बलिदानियों का स्मरण कर सोचें,आजादी किसलिए मिली?
- पूज्य संत श्री
आशाराम बापूजी (स्वतंत्रता दिवस : 15
अगस्त)
15
अगस्त के दिन देश आजाद हुआ था । तो इस दिन सैर-सपाटे, ‘हा-हा, ही-ही’ में
ही खुशियाँ मनाकर अपने को धोखे में नहीं डालना है । यह दिन याद दिलाता है कि आजादी
दिलवानेवालों ने कितनी-कितनी कुर्बानियाँ दीं ! चन्द्रशेखर आजाद, खुदीराम
बोस को कौन नहीं जानता ? और भी कई महानुभाव हो गये । अब उस
आजादी को बचाये रखना हम लोगों का काम है । आजादी इसलिए मिली थी ताकि हम मुक्ति का
लाभ ले लें । हमारी संस्कृति में ही मोक्ष की व्यवस्था है ।
विवेकानंदजी
से लंदन में उनके एक अंग्रेज मित्र ने व्यंग्यात्मक ढंग से पूछा : ‘‘चार
वर्षों तक विलासिता, चकाचौंध तथा शक्ति से परिपूर्ण इस पश्चिमी जगत
का अनुभव लेने के बाद अब अपनी मातृभूमि आपको कैसी लगेगी ?’’
उसने
सोचा होगा कि ‘विवेकानंद के चेहरे पर शिकन आ जायेगी ।’ लेकिन
इन माई के लाल ने, सद्गुरु के शिष्य और भारत के सपूत व
धर्म-धुरंधर ने अपना हृदय छलका दिया, बोले : ‘‘पहले
तो मैं मातृभूमि के नाते भारतमाता से प्रेम करता था लेकिन अब विदेशों की विलासिता
देख, यहाँ (विदेशों में) ईश्वरप्रीति, मुक्ति-मार्ग और
तत्त्वज्ञान से रहित जीवन-पद्धति और उसके अनुसार शरीर को ‘मैं’ मानने
और संसार को ही सच्चा मानने तथा 5-25 व्यक्तियों की वाहवाही में जीवन
खपानेवाले लोगों को देखकर मुझे लगता है कि भारतमाता के लिए प्रेम ही पर्याप्त नहीं
है, अब तो मैं उसको प्रणाम करूँगा । क्योंकि भारत की सनातन धर्म की
जीवन-पद्धति में मुक्ति है, नम्रता, सहजता, सज्जनता
है, परोपकारिता भरी है और वहाँ के लोग सब कुछकरते हुए भी ‘ईश्वर
करवाता है’ - ऐसी सोच के धनी हैं । अब तो भारत का धूलिकण तक
मेरे लिए पवित्र हो गया है । अब मेरे लिए वह पुण्यभूमि है, एक
तीर्थस्थान है । मैं भारतभूमि का पूजन करूँगा ।’’
उस
अंग्रेज का मुँह फीका पड़ गया, वह लज्जित होकर चुप हो गया । इस भूमि
के लिए जिन्होंने कुर्बानी दी वे सच में देश के भक्त तो थे लेकिन भगवान के भी भक्त
थे । करोड़ों-करोड़ों हिन्दुओं को शोषित होने से बचाया और हँसते-हँसते अपनी देह का
बलिदान दे दिया ।
खुदीराम
बोस से अंग्रेज न्यायाधीश ने कहा : ‘‘तुमने बम बनाकर
अंग्रेज अधिकारियों को उड़ाया है इसलिए आज तुमको मृत्युदंड सुनाया जाता है । निर्णय
सुनते समय भी खुदीराम के चेहरे पर मुस्कान थी । न्यायाधीश को लगा कि ‘इसने
शायद ठीक से नहीं सुना होगा ।’ उसने कहा : ‘‘खुदीराम
बोस ! सुना तुमने ? तुमको फाँसी पर चढ़ाया जायेगा ।’’ भारत
का वह सपूत खिलखिलाकर हँसा : ‘‘बस ! यह तो वस्त्र बदलने की ही सजा दी
! ऐसे तो कई शरीर मुझे मिले और कई छोड़े ।’’
न्यायाधीश
टुकुर-टुकुर देखता रहा । बोला : ‘‘तुम्हें कुछ कहना है ?’’
खुदीराम
ने शरारत से मुस्कराते हुए कहा : ‘‘हाँ, अगर
आप मुझे इजाजत दें तो मैं यहाँ जाहिर में बता सकता हूँ कि वह बम कैसे बनाया गया था
!’’
कुर्बानी
देनेवालों में कैसी-कैसी निर्भयता और सूझबूझ थी ! ब्रिटिश शासन ने सूचना भेजी कि ‘दमन
तेज कर दो । हिन्दुस्तानियों को कुचलना और तेज कर दो ताकि ये आजादी-वाजादी की बात
भूल जायें । फाँसी-पर-फाँसी लगाते जाओ ।’
कइयों
ने जैसे वस्त्र बदलते हैं ऐसे फाँसी की सजा के द्वारा शरीर छोड़ दिये लेकिन उनकी
जगह पर एक जाय तो 10 दूसरे तैयार हो जायें, 50
दूसरे तैयार हो जायें, 100 दूसरे तैयार हो जायें... ऐसा जुनून
पैदा हो गया कि सारा देश एक सूत्र में बँध गया ।
15
अगस्त वह दिन है जिस दिन अंग्रेजों को झख मारकर अपना भारत देश छोड़ना पड़ा । जो नोच
रहे थे उनको भागना पड़ा, नहीं तो कौन छोड़ता इस देश को ? दो-पाँच
करोड़ की फैक्ट्री या चीजों के लिए लोग मर मिटते हैं तो इस सोने की चिड़िया ‘भारत’ को
अंग्रेज क्यों छोड़ते ? लेकिन उन्हें छोड़ना पड़ा, इसके
पीछे गीता की मेहरबानी, भगवन्नाम की कृपा और ऐसे भगवान के
प्यारे, हरि के दुलारे, अपने लिए नहीं
औरों के लिए जीना जाननेवाले, निष्काम कर्मयोगियों का बलिदान है ।
उन
सभी कर्मयोगियों को इस दिन हम मानसिक रूप से स्मरण करके धन्यवाद देते हैं । भगवान
उनको अपनी आत्मस्मृति का परम प्रसाद दें ।
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