतापूर्ण नामं तथा उनकी पृथक प्रकार की विशेषताएं !
१. श्री बलराम के रथ को तालध्वजकहा जाता है। इस रथ का रंग लाल तथा हरा रहता है। देवी सुभद्रा के रथ को दर्पदलनअथवा पद्मरथकहा जाता है। वह काला, निला अथवा लाल रंग का रहता है। भगवान जगन्नाथ के रथ को नंदीघोषअथवा गरूडध्वजकहा जाता है। उस रथ का रंग लाल अथवा पिला रहता है।
२. श्री बलरामजी के रथ की ऊंचाई ४५ फीट, सुभद्रादेवी के रथ की ऊंचाई ४४.६ फीट, तो भगवान जगन्नाथ के नंदीघोष रथ की ऊंचाई ४५.६ फीट रहती है।
३. इन तीनों रथों की विशेषताएं इस प्रकार है, ये तीनों रथ कडुनिंब के पवित्र एवं परिपक्व लकडियों से तैयार किए जाते हैं। उसके लिए कडुनिंब का निरोगी एवं शुभ पेड चुना गया है। उसके लिए एक विशेष समिति भी स्थापन की गई है। इन रथों की सिद्धता में किसी भी प्रकार के खिले अथवा अन्य किसी भी प्रकार के धातु का उपयोग नहीं किया जाता।
४. रथ हेतु आवश्यक लकडी मुहुर्त पर चुनी जाती है। उसके लिए वसंत पंचमी का दिन चुना जाता है। उस दिन से इस लकडियों को चुनना आरंभ होता है। प्रत्यक्ष रथ की निर्मिति को अक्षय्य तृतीया से प्रारंभ होता है।
५. ये तीनों रथ सिद्ध होने के पश्चाषत् छर पहनरानाम का अनुष्ठान किया जाता है। इस के अंतर्गत पुरी के गजपति राजा पालकी से आकर इन तीनों रथों का विधीवत् पूजन करते हैं। उस समय सोने के बुतारे से रथ का मंडप तथा मार्ग साफ करने की प्रथा है।
६. तत्पश्चारत् रथ का प्रस्थान होता है। आषाढ शुक्ल पक्ष द्वितीया को रथयात्रा आरंभ होती है। उस दिन ढोल, नगारे, तुतारी तथा शंख की ध्वनी में भक्तगण इस रथ को खिंचते हैं। श्रद्धालुओं की यह श्रद्धा है कि, यह रथ खींचने की संधी जिसे प्राप्त होती है, वह पुण्यवान माना जाता है। पौराणिक श्रद्धा के अनुसार यह रथ खींचनेवाले को मोक्षप्राप्ती प्राप्त होती है।

३. भगवान जगन्नाथ मौसी के यहां ७ दिन निवास करते हैं !
१. जगन्नाथ मंदिर से इस रथयात्रा का आरंभ होता है। यह रथयात्रा पुरी शहर से भ्रमण करते हुए गुंडक्ष के मंदिर में पहुंचती है। वहां भगवान जगन्नाथ, श्री बलराम तथा सुभद्रादेवी ७ दिन निवास करते हैं।
२. गुंडीचा मंदिर को गुंडीचा बाडीइस नाम से भी पहचाना जाता है। यह भगवान जगन्नाथ के मौसी का घर है। यहां विश्वतकर्मा ने भगवान जगन्नाथ, श्री बलराम तथा सुभद्रादेवी की प्रतिमाएं निर्माण की थी।
३. रथयात्रा के तिसरे दिन अर्थात् पंचमी को लक्ष्मी, भगवान जगन्नाथ को ढूंढते हुए आती है। किंतु उस समय देतापति द्वार बंद करते हैं; इसलिए देवी रूठकर रथ का पैर तोडती है तथा हेरा गोहिरी साही (यह क्षेत्र पुरी में है।) क्षेत्र में देवी लक्ष्मी के मंदिर में लौट जाती है।
४. ऐसी परंपरा है कि, तत्पश्चा त् स्वयं भगवान जगन्नाथ रूठी हुई देवी लक्ष्मी को मनाते हैं। इस उत्सव के माध्यम से इस प्रकार अद्भुत भक्तिरस उत्पन्न होता है।
५. आषाढ माह के १९ वे दिन यह रथ मुख्य मंदिर की ओर प्रस्थान करता है। रथ के लौटने की इस यात्रा को बहुडा यात्राकहा जाता है।
६. श्री जगन्नाथ मंदिर में लौटने के पश्चामत् भी सभी प्रतिमाएं रथ में ही रखी जाती हैं। उनके लिए मंदिर के द्वार दूसरे दिन अर्थात् एकादशी के दिन खुले किए जाते हैं। उस समय प्रतिमाओं को विधीवत् स्नान कर वैदिक मंत्रोच्चारों के साथ पुनर्प्रतिष्ठापना की जाती है।
७. पुरी का रथोत्सव एक सामुहिक उत्सव है। इस कालावधी में पुरी में निवास करनेवाले श्रद्धालु अनशन नहीं करते। समुद्रकिनारे पर निवास करनेवाले पुरी में मनाएं जानेवाले भगवान जगन्नाथ के विश्वाविख्यात रथयात्रा का साक्षीदार होना, एक परमभाग्य माना जाता है। पूरे वर्ष में मन में इसी भाव-भक्ति का स्मरण रखते हुए श्रद्धालु अगले वर्ष की रथयात्रा की बडी आतुरता के साथ प्रतीक्षा करते हैं। रथयात्रा के निमित्त पाई जानेवाली श्रद्धा एवं भक्ति पूरे विश्वु में कहीं भी नहीं पाई जाती। अतएव यह उत्सव दुर्मिळ एवं अद्वितीय है। (संदर्भ : संकेतस्थल)

श्री जगननाथ मंदिर की अद्भुत एवं बुधिअग्म्य विशेषताएं !

