शिखा(चोटी) रखना हमारी संस्कृति का एक पावन संस्कार है।

                            जिस प्रकार एरियल अथवा एन्टेना रेडियो और टीवी की तरंगे ग्रहण करता है, उसी प्रकार ब्रह्माण्ड की सूक्ष्म शक्तियों को ग्रहण करने का कार्य शिखा स्थान द्वारा ही होता है।

                            शिखा(चोटी) रखना हमारी संस्कृति का एक पावन संस्कार है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक नेल्सन ने अपनी पुस्तक ʹह्यूमन मशीनʹ में लिखा हैः ʹमानव-शरीर में सतर्कता के सारे कार्यक्रमों का संचालन सिर पर शिखा रखने के स्थान से होता है।ʹ

                           भारतीय संस्कृति का छोटे-से-छोटा सिद्धान्त, छोटी-से-छोटी बात भी अपनी जगह पूर्ण और कल्याणकारी है। प्रसिद्ध विद्वान डॉ. आई.ई. क्लार्क ने कहा हैः "मैंने जब से इस विज्ञान की खोज की है तब से मुझे विश्वास हो गया है कि हिन्दुओं का हर एक नियम विज्ञान से परिपूर्ण है। चोटी रखना हिन्दुओं का धर्म ही नहीं, सुषुम्ना के केन्द्रों की रक्षा के लिए ऋषि-मुनियों की खोज का विलक्षण चमत्कार है।"


शिखा रखने के लाभः

                       सुषुम्ना नाड़ी की रक्षा से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायु होता है। नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है। कार्यों में सफलता मिलती है। दैवी शक्तियाँ रक्षा करती हैं। सदबुद्धि, सदविचार आदि की प्राप्ति होती है। आत्मशक्ति प्रबल बनी रहती है। मनुष्य धार्मिक, सात्त्विक व संयमी बना रहता है।

                    इस प्रकार धार्मिक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक सभी दृष्टियों से शिखा की महत्ता स्पष्ट हो जाती है। परंतु आज फैशन की होड़ में भारतवासी शिखा नहीं रखते व अपने ही हाथों अपने धर्म व संस्कृति का त्याग कर डालते हैं। लोग हँसी उड़ायें, पागल कहें तो सह लो पर संस्कृति का त्याग मत करो।