छत्तीसगढ़ के राजिम स्थित
राजीव लोचन मंदिर, जहाँ हर रात आते है भगवान् विष्णु !
छत्तीसगढ़ की
राजधानी रायपुर के समीप राजिम में भगवान विष्णु के चार रूपों को समर्पित भगवान
राजीव लोचन के मंदिर में चारों धाम की यात्रा होती है। छत्तीसगढ़ का प्रयाग कहे
जाने वाले राजिम में चारों धाम समाए हुए हैं। त्रिवेणी संगम पर स्थित इस मंदिर के
चारों कोनों में भगवान विष्णु के चारों रूप दिखाई देते हैं। भगवान राजीव लोचन का
यह मंदिर हर त्योहार पर बदल जाता है। लोक मान्यता के अनुसार जीवनदायिनी नदियां-
सोंढूर-पैरी-महानदी संगम पर बसे इस नगर को अर्धकुंभ के नाम से जाना जाता है। माघ
पूर्णिमा में यहां भव्य मेला लगता है, जिसमें देशभर के
श्रद्धालु शामिल होते हैं। राजीव लोचन मंदिर में प्राचीन भारतीय संस्कृति और
शिल्पकला का अनोखा समन्वय नजर आता है। आठवीं-नौवीं सदी के इस प्राचीन मंदिर में
बारह स्तंभ है। इन स्तंभों पर अष्ठभुजा वाली दुर्गा, गंगा, यमुना
और भगवान विष्णु के अवतार राम और नर्सिंग भगवान के चित्र अंकित हैं। लोक मान्यता
हैं कि इस मंदिर में साक्षात भगवान विष्णु विश्राम के लिए आते हैं।
राजिम में महानदी के तट पर छत्तीसगढ़ का प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर
स्थित है जहाँ पर भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं ! यहाँ पर महानदी, पैरी नदी तथा सोंढुर नदी का संगम होने के कारण यह स्थान छत्तीसगढ़ का
त्रिवेणी संगम कहलाता है ! राजीवलोचन में भगवान विष्णु के आने के प्रमाण भी बताए
जाते हैं ! मंदिर में हर रात्रि को भगवान के लिए गद्दी, चादर आदि से एक बिस्तर लगाया जाता है ! उसके पास एक कटोरी में तेल भी
रखा जाता है। इसके बाद पुजारी मंदिर के पट बंद कर देते हैं ! आश्चर्यजनक रूप से जब
अगले दिन मंदिर के पट खोले जाते है तब न तो कटोरी में रखा तेल मिलता है एवं बिछाए
गए बिस्तर पर सलवटें मिलती है !
बिस्तर पर मिली
सलवटों को देख ऐसा महसूस होता है जैसे रात्री के समय यहाँ कोई सोने के लिए आया हो
! श्रद्धालु मानते है कि आज भी भगवान विष्णु यहां आते हैं नित्य तेल से मालिश करते
हैं और उसके बाद यहीं शयन करते हैं !
इस घटना की
सत्यता को जाचने हेतु मंदिर के गेट पर ताला भी लगाया गया, गेट पर कड़ा पहरा भी दिया गया, परन्तु
इसके बावजूद भी अगले दिन कटोरी में से तेल नदारद मिला और बिस्तर पर भी सलवटें पायी
गयी !
प्रतिवर्ष माघ
पूर्णिमा से महाशिवरात्रि के बीच यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता है इस मेले
को राजिम कुंभ के नाम से जाना जाता है ! माघ पूर्णिमा को भगवान राजीव लोचन का
जन्मदिन माना जाता है ! श्रधालुओं का विश्वास है कि माघ पूर्णिमा के सुबह यहाँ
स्थित त्रिवेणी संगम में स्नान करने से लोगों की व्याघ्र-बाधाओं एवं पापों से
मुक्ति मिल जाती है !
गर्भगृह में
राजीवलोचन यानी विष्णु की मूर्ति सिंहासन पर स्थित है ! यह प्रतिमा काले पत्थर की
बनी चतुर्भुज आकार की है ! इसके हाथों में शंक, चक्र, गदा और पद्म है ! इसकी लोचन के नाम से पूजा होती है ! मंदिर के दोनों
दिशाओं में परिक्रमा पथ और भंडार गृह बना हुआ है ! महामंडप को 12 प्रस्तर खंभों के सहारे बनाया गया है ! गर्भगृह के द्वार पर दाएं
बाएं और ऊपर चित्र हैं इनपर सर्पाकार मानव आकृति अंकित है और मिथुन की मूर्तियां
हैं ! मंदिर में आकर्षक मिथुन मूर्तियां दीवारों पर उकेरी गई हैं ! इनके वस्त्र
अलंकरण भी आकर्षक हैं !
राजीव लोचन मंदिर में
क्षत्रिय पुजारी करते है पूजा
राजीव लोचन
मंदिर में वैसे तो अन्य मंदिरों की भाँती देखरेख के लिए ट्रस्ट मौजूद है परन्तु
राजा रत्नाकर के समय से ही इस मंदिर में क्षत्रिय पुजारी मंदिर में नियुक्त हैं !
ये क्षत्रिय पुजारी जनेउ धारण करते हैं ! स्तुति पाठ के लिए ब्राह्मण पुजारी भी
तैनात किए जाते हैं पर मुख्य पूजा क्षत्रिय पुजारी ही कराते हैं ! मंदिर में
प्रसाद के तौर पर चावल का निर्मित पीड़िया भी उपलब्ध होता है !
राजिम है आकर्षण का
केंद्र
सोंढूर-पैरी-महानदी
संगम के पूर्व में बसा राजिम अत्यंत प्राचीन समय से छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख
सांस्कृतिक केंद्र रहा है। दक्षिण कोसल के नाम से प्रख्यात क्षेत्र प्राचीन सभ्यता, संस्कृति
एवं कला की अमूल्य निधि संजोये इतिहासकारों, पुरातत्वविदों
और कलानुरागियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। रायपुर से दक्षिण पूर्व की
दिशा में 45 किमी की दूरी पर देवभोग जाने वाली सड़क पर यह स्थित है।
श्रद्धा, दर्पण, पर्वस्नान, दान
आदि धार्मिक कृत्यों के लिए इसकी सार्वजनिक महत्ता आंचलिक लोगों में पारंपरिक
आस्था, श्रद्धा एवं विश्वास की स्वाभाविक परिणति के रूप में सद्य: प्रवाहमान
है। क्षेत्रीय लोग इस संगम को प्रयाग-संगम के समान ही पवित्र मानते हैं। इनका
विश्वास है कि यहां स्नान करने मात्र से मनुष्य के समस्त कल्मष नष्ट हो जाते हैं
और मृत्युपरांत वह विष्णुलोक प्राप्त करते हैं। यहां का सबसे बड़ा पर्व
महाशिवरात्रि है। पर्वायोजन माघ मास की पूर्णिमा से प्रारंभ होकर फाल्गुन मास की
महाशिवरात्रि (कृष्ण पक्ष-त्रयोदशी) तक चलता है। इस अवसर पर छत्तीसगढ़ के
कोने-कोने से सहस्त्रों यात्री संगम स्नान करने और भगवान राजीव लोचन एवं कुलेश्वर
महादेव के दर्शन करने आते हैं। