मध्यप्रदेश की भीमबेटका गुफ़ाओं में हजारों वर्ष पहले हुई अद्भुत चित्रकला और महाभारत से उनके संबंध का अनसुलझा रहस्य

भारतवर्ष की विश्व को देन दो अद्भुत, अदम्य और अलौकिक महागाथा जिसे रामायण और महाभारत कहते हैं आज उसे हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढाया जा रहा है।किन्तु जिस देश में रामायण और महाभारत लिखी गयी है उस देश के कुछ वामपंथी और हिन्दु विरॊधी नीतीवाले अति बुद्धिवान जीवी जन राम और कृष्ण के अस्तित्व को ही झुठला रहे हैं।

उनके अनुसार राम और कृष्ण वास्तव में न हॊकर काल्पनिक व्यक्ति हैं। उनके जन्म का कोई प्रमाण नहीं है। रामायण और महाभारत में विद्यमान घटनाओं को वे झूठ बताते हैं। किन्तु यही लॊग जीसस और अल्लाह कॊ ऎतिहासिक व्यक्ति बताकर उनका जयकार करते हैं। अपनी राजनैतिक रोटी सेंकनॆ हेतु वे हमॆशा हिन्दु सभ्यता, संस्कृति और देवी-देवताओं का अपमान करतें हैं।

लेकिन हमारे इतिहास से जुड़े ऐसे कई तथ्य है जो इस बात का साक्ष्य है कि रामायण और महाभारत केवल काल्पनिक कथा न हॊकर वास्तव में घटी घट्नाओं के आधार पर लिखी गयी है। ऐसा ही है एक तथ्य है मध्य प्रदेश की प्रसिद्ध भीमबेटका की गुफाओं से जुड़ा हुआ|

भोपाल से 46 किलोमीटर दक्षिण में स्थित यह गुफाएं प्रागैतिहासिक कला का प्रहरी होने के साथ ही भारतीय स्थापत्य कला का अनुपम खजाना है| वास्तव में, इन गुफाओं की पहचान देश के सबसे बड़े प्रागैतिहासिक कला के खजाने के रूप में की जाती है| भारत के प्रसिद्ध पुरातत्‍व विशेषज्ञ डॉक्टर वीएस वाकांकर ने इन गुफाओं की खोज की थी| भीमबेटका नाम भीम और वाटिका, दो शब्दों से मिल कर बना है| पौराणिक महाभारत कथा से इसका संबंध है| इसका नाम महाभारत काल के पांच पांडवों में से एक भीम के नाम पर पड़ा है|

इन गुफाओं की दीवारों पर अद्भुत चित्रण किया गया है जिसे पहली बार देखने पर किसी को भी ये लगेगा कि इसे पाषाण युग के लोगों द्वारा रचा गया होगा पर प्रत्येक चित्र को परखने पर वो अपनी ही एक कहानी ब्यान करता है| भीमबेटका के शेत्र में कूल 600 के करीब गुफाएं है और इन गुफाओं का मुख्य आकर्षण इनके ऊपर अंकित चित्रकला ही है| कुछ दीवारों पर बाघ, तेंदुआ , सूअर, हाथी, घोड़ों, जैकल्स, लोमड़ी जैसे जानवरों के चित्र दर्शाए गये है । जबकि कुछ अन्य चित्र उस युग में पुरषों के शिकार की कहानी को बयाँ करते हैं जहां पुरुषों का एक समूह अपने हाथों में छड़ के साथ घोड़ों पर सवारी करता हुआ दिखाई देता है।

क्यूंकि इन गुफाओं का इस्तेमाल विभिन्न कालों में आदिमानवों ने अपने घर के रूप में किया था, इसलिए यहां रचे गये चित्रण उनकी जीवनशैली और सांसारिक गतिविधियों को दर्शाते हैं| मौलिक रूपरेखा और रंगों के निपुण चयन ने हमारे पूर्वजों की इन गतिविधियों में जान डाल दी है|

गुफ़ाओं की सबसे प्राचीन चित्रकारी को 12000 साल पुराना जबकि सबसे नवीन चित्रकारी हजार साल पुरानी है|भीमबेटका गुफ़ाओं की विशेषता यह है कि यहाँ कि चट्टानों पर हज़ारों वर्ष पूर्व बनी चित्रकारी आज भी मौजूद है| इन चित्रों में आमतौर पर प्राकृतिक लाल और सफेद रंगों का प्रयोग किया गया है जबकि कुछ चित्रों में हरे और पीले रंग का प्रयोग भी किया गया है| अन्य पुरावशेषों में प्राचीन क़िले की दीवार, लघुस्तूप, पाषाण निर्मित भवन, शुंग-गुप्त कालीन अभिलेख, शंख अभिलेख और परमार कालीन मंदिर के अवशेष भी यहाँ मिले हैं|

टीक और साक पेड़ों से घिरी भीमबेटका गुफ़ाओं को यूनेस्को द्वारा विश्‍व विरासत स्‍थल के रूप में मान्‍यता दी गई है| भीमबेटका क्षेत्र को भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण, भोपाल मंडल ने अगस्त 1990 में राष्ट्रीय महत्त्व का स्थल घोषित किया। इसके बाद जुलाई 2003 में यूनेस्को ने इसे विश्व धरोहर स्थल घोषित किया।