Video : देखिए राजा सवाई जयसिंह द्वारा निर्मित जयप्रकाश यंत्र, जिसे देखकर भारत की प्राचीन धरोहर पर होगा गर्व

अपनी आन, बान और शान के लिए प्रसिध्द राजस्थान का गौरव इसके अतित में छुपा है । बडे-बडे महल इसके राजसी ठाठ का बखान आज भी बडी खामोशी से कर रहे हैं । यहां के रजवाडों ने कला और विज्ञान को एक सांचे में ढाल कर भारतीय वास्तुकला का ऐसा नमूना पेश किया है, जिसे जानकर आप भी भारत की प्राचीन संस्कृति पर गर्व महसूस करोगे ।
राजस्थान का गुलाबी शहर जयपुर । इस शहर को बसाया था आमेर के महाराजा राजा सवाई जयसिंह (द्वितीय) ने । राजा सवाई जयसिंह को कला के साथ-साथ खगोल विज्ञान में भी गहरी दिलचस्पी थी । यही कारण था कि, उन्होंने जयपुर में जंतर मंतर वेधशाला बनाने की ठानी । जंतर मंतर यानी सूर्य घडी । ‘जंतर मंतर’ शब्द संस्कृत के शब्द ‘यंत्र मंत्र’ से लिया गया है, जिसका अर्थ ‘उपकरण और सिद्धांत’ होता है ।



राजा सवाई जयसिंह ने इस वेधशाला का निर्माण कार्य सन १७२० में शुरू कराया और सन १७३८ में यह बनकर पूरा हुआ । यह वेधशाला जयपुर शहर के सिटी पैलेस और हवा महल के पास बना हुआ है । जिसे यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज साईट में भी शामिल किया गया है ।

जयपुर की इस वेधशाला में विभिन्न ज्यामितीय प्रकार के १९ उपकरण हैं, जो दिन का स्थानीय समय, ग्रहण की भविष्यवाणी और नक्षत्रों की स्थिति बताते हैं । इन उपकरणों की सहायता से एक सेकंड के अंदर सही माप कर सकते हैं ।



जंतर मंतर में जयप्रकाश यंत्र, सम्राट यंत्र, राम यंत्र और एक मिश्रित यंत्र है जिसमें सूर्यघडी और उत्तरी दीवार पर एक भारी गोलार्द्ध शामिल है ।

विशाल सम्राट जंतर एक सूर्यघडी है, जो ९० फीट उंची और इसकी छाया दिन का समय बताती है । एक छोटी गुंबददार छतरी का उपयोग ग्रहण की भविष्यवाणी और मानसून के आने की जानकारी देता है ।

आज के समय में भी जंतर मंतर के उपकरणों का उपयोग मौसम की भविष्यवाणी, मौसम की अवधि, मानसून की तीव्रता और बाढ़ या अकाल की संभावनाओं के लिए किया जाता है ।



देश में सबसे पहली वेधशाला देहली में सन १७२४ में बनवाई गई । जयपुर और देहली के अलावा उज्जैन, वाराणसी और मथुरा में इस तरह की वेधशालाओं का निर्माण हुआ है ।

यह वेधशालाएं आज भी सही समय बताती हैं और पूरी तरह से कार्य कर रही हैं । विदेशी पर्यटक दूर-दूर से इन वेधशालाओं को देखने और भारत के खगोलीय शास्त्र का अध्ययन करने के आते हैं ।