वराहमिहिर त्रिकोणमिति और मंगल गृह पर पानी के अविष्कारक।
                     १५०० वर्ष पूर्व उज्जैन के गणितज्ञ/ज्योतिष विज्ञानी वराहमिहिर ने बताया था मांगल गृह पर पानी व लोहा।
                      सन् १८५० तक भारत में तक्षशिला जैसी ५०० से अधिक विश्विद्यालय थे, १५००० से अधिक महाविद्यालय व ७,५०,००० लगभग विद्यालय/गुरुकुल थे; यह आंकड़ा ब्रिटेन की संसद 'हाउस ऑफ़ कॉमन्स' की विलियम एडम की रिपोर्ट 'Vernacular education system of India 1835, 1868' से लिया गया है।
                     आज से लगभग १५०० वर्ष पूर्व, देवभूमि भारत पर एक महान गणितज्ञ व वैज्ञानिक ने सन् ५०५ में जन्म लिया, उनका नाम था- "वरःमिहिर" उनके पिताश्री भी प्रख्यात गणितज्ञ/वैज्ञानिक थे। इन्होंने उज्जैन के संदीपनी आश्रम में शिक्षा ली, जहाँ श्री कृष्णा ने भी शिक्षा ली थी।
                     वराहमिहिर वही हैं जिन्होंने त्रिकोणमिति (trigonometry) की खोज की एवं 'पंचसिद्धांतः' की रचना की, जिसमे 'सूर्य सिद्धांत' आज भी पंचांग गढ़ना के काम आता है। इन्होंने ही सूर्य ग्रहण व चंद्र ग्रहण के सिद्धांत के बारे में बताया। इन्होंने चंद्र, पृथ्वी, मंगल, बुध, गुरु आदि ग्रहों के व्यास (diameter) भी ठीक ठीक बताए। मंगल गृह का व्यास 3772 मील बताया जो आज की गढ़ना से मात्र १०% त्रुटि रखता है (वर्तमान में 4218 मील माना जाता है)
                     इन्होंने १५०० वर्ष पूर्व ही बता दिया था, मंगल गृह पर लोहा व पानी है, जिस बात की हाल में नासा/इसरो ने खरबों रूपए लगाकर पुष्टि की। इनके नाम पर शोध पत्रिका भी चलती है 'Varahmihir journal of mathematical sciences' जिसे अमेरिका/मेक्सिको आदि देशो में पढ़ा जाता है।