पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में है देवी सरस्वती का ५००० वर्ष पुराना महाशक्तिपीठ

·        १९वीं सदी में महाराजा गुलाब सिंह ने इसकी आखिरी बार मरम्मत कराई थी !
·        २००५ में आए भूकंप में ये और तबाह हो गया, इसके बाद भी पाकिस्तान सरकार ने इसकी सुध नहीं ली।
              पाकिस्तान के नियंत्रण वाले कश्मीर में देवी शक्ति के १८ महाशक्तिपीठों में से एक शारदा पीठ मौजूद है। जो सही रखरखाब न होने के कारण इस समय बहुत बुरी स्थिति में है। सनातन परंपरा के अनुसार सरस्वती देवी के इस मंदिर को ५००० वर्ष से भी ज्यादा पुराना माना गया है। पाकिस्तान सरकार ने अब इस मंदिर का रास्ता भारतवासियों के लिए खोलने की सहमति दे दी है। शारदा पीठ कोरिडोर को पाकिस्तान सरकार ने मंजूरी दे दी है। नीलम नदी के किनारे पर मौजूद इस मंदिर की महत्ता सोमनाथ के शिवा लिंगम मंदिर जितनी है। भारत के कुपवाडा से लगभग ३० किमी दूर यह मंदिर स्थित है। यह मंदिर भारतीय नियंत्रण रेखा से मात्र १७ मील दूर स्थित है।

पर्वतराज हिमालय की तराई, कश्मीर में गिरा था हाथ
                        सनातन धर्मशास्त्र के अनुसार, भगवान शिवजी ने सती के शव के साथ जो तांडव किया था उसमें सती का दाहिना हाथ इसी पर्वतराज हिमालय की तराई कश्मीर में गिरा था।
                       यह मंदिर कब अस्तित्व में आया, इसका कोई इतिहास नहीं है। परंतु इतिहासकार मानते हैं कि शारदा पीठ मंदिर अमरनाथ और अनंतनाग के मार्तंड सूर्य मंदिर की तरह ही कश्मीरी पंडितों के लिए आस्था का बडा केंद्र रहा है।

क्या है मान्यता ?
                    मान्यता है कि जहां इस शक्तिपीठ की स्थापना हुई है, वहां पर देवी सती का दायां हाथ गिरा था। शारदा पीठ १८ महाशक्ति पीठों में से एक है।
                 इस मंदिर को ऋषि कश्यप के नाम पर कश्यपपुर के नाम से भी जाना जाता था। एक दौर में कश्मीर हिन्दू वैदिक धर्म से जुडी शिक्षा के लिए बेहतरीन केंद्र था।

क्यों खास है शारदा पीठ ?
                   भारतीय नियंत्रण रेखा से मात्र १७ मील दूर पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर के इस शारदा गांव में मंदिर के नाम पर केवल यही भग्नावशेष बचा है। शारदा पीठ, कश्मीर- शारदा पीठ का महत्व इसलिए भी है कि यह ५२ शक्तिपीठों में नहीं, बल्कि १८ महाशक्तिपीठ में से एक है।
                    शारदा पीठ में पूजा और पाठ दोनों होता था। यह श्री विद्या साधना का सबसे उन्नत केन्द्र था। शैव संप्रदाय के जनक कहे जाने वाले शंकराचार्य और वैष्णव संप्रदाय के प्रवर्तक रामानुजाचार्य दोनों ही यहां आए और दोनों ही दो महत्वपूर्ण उपलब्धियां प्राप्त की।
                   शंकराचार्य यहीं सर्वज्ञपीठम पर बैठे तो रामानुजाचार्य ने यहीं पर श्रीविद्या का भाष्य प्रवर्तित किया। पंजाबी भाषा की गुरुमुखी लिपि का उद्गम शारदा लिपी से ही होता है। इस मंदिर से कई विद्याकेन्द्र से जुडे थे, परंतु अब ऐसा नहीं है।

