गुरुआज्ञा, गुरुशक्ति और गुरुकृपा का प्रभाव

- श्री आनंदमयी माँ


गुरुकृपा पाने के लिए शिष्य का परम धर्म

            तुम्हारे में जितनी शक्ति है उसको गुरु महाराज के आदेश-पालन में लगा दो, बाकी जो होनेवाला होगा वह अपने-आप उनकी कृपा से होगा । अपनी सारी शक्ति को लगा के गुरु-आदेश पालन की कोशिश करनी चाहिए । अपने गुरु ही जगद्गुरु हैं ।
            एक बात खासकर सबको अवश्य याद रखनी चाहिए कि गुरुदेव के आदेशों का अक्षरशः पालन करना चाहिए । यही परम धर्म है ।गुरु का आदेश-पालन करते-करते शरीर चला जाय या रहे, एकनिष्ठ होना चाहिए । एकनिष्ठ हुए बिना भगवद्-राज्य में कैसे काम चलेगा ? जहाँ जाओ सिर्फ एक ही विचार करना चाहिए कि यह सब कुछ मेरे करुणामय गुरुदेव का ही है ।यह शुद्ध भाव अपने-आप प्रकट होता है ।
            जगत की हर वस्तु में अपने-अपने गुरु महाराज को और इष्टदेव को देखने की कोशिश करनी चाहिए ।
सद्गुरु के बतलाये मार्ग पर निष्ठापूर्वक लगे रहो
            सद्गुरु ने दीक्षा में जो मंत्र दिया है, उसका जप करो और अविचार से (उसमें अपनी बुद्धि से कुछ मिलाये बिना) सद्गुरु के आदेश का पालन करो, ऐसा करने से काम बन जायेगा ।
            जैसे बादल से सूर्य ढक जाता है, वैसे अज्ञान से आत्मा ढक जाता है । जैसे बादल हटने से सूर्य का प्रकाश मिलता है, वैसे ही अज्ञान, आवरण हटने से आत्मस्वरूप में स्थिति होती है । गुरु का उपदेश मान के साधन-भजन करो । ऐसा करते-करते आत्मज्ञान का रास्ता खुलता है । जीव शिव ही है, हरि और जगत एक ही हैं । तुमको यह सब जानने की क्यों इच्छा होती है ? कारण कि तुम ही ज्ञानस्वरूप हो इसलिए सब जानने की इच्छा होती है । जैसे जीव को जितना धन मिलता है, उससे और ज्यादा प्राप्त करने की इच्छा करता है । सब लोग बड़ा होना चाहते हैं - बड़ा माने स्वयं भगवान तुम्हारे पास हैं । एको ब्रह्म द्वितीयो नास्ति ।तुम्हारे सिवाय दूसरी कोई वस्तु है ही नहीं । भगवान कैसे मिलें या हमको अपना स्वरूप-ज्ञान कैसे हो ? जिस ज्ञान से अज्ञान-अंधकार हट जाता है, उसको लक्ष्य में रख के चलना चाहिए । साधन का विधान सद्गुरु ही बताते हैं । अपने सद्गुरु ने जो साधन बतलाया है उसको निष्ठापूर्वक करते रहना चाहिए । यही आत्मशांति का रास्ता है ।

गुरुकृपा व गुरुशक्ति का महत्त्व
            गुरुकृपा सदा बरस रही है । बर्तन औंधा (उलटा) होने से कृपा बह जाती है । बर्तन सीधा करके पकड़ना चाहिए । उसे सीधा करने का उपाय है कि गुरु जो उपदेश दें उसका अक्षरशः पालन करना । निरंतर अभ्यास करने से आवरण हटेगा और स्वरूप का ज्ञान-प्रकाश होगा । जीव अपने घर की ओर आयेगा । वासना रहने पर ही देहधारण अर्थात् दो-दो (द्वैत) है । अभ्यास के द्वारा उससे छुटकारा मिलता है । तुम जो नित्यमुक्त हो, उसके प्रकाश के लिए गुरुआज्ञा का पालन करना चाहिए । गुरुआज्ञा-पालन से कृपा प्राप्त होती है । स्वगति अर्थात् स्वरूप-प्रकाश की गति गुरुकृपा कर देती है । हेतु और अहेतु दो प्रकार से कृपा होती है । कर्म की फलप्राप्ति है हेतु कृपा । जब यह मालूम हो जाता है कि क्रिया अथवा साधना परमार्थ-वस्तु की दिशा नहीं है (अर्थात् ईश्वरप्राप्ति क्रियासाध्य नहीं, कृपासाध्य है), तब अहैतुकी कृपा होती है । उस अवस्था में वे उठा लेते हैं । गुरुशक्ति धारण करनी चाहिए । तुम्हारे भीतर जो रहता है उसका प्रकाश हो जाय । साधना के द्वारा भीतर की ज्ञानशक्ति विद्युत-संयोजन के तुल्य प्रकट होती है । तुम्हारे भीतर यदि वह न रहे तो तुम पाओगे नहीं । गुरुशक्ति का शिष्य में पात होता है । (इसे शक्तिपातकहते हैं ।)

गुरु शीघ्र कैसे प्रकट हो जायें ?
            गुरु के लिए सचमुच तड़पना आ जाय तो शीघ्र ही गुरु प्रकट हो जाते हैं ।