बलॊचिस्तान का वह मंदिर जो हिन्दुओं के लिए माता सती का “शक्ती पीठ” है तो मुसलमानों के लिए “नानी” मंदिर है!!

                            माता सती के 51 शक्तिपीठों में से एक शक्तिपीठ पाकिस्तान के कब्जे वाले बलूचिस्तान में स्थित है। यह वह मंदिर हैं जहां हिन्दु और मुस्लिम दोनों माता की पूजा करते हैं। हिन्दू अगर इस मंदिर को हिंगला देवी कहते हैं तो मुसलमान इसे ‘नानी’ या ‘बीबी नानी’ का मंदिर कहते हैं। हिंगोल नदी और चंद्रकूप पहाड़ पर स्थित है यह मंदिर हिन्दु-मुस्लिम आपसी सद्भावना का मिसाल कायम कर रही है।
                           पौराणिक कथाओं के अनुसार दक्ष यज्ञ में कूद कर प्राण त्याग ने वाली माता सती के मृत शरीर को जब शंकर भगवान अपने कंधे पर लेकर तांडव नृत्य करने लगे, तब ब्रह्माण्ड को प्रलय से बचाने के लिए भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से माता के मृत शरीर को 51 भागों में काट दिया। हिंगलाज वही जगह है जहां माता का सिर गिरा था। माता के दर्शन के लिए त्रेतायुग में स्वयं भगवान राम इस मंदिर पर पधारे थे। कहते हैं कि माता की पूजा करने गुरु गोरखनाथ, गुरु नानक देव और दादा मखान जैसे महापुरुशों ने भी इस मंदिर की सीढ़ियां चड़ी थी।
                            हर साल अप्रैल में, हिंगलाज मंदिर में चार दिवसीय तीर्थयात्रा आयोजित की जाती है जहां सभी धर्मों और विश्वास के कई भक्त माता के दर्शन पाने दूर दूर से आते हैं। भारत से भी तीर्थयात्रियों का एक बडा समूह हिंगलादेवी के दर्शन के लिए जाता है। इस मंदिर में देवी की कोई मानव निर्मित छवि नहीं है। एक छोटे आकार के पत्थर की पूजा हिंगलाज माता के रूप में की जाती है। माता के प्रति जितनी आस्था हिन्दू रखते हैं उतनी ही आस्था मुसलमान भी रखते हैं।
                           दंतकथाओं के अनुसार त्रेतायुग में तातर मंगॊल वंश के हिंगॊल और सुंदर नामक दो दुष्टॊं ने यहां पर त्राही मचाया हुआ था। श्री गणॆश ने सुंदर का वध किया तो देवी ने हिंगॊल का वध इसी गुफा में किया था। मरते समय हिंगॊल ने देवी से वरदान मांगा कि जिस जगह उसका वध हुआ है उस जगह को उसके नाम से पहचाना जाये। इसी कारण इस जगह को हिंगलाज मंदिर कहा जाता है। हिंगलाज माता को ब्रह्म क्षत्रिय अपने परिवार के देवता के रूप में पूजा करते हैं। यह इसलिए कि जब भगवान परशुराम क्षत्रियों का वध कर रहे थे तब यहां के ब्राह्मणॊं ने उन क्षत्रियों का बचाव करने हेतु उन्हें ब्राह्मणॊं के भेस में बदल दिया था। तत्पश्चात वे ब्रह्म क्षत्रिय कहलाने लगे।
                           यहां देवी को कई नामों से जाना जाता है जैसे कोट्टारी, कोट्टावी, कोट्टारीशा इत्यादी। बैरव को भीमलोचना भी कहा जाता है। ‘शिवशरिता’ के अनुसार माता के 55 शक्ति पीठॊं में से हिंगला पहला शक्ति पीठ है। हिन्दु ही नहीं बल्की मुसलमान भी माता को लाल कपड़ा, अगरबत्ती, मोमबत्ती, इत्र-फलुल और सिरनी चढ़ाते हैं। इस मंदिर से जुड़ी एक और मान्यता है कि हर रात इस स्थान पर सभी शक्तियां एकत्रित होकर रास रचाती हैं और दिन निकलते ही हिंगलाज माता के भीतर समा जाती हैं!


                         पाकिस्तान के भूमी में हिन्दुओं का एक मंदिर जो 2000 वर्षों से ही हिन्दु और मुसलमानों के लिए आस्था का स्थल है यह गौरव की बात है। आपसी सद्भावना का मिसाल कायम करनेवाली यह मंदिर माता के कृपा का जीता जागता निदर्शन है। माता के दरबार में सभी एक बराबर है।