क्या है हिन्दू, हिन्दू-धर्म और हिंदुस्तान ?
                                    हमारे अति प्राचीनतम धर्म-ग्रंथों में हिन्दू शब्द का व्यापक परिभाषा और अर्थ लिखा गया है जिसे जानना हमसबों का परम कर्तव्य है। "मेरुतंत्र" 33 प्रकरण के अनुसार-"हीनं दूषयति सः हिन्दू" अर्थात् जो हीनता या नीचता यानि हीन भावना, नीच कर्म, नीच विचार,निम्न सोंच,निन्दित कार्य इत्यादि को दूषित समझता है और उसका त्याग करता है,वह "हिन्दू" है। यहाँ कहने का तात्पर्य यह है कि जो नीच भावना, नीच सोंच, नीच विचार और हीन यानि निन्दित कार्यो को दूषित समझते हुए उसका त्याग कर उच्च भावना, उच्च सोंच, उच्च विचार रखते हुए उच्च कोटि के कार्यो को करता है उसे हिन्दू कहते हैं। इसके बारे में और लिखा गया है कि-"गोषु भक्तिर्भवेद् यस्य प्रणवे च दृढ़ा मतिः।पुनर्जन्मनि विश्वासः स वै हिन्दुरिति स्मृतः।। अर्थात गोमाता में जिसकी भक्ति हो, प्रणव यानि नम्रता और उदारता जिसका पूज्य मन्त्र हो, पुनर्जन्म यानि आत्मा नहीं मरती है पुनः दूसरा शरीर धारण करती है इसमे विश्वास करता हो, वह हिन्दू है।
                                     "हिंसया दूरी क्रियते, सः हिन्दू" अर्थात् जो अपने मन, वचन और कर्म से हिंसा को दूर रखे यानि जो अपने हितों के लिए कभी किसी को कष्ट न दे, वह "हिन्दू" है।लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के अनुसार-"असिन्धोः सिंधुपर्यन्ता यस्य भारतभूमिका।
पितृभूः पुन्यभूश्चैव स वै हिन्दुरिति स्मृतः ।।
                                    अर्थात सिंधु  नदी के उदगम स्थान से लेकर हिन्द महासागर तक सम्पूर्ण भारत भूमि जिसकी पितृभूमि यानि मातृभूमि तथा पवित्रभूमि है और धर्म हिंदुत्व है, वह "हिंदु" कहलाता है। हिंदु शब्द का अर्थ ऊन भारतीयों से है जो भारतवर्ष के प्राचीन ग्रंथों, वेदों, पुराणों में वर्णित भारतवर्ष की सीमा के मूल एवं पैदायसी प्राचीन निवासी हैं। कालिका पुराण, मेदनी कोष आदि के आधार पर वेदप्रतिपादित रीति से वैदिक धर्म में विश्वास रखनेवाला हिंदु है।
                                   हिन्दू धर्म का इतिहास सबसे पुराना है।सिंधु घाटी सभ्यता में हिन्दू धर्म के कई मूल चिन्ह मिलते है। इनमे मातृदेवी की मूर्तियां, शिव पशुपति जैसे देवता की मुद्राएं, लिंग, पीपल की पूजा आदि प्रमुख हैं।इस सभ्यता के लोग स्वयं हीं आर्य थे और उनका मूल स्थान भारत हीं था। आर्यों की सभ्यता को हीं वैदिक सभ्यता भी कहते है।इसी काल में विद्वान ऋषि महर्षि लोग देवी देवताओ को प्रसन्न करने के लिए वैदिक संस्कृत में कई मंत्र रचनाएँ की। वेद, उपनिषद् आदि ग्रन्थ अनादि हैं जो ईश्वर की कृपा से अलग-अलग मंत्रद्रष्टा ऋषियों को अलग-अलग ग्रंथों का ज्ञान प्राप्त हुआ जिसे उन्होंने लिपिबद्ध किया।हिन्दू धर्म विश्व में सभी धर्मों में सबसे पुराना धर्म है।यह वेदों पर आधारित धर्म है जो अपने अंदर कई अलग-अलग उपासना पद्धतियाँ, मत, दर्शन आदि समेटे हुए है। हिन्दू धर्म अनुयायियों की संख्या के आधार पर विश्व का तीसरा सबसे बड़ा धर्म है। इसके उपासक भारत नेपाल के अलावे कई अन्य देशों में भी है। इसमे कई देवी देवताओं की पूजा होती है लेकिन वास्तव में यह "एकेश्वरवादी धर्म" है।
                                   हिन्दू धर्म केवल एक धर्म या संप्रदाय हीं नहीं है, बल्कि जीवन जीने की एक आसान पद्धति भी है। इस धर्म को "सनातन धर्म" और "वैदिक धर्म" भी कहते हैं।चूँकि उस समय भारत में केवल वैदिक धर्म को ही  मानने वाले लोग थे, उस समय तक किसी अन्य धर्म का उदय नहीं हुआ था इसलिये "हिन्दू" शब्द सभी भारतियों के लिये प्रयुक्त होता था।उस समय भारत में केवल वैदिक धर्मवाले अर्थात हिंदुओं के बसने के कारण ही कालान्तर में विदेशियो ने इस शब्द को धर्म के रूप में प्रयोग करना शुरू कर दिया। "हिन्दू" शब्द उस समय धर्म की बजाय राष्ट्रीयता के रूप प्रयुक्त होने लगा।
                      अब बात आती है हिंदुस्तान की। प्राचीन काल में ऋषियों ने भारतवर्ष को "हिन्दुस्थान" नाम दिया था जिसका अपभ्रंश "हिंदुस्तान" है।प्राचीन शास्त्र "बृहस्पति आगम" के अनुसार:-
"हिमालयात् समारभ्य यावत् इंदु सरोवरम्।
                                    तं देवनिर्मितं देशं हिन्दुस्थानं प्रचक्षते।। अर्थात हिमालय से प्रारम्भ होकर इंदु सरोवर यानि हिन्द महासागर तक यह देव निर्मित देश हिन्दुस्थान कहलाता है। हमारे ऋग्वेद में भी "सप्त-सिंधु" शब्द का उल्लेख मिलता है यानि वो भूमि जहाँ आर्य सबसे पहले बसे थे।वो प्राचीन सात नदियाँ है:-(1) सिंधु, (2) सरस्वती, (3) वितस्ता यानि झेलम, (4) शुतुद्रि यानि सतलज, (5) विपाशा यानि व्यास (6) परुषिणि यानि रावी और (7) अस्किनी यानि चेनाब। इसी विचार के फलस्वरूप हिमालय के प्रथम अक्षर "हि" एवं इंदु का अंतिम अक्षर "न्दु" इन दोनों अक्षरों को मिलाकर "हिन्दु" शब्द बना और यह भूभाग "हिन्दुस्थान" कहलाया।

                                    जबकि कई लोग भारतीय संस्कृति को कई संस्कृति का मिश्रित रूप मानते है, जबकि ऐसा नहीं है। जिस संस्कृति या धर्म की उत्पत्ति एवं विकास भारत की भूमि पर हुआ हीं नहीं, वह धर्म या संस्कृति भारतीय कैसे हो सकती है।