                             अनुमान से ८०० वर्ष प्राचीन इस मंदिर की वास्तुकला इतनी भव्य है कि, संशोधन करने के लिए विश्व  से वास्तुतज्ञ इस मंदिर को भ्रमण करते हैं। यह तीर्थक्षेत्र भारत के ४ पवित्र तीर्थक्षेत्रों मेंसे एक है। श्री जगन्नाथ मंदिर की ऊंचाई २१४ फीट है। मंदिर का क्षेत्रफल ४ लक्ष वर्गफीट में फैला हुआ है। पुरी के किसी भी स्थान से मंदिर के कळस पर विद्यमान सुदर्शन चक्र देखने के पश्चा्त् वह अपने सामने ही होने का प्रतीत होता है। मंदिर पर विद्यमान ध्वज निरंतर हवा के विरूद्ध दिशा से लहराता है। (प्रत्येक सूत्र का बुद्धि के स्तर पर छेद करनेवाले बुद्धिजीवियों को यह मंदिर अर्थात् एक चपराक ही है ! इस से हिन्दु धर्म का अद्वितीय महत्त्व ध्यान में आता है ! संपादक, दैनिक सनातन प्रभात) प्रतिदिन सायंकाल के समय मंदिर पर लहरानेवाले ध्वज को परिवर्तित किया जाता है। साधारण रूप से प्रतिदिन हवा समुद्र से भूमि की ओर बहती है तथा सायंकाल के समय उसके विरूद्ध जाती है; किंतु पुरी में उसके उलट प्रक्रिया घटती है। मुख्य घुमट की छाया दिन के किसी भी समय अदृश्य ही रहती है। यहां पंछी तथा विमान विहरते हुए कभी भी दिखाई नहीं देंगे। भोजन हेतु मंदिर में पूरे वर्ष तक खाना खा सकेंगे, इतनी अन्नसामुग्री रहती है। विशेष रूप से यह बात है कि, यहां महाप्रसाद बिलकुल व्यर्थ नहीं जाता। इस मंदिर का मुदपाकखाना विश्वह के किसी भी मंदिर में होनेवाले मुदपाकखाने से अधिक बडा है। यहां महाप्रसाद बनाते समय मिठ्ठी के बर्तन एक के ऊपर एक रखकर किया जाता है। सर्व अन्न लकडी प्रज्वलित कर उसके अग्नि पर पकाया जाता है। इस विशाल मुदपाकखाने में भगवान जगन्नाथ को पसंद रहनेवाला महाप्रसाद बनाया जाता है। उसके लिए ५०० रसोईयां तथा उनके ३०० सहाय्यक एक ही समय पर सेवा करते हैं।
हिन्दुओं का महान तीर्थक्षेत्र होनेवाले श्री जगन्नाथ मंदिर की दुःस्थिती !
                                    सद्गुरु (श्रीमती) अंजली गाडगीळ के साथ भारत के तीर्थक्षेत्र में दैवी यात्रा करते समय अपने मंदिरों की, मठों की, केवल इतना ही नहीं, तो ऐतिहासिक वास्तुओं की दुर्दशा प्रत्यक्ष अनुभव करने की संधी प्राप्त हुई। अधिकांश मंदिर दुर्लक्षित हैं। मंदिरों में आनेवाले श्रद्धालुओं के लिए आवश्यक सुविधाओं का अभाव है। पुरी के विश्वरविख्यात जगन्नाथमंदिर की सफाई की गंभीर दुःस्थिती यहां प्रकाशित कर रहे हैं।
१. मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार के अंदर की ओर सर्वत्र पान खाकर उसकी पिचकारियां दिखाई देती हैं। अतः मंदिर के परिसर में प्रवेश करते समय यह प्रश्न् उत्पन्न होता है कि, ‘क्या हम किसी शौचालय में तो प्रवेश नहीं कर रहे है ?’