इस हाल में कैसे पहुंचा मंदिर ?
                      चौदहवीं शताब्दी तक कई बार प्राकृतिक आपदाओं से मंदिर को बहुत क्षति पहुंची है। विदेशी आक्रमणों से भी इस मंदिर का काफी नुकसान हुआ। इसके बाद १९वीं सदी में महाराजा गुलाब सिंग ने इसकी आखिरी बार मरम्मत कराई और तब से ये इसी हाल में है।

                    २००५ में आए भूकंप में ये और तबाह हो गया, इसके बाद भी पाकिस्तान सरकार ने इसकी सुध नहीं ली। भारत-पाकिस्तान के बीच बंटवारे के बाद से ये लाइन ऑफ कंट्रोल के पास वाले क्षेत्र में आता है। बंटवारे के बाद से ये जगह पश्तून ट्राइब्स के नियंत्रण में रही। इसके बाद से ये पीओके सरकार के कब्जे में है। दोनों देशों के बीच तनाव के समय में यहां विदेशियों के जाने पर पाबंदी लगा दी जाती है।
                      जब पाकिस्तान ने सिख समुदाय के धार्मिक स्थल करतारपुर साहेब के लिए कॉरीडोर बनाने के लिए शिलान्यास किया तो ऐसी ही एक आवाज कश्मीर से उठी।

                 कश्मीर के अल्पसंख्यक हिन्दुओं ने अपनी ७० साल पुरानी मांग को फिर से याद दिलाया। हिन्दुओं के लिए अत्यंत पूजनीय शारदा देवी मंदिर में पिछले ७० साल से पूजा नहीं हुई है। इस मंदिर में अब पूजा भी नहीं होती है। शारदा देवी मंदिर कब बना था, इसकी तिथि आज तक कोई नहीं बता पाया परंतु इस मंदिर के पास शारदा पीठ का उल्लेख सम्राट अशोक के काल से जुडा है।
              ११वीं शताब्दी में लिखी गई संस्कृत ग्रन्थ राजतरंगनी में शारदा देवी के मंदिर का काफी उल्लेख है। इसी शताब्दी में इस्लामी विद्वान अलबरूनी ने भी शारदा देवी और इस केंद्र के बारे में अपनी किताब में लिखा है।
                 अबुल फजल (अकबर के ही एक नवरतन दरबारी) ने आइन-ए-अकबर में लिखा था कि, ‘मुजफ्फराबाद में मधुमती नदी के तट पर शारदा देवी का एक मंदिर है, जिसे पूरा क्षेत्र काफी पूजनीय और चमत्कारी मानता था। कश्मीरी पंडित शारदा मां को अपनी कुलदेवी के रूप में मानते हैं।
ये हैं १८ महाशक्तिपीठ
१. शंकरी देवी, त्रिंकोमाली श्रीलंका
२. कामाक्षी देवी, कांची, तमिलनाडू
३. सुवर्णकला देवी, प्रद्युम्न, पश्चिमबंगाल
४. चामुंडेश्वरी देवी, मैसूर, कर्नाटक
५. जोगुलअंबा देवी, आलमपुर, आंध्रप्रदेश
६. भराअंबा देवी, श्रीशैलम, आंध्रप्रदेश
७. महालक्ष्मी देवी, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
८. इकवीराक्षी देवी, नांदेड़, महाराष्ट्र
९. हरसिद्धी माता मंदिर, उज्जैन, मध्यप्रदेश
१०. पुरुहुतिका देवी, पीथमपुरम, आंध्रप्रदेश
११. पूरनगिरि मंदिर, टनकपुर, उत्तराखंड
१२. मनीअंबा देवी, आंध्रप्रदेश
१३. कामाख्या देवी, गुवाहाटी, असम
१४. मधुवेश्वरी देवी, इलाहाबाद, उत्तरप्रदेश
१५. वैष्णोदेवी, कांगड़ा, हिमाचलप्रदेश
१६. सर्वमंगला देवी, गया, बिहार
१७. विशालाक्षी देवी, वाराणसी, उत्तर प्रदेश

१८. शारदा देवी , पीओके