हिमाचल में स्थित ज्वाला मुखी मंदिर जिसके चमत्कारों के आगे मुगल सम्राट अकबर ने भी घुटने टेक दिए।

भारत-प्राचीन काल के समय से अनगिनत चमत्कारों के लिए जाना जाने वाला देश है| भारत में रहस्य से भरे हुए कई मंदिर है जिनके बारे में अनेकों गाथाएँ प्र्चल्लित है| क्या आपने ऐसे किसी मंदिर के बारे में सुना है जिसमें कोई मूर्ती नही है| भगवान् का कोई भी स्वरूप मूर्ती के रूप में नही है| ऐसा एक मंदिर हिमाचल की पहाड़ियों में स्थित है जो ज्वालाजी, ज्वालामुखी मंदिर या ज्वाला देवी माँ के मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है|

इस मंदिर की खासियत ये है कि यहाँ माँ मंदिर के गर्भ द्वार में  ज्योति के रूप में विराजमान है और माँ की ज्योति हर समय प्रज्वल्लित रहती है वो भी बिना किसी घी और तेल के|आज तक माँ के दरबार में हो रहे इस चमत्कार को कोई नही समझ पाया है| मंदिर में अलग-अलग नौ ज्योतियां है जिन्हें महाकाली, अन्नपूर्णा, चंडी, हिंगलाज, विंध्यावासनी, महालक्ष्मी, सरस्वती, अम्बिका, अंजीदेवी के नाम से जाना जाता है|

इस तथ्य के कारण, देवी माँ को ‘फ्लेमिंग देवी’ भी कहा जाता है। कहा जाता है कि पांडवों ने भी इस जगह का दौरा किया और मंदिर के निर्माण में अपना योगदान दिया था।

हिमाचल प्रदेश के ज्वालामुखी शहर में कंगड़ा घाटी के 35 किमी दक्षिण में स्थित यह मंदिर भारत के 51 कुल शक्ति पीठों में से एक है जो प्रकाश की देवी ज्वालामुखी को समर्पित है। मंदिर धौलाधर सीमा के नजदीक पहाड़ियों के बीच स्थित है।

भारत-सिख शैली वास्तुकला में लकड़ी के मंच पर निर्मित, मंदिर का संरचनात्मक डिजाइन सरल है, लेकिन धार्मिक माहौल निसंदेह मंदिर को दिव्य बनाता है। इस मंदिर के गुंबद और शिखर सोने से ढके हुए हैं। मंदिर के मुख्य दरवाजे पर चांदी चड़ाई हुई है। मुख्य मंदिर के सामने, नेपाल के राजा द्वारा प्रस्तुत एक विशाल पीतल की घंटी है।

ज्वालामुखी मंदिर का इतिहास काफी प्राचीन है|इस स्थान को पहली बार एक गाय पालक ने देखा था। वह अपनी गाय का पीछा करते हुए इस स्थान तक पहुंचा। इसके पीछे कारण यह था कि उसकी गाय दूध नहीं दे रही थी वह अपना सारा दूध पवित्र ज्वालामुखी में एक दिव्य कन्या को पिला आती थी। उसने यह दृश्य अपनी आँखो से देखा और वहां के राजा को बताया। राजा द्वारा सत्य की जाँच के लिए अपने सिपाहियों को भेजा गया। सिपाहियों ने भी यह नजारा देखा। उन्होंने सारी बात राजा को बताई और सत्य की जांच के पश्चात राजा द्वारा इस स्थान पर मंदिर का निर्माण कराया गया।

ज्वालामुखी मंदिर के संबंध में एक कथा काफी प्रचलित है। यह 1542 से 1605 के मध्य का ही होगा तभी अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यानुभक्त माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गांववासियो के साथ ज्वालाजी के लिए निकला। जब उसका काफिला दिल्ली से गुजरा तो मुगल बादशाह अकबर के सिपाहियों ने उसे रोक लिया और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर ने जब ध्यानु से पूछा कि वह अपने गांववासियों के साथ कहां जा रहा है तो उत्तर में ध्यानु ने कहा वह जोतावाली के दर्शनो के लिए जा रहे हैं। अकबर ने कहा तेरी मां में क्या शक्ति है ? और वह क्या-क्या कर सकती है ? तब ध्यानु ने कहा वह तो पूरे संसार की रक्षा करने वाली हैं। ऐसा कोई भी कार्य नहीं है जो वह नहीं कर सकती है। अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर कटवा दिया और कहा कि अगर तेरी मां में शक्ति है तो घोड़े के सर को जोड़कर उसे जीवित कर दें।

यह वचन सुनकर ध्यानु देवी की स्तुति करने लगा और अपना सिर काट कर माता को भेट के रूप में प्रदान किया। माता की शक्ति से घोड़े का सर जुड़ गया। इस प्रकार अकबर को देवी की शक्ति का एहसास हुआ। बादशाह अकबर ने देवी के मंदिर में सोने का छत्र भी चढाया। किन्तु उसके मन में अभिमान हो गया कि वो सोने का छत्र चढाने लाया है, तो माता ने उसके हाथ से छत्र को गिरवा दिया और उसे एक अजीब (नई) धातु का बना दिया जो आज तक एक रहस्य है। यह छत्र आज भी मंदिर में मौजूद है।

मंदिर का मुख्य द्वार काफी सुंदर एव भव्य है। मंदिर में प्रवेश के साथ ही बाये हाथ पर अकबर नहर है। इस नहर को अकबर ने बनवाया था। उसने मंदिर में प्रज्‍जवलित ज्योतियों को बुझाने के लिए यह नहर बनवाया था। पर आज तक माँ की इस ज्योति को न तो कोई बुझा पाया है और न ही इस रहस्य को समझ पाया है की ज्योति सदा कैसे प्रज्वल्लित रहती है|माता रानी की महिमा अप्रमपार है|जय माता दी|