चमत्कारिक और अलौकिक स्थान नैमिषारण्य का रुद्रावर्त तीर्थ,पानी में समा जाता है दूध बेलपत्र और फल !
चमत्कारिक और अलौकिक स्थान नैमिषारण्य का रुद्रावर्त तीर्थ,पानी में समा जाता है दूध
बेलपत्र और फल !
एक मंदिर जहां भगवान शिव खुद ग्रहण
करते है भक्तों से बेलपत्र अौर फल, बदले में देते
हैं प्रसाद !
रुद्रावर्त तीर्थ
सीतापुर
(उत्तर प्रदेश) : सावन महीने में देवाधि देव महादेव की आराधना का महत्व किसी से
छिपा नहीं है। इस पूरे माह और ख़ास तौर पर सोमवार को लोग प्राचीन शिव मंदिरों से
लेकर शिवालयों तक की पूजा करके भगवान शिव को रुद्राभिषेक आदि के जरिये प्रसन्न
करने का प्रयास करते है। आज हम आपको एक ऐसे शिवस्थान का दर्शन कराते है जो न केवल
कई मायनों में ख़ास है बल्कि रहस्य व रोमांच से भरपूर है।
प्रसाद मांगने पर वापस मिलता है एक फल
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हजार ऋषियों की तपोभूमि नैमिषारण्य में गोमती नदी के तट पर स्थित शिव स्थान को
रुद्रावर्त तीर्थ के नाम से जाना जाता है। नदी के किनारे पर एक ऐसा स्थान है जहां
पर पानी के अंदर एक शिवलिंग भी स्थापित है। इस चमत्कारिक शिवलिंग पर अोम नमः शिवाय
के उच्चारण के साथ बेलपत्र, दूध एवं फल अर्पण करने पर वह सीधे जल
में समा जाता है। फल के रूप में मांगने पर प्रसाद के रूप मे एक फल वापस भी आता है।
यह अद्भुत द्रश्य देखने के लिए दूर-दूर से लोग यहां आते है और स्वयं इस कृत्य को
करके अपने जीवन को धन्य करते है !
पानी में डूब जाती है बेलपत्र
मंदिर
के जानकारों का कहना है कि कभी इस स्थान पर पौराणिक शिव मंदिर रहा था कालांतर में
वह मंदिर जल के अंदर समा गया है। ऊपर से मंदिर का अवशेष नदी का पानी कम होने पर
दिखाई भी देता है। बताया जाता है कि उस स्थान पर नदी के अंदर शिवलिंग भी विराजमान
है। इसी मंदिर की विशेषता है कि दूध बेलपत्र और फल अर्पित करने पर शिवलिंग इसे
स्वीकार कर लेता है जबकि इस विशेष स्थान के अलावा कहीं पर भी बेलपत्र आदि डालने से
वह पानी के अंदर जाती नहीं बल्कि तैरती रहती है !
दूर-दराज से आते है श्रद्धालु
सतयुग
के तीर्थ नैमिषारण्य की पौराणिक मान्यता पूरी दुनिया में विख्यात है। दूर दराज के
लोग यहां आने पर रुद्रावर्त तीर्थ का दर्शन करना श्रेयष्कर मानते है। इस क्षेत्र
में रुद्रावर्त तीर्थ की यह विशेषता तपोभूमि के महत्व को और ज्यादा बढ़ाने में
सहायक साबित होती है किंतु विडम्बना यह है कि इस स्थान पर जाने के लिए आज भी कोई
पक्का रास्ता नहीं है और लोगों को गांव के कच्चे गलियारे से होकर गुजरना पड़ता है।
अगर प्रशासन इस तीर्थ स्थल पर पहुंचने के लिए समुचित व्यवस्था करा दे तो शायद
श्रद्धालुओं को दुस्वारियों का सामना न करना पड़े !
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