२. यहां का प्रत्येक पंड्या (पुजारी) तंबाखू खाकर बातचीत करता हुआ पाया जाता है। मुंह मे पान एवं तंबाखू ऐसे ही स्थिती में ये पंड्या मंदिर के गर्भगृह में खडे रहते हैं। गर्भगृह के कोने भी उनके मुंह के पान के पिचकारियों से रंगे हैं।
३. मंदिर में प्रवेश करते समय मंदिर का पानी जहां से बाहर जाता है उसी गंदे नाले में ही लोग शौच करते हुए दिखाई दिए।
४. वास्तविक प्रत्येक व्यक्ति को ही गर्भगृह में जाकर निकट से दर्शन करने की संधी इस मंदिर में है। अपितु मंदिर में गर्भगृह में दर्शन हेतु पहुंचने के पश्चाभत् वहां उपस्थित पंडा हर कदम पर ५००-१००० रुपएं मांगते हैं। ईश्वसर का दर्शन प्राप्त करने के लिए सहज है कि भक्त यह धन देते हैं। किंतु जो धन देने में असमर्थ हैं, उन्हें नजीक से दर्शन प्राप्त नहीं होता। कमाल की बात यह है कि, दर्शन का धन पृथक तथा ईश्वसर को आरती-नैवेद्य दिखाने का धन पृथक रहता है। वास्तविक रूप से पंडो द्वारा श्रद्धालुओं की होनेवाली यह लूट ही है !
५. मंदिर में भगवान के लिए सिद्ध किए जानेवाले नैवेद्य के लिए संपूर्ण आशिया खंड का सबसे महान मुदपाकखाना यहां है। वहां भी अधिक मात्रा में अस्वच्छता दिखाई देती है। मुदपाकखाने में गंदा पानी बहनेवाले मार्ग पर कार्इ आयी है। इस मुदपाकखाने के परिसर की भूमि पंकयुक्त तथा फिसलाऊ हुई है। यहां सदैव लोगों की भीड रहती है, इसलिए एेसी फिसलाऊ भूमि पर कभी भी दुर्घटना हो सकती है। श्री. सत्यकाम कणगलेकर, सनातन आश्रम, रामनाथी, गोवा
ब्रह्मपरिवर्तन करने का विधी करते समय इस प्रकार का प्रमाद हुआ !
                             प्रत्येक १९ वर्षों के पश्चानत् श्री जगन्नाथ मंदिर के श्री जगन्नाथ, श्री बलराम तथा श्री देवी सुभद्रा इन देवताओं की काष्ठमूर्तियों का नवकलेवरविधी किया जाता है। नवकलेवरअर्थात् पुरानी प्रतिमा का विसर्जन कर नई प्रतिमा की स्थापना की जाती है। जेष्ठ अमावस्या की रात्रि पूरे अंधेरे में पुरानी प्रतिमा के अंदर होनेवाला अलौकिक पदार्थ (इसे ही ब्रह्मकहते हैं) पति महापात्र (मुख्य पुजारी) द्वार बंद कर, आंखों को पट्टी बांधकर, हाथ को कपडा लपेटकर ब्रह्मबाहर निकाला जाता है तथा नई प्रतिमा में उसकी स्थापना की जाती है। ब्रह्मका अर्थ यह है कि, नई प्रतिमा बनाते समय उसके नाभी के स्थान पर एक द्वार होनेवाला छोटा खाना तैयार किया जाता है। पुरानी प्रतिमा में होनेवाला ब्रह्म’ (वह क्या है, यह किसी को भी पता नहीं है। क्योंकि ब्रह्मपरिवर्तन करनेवाले पुजारी की आंखे बंद रहती है; साथ ही हाथ को भी कपडा लपेटा जाने के कारण स्पर्शज्ञान करना भी असंभव रहता है। ) निकालकर नई प्रतिमा में उसकी स्थापना करते हैं। २०१५ में ब्रह्मपरिवर्तन करने का समय १५ जून की अमावस्या को प्रातः ४:१५ बजे का घोषित किया गया था। नियम के नुसार चार दैतापतियों ने जाकर चार प्रतिमाओं का ब्रह्मपरिवर्तित करना आवश्यक था; किंतु उनके साथ उनके परिवार के अनेक सदस्यों ने अर्थात् लगभग २८ सदस्यों ने हटवादीपन कर उस दालन में प्रवेश किया। किंतु अंदर क्या हुआ, वह जगन्नाथ को ही पता होगा ! क्योंकि तत्पश्चाटत् उस ब्रह्मके छायाचित्रं भ्रमणभाष पर प्रकाशित किए गए। किंतु इस बात का पता नहीं है कि, वह छायाचित्र सत्य थे या झूठे ! प्रत्यक्ष ब्रह्म१६ जून को प्रातः १०:३० बजे परिवर्तित किया गया; किंतु उस घटना से ओडिसा के संतप्त श्रद्धालुओं ने, साथ ही पृथक राजनीतिक दल तथा संगठनों ने तीन बार ओडिशा बंदका आयोजन किया था। अधिवक्ताएं भी एक दिन बंद में सम्मिलित हुए थे।