आधुनिक विज्ञान ने भी माना कि भारत की देव भाषा संस्कृत मनुष्य के बुद्धिमत्ता और स्मरण शक्ति पर गहरा प्रभाव डालता है। अंग्रेज़ी का मोह छॊड़िये और संस्कृत पढ़िये।

                             वामपंथियों ने भारत के जन मानस में एक विचारधारा को जबरन डाल दिया है। वह यह है कि अंग्रेज़ी महान भाषा है और हमारे अपने ही धरती की संस्कृत भाषा अवैज्ञानिक और वार्तालाप के यॊग्य नहीं है। पिछले सात दशकों से हमें यही सिखाया गया है कि अंग्रेज़ी भाषा सीखना हमारे लिए कितना अवश्यक है। लेकिन दुनिया में हो रहे अनुसंधान संस्कृत को महान भाषा मान रही है। संस्कृत हमारे बुद्धिमत्ता और स्मरण शक्ती पर गहरा प्रभाव डालता इसे अब दुनिया के वैज्ञानिक भी मानते हैं।
                             न्यूरोसांयटिस्ट जेम्स हार्टज़ेल ने अनुसंधान द्वारा पता लगाया है कि किस प्रकार संस्कृत के श्लॊक व मंत्र के पठण करने से हमारे मस्तिश्क पर उसका प्रभाव पड़ता है। उन्होंने 21व्यावसायिक रूप से योग्य संस्कृत पंडितों का अध्ययन किया और पाया कि वैदिक मंत्रों को याद रखने से संज्ञानात्मक कार्य से जुड़े मस्तिष्क क्षेत्रों का आकार बढ़ जाता है, जिसमें लघु और दीर्घकालिक स्मृति शामिल है। भारतीय परंपरा में मान्यता है कि मंत्रों को याद रखना और पढ़ना स्मृति और सोच को बढ़ाता है। यह खॊज इस बात की पुष्टी करती है।
                             अंग्रेज़ों ने भारत के महान परंपरा को बरबाद कर हमें बौद्धिक रूप से विकलांग बनाया है। भारत में मेकाले शिक्षण को महत्व देकर संस्कृत का उपहास किया गया है। लेकिन अब खुद पश्चिमी दुनिया ही संस्कृत की महानता को पहचान चुकी है और उसे खुले मन से स्वीकार रही है। जेम्स हार्टज़ेल स्पेन के बास्क सेंटर ऑन कॉग्निशन, ब्रेन एंड लैंग्वेज में एक पोस्ट डोक्टरल शोधकर्ता और संस्कृत भक्त हैं। इन्होने संस्कृत का अध्ययन और अनुवाद करने में कई साल बिताए हैं और मस्तिष्क पर इसके प्रभाव से मोहित हो गए हैं।
                             डॉ हार्टज़ेल का शोध संस्कृत विद्वानों के दिमाग की जांच करने वाला पहला अध्ययन है। भारत के राष्ट्रीय मस्तिष्क अनुसंधान केंद्र में संरचनात्मक चुंबकीय अनुनाद इमेजिंग (एमआरआई) का उपयोग करके, उन्होंने 21संस्कृत पंडितों और 21 आम व्यक्तियों के मस्तिष्क को स्कैन किया। उन्होंने पाया कि संस्कृत पंडितों के मस्तिश्क के कुछ भाग आम सब्जेक्ट के मुकाबले नाटकीय रूप से बड़े थे, दोनों सेरेब्रल गोलार्धों में 10प्रतिशत से अधिक भूरे रंग के पदार्थ, और कॉर्टिकल मोटाई में पर्याप्त वृद्धि हुई है।
                             तात्पर्य यह है कि संस्कृत पंडितों के संज्ञानात्मक क्षमता अन्य के मुकाबले ज्यादा है। जो व्यक्ती निरंतर रूप से संस्कृत का पठण करता है उसकी स्मरण शक्ती, बुद्धिमत्ता और संज्ञानात्मक क्षमता अन्य के मुकाबले ज्यादा होती है। प्राचीन काल में भारत के लोगों को “आर्य” व “आर्या” कहा जाता था। आर्य/आर्या यानी wise men/women. हमारे पूर्वज हमेशा संस्कृत में ही वार्तालाप करते थे। वेद और उपनिषदॊं की रचना भी संस्कृत में ही हुआ था। अब आधुनिक विज्ञान की खोज भी इस बात की पुष्टी कर रही है कि संस्कृत के पठन से हमारे मस्तिष्क पर गहरा असर पड़ता है।

                             आनेवाले दिनों में स्मरण शक्ती से जुड़े समस्या, भूलने की बीमारी, बच्चों में एकाग्रता कि समस्याऒं पर संस्कृत पठन के प्रभाव के बारें में अनुसंधान किया जायेगा। भारत के आयुर्वेद के वैद्यों का मानना है संस्कृत पठन से इन समस्याओं से मुक्ती पाई जा सकती है। अब अंग्रेज़ी का मोह त्याग कर संस्कृत अपनाइये। हमारे धरती की अपनी भाषा संस्कृत है। मनुश्य ही नहीं बल्की कंप्यूटर प्रोग्रांमिंग के लिए भी संस्कृत जितना उत्कृष भाषा कहीं पर भी नहीं है। गर्व कीजिए कि आप संस्कृत की जननी आर्यवर्त भारत के भारतीय नागरिक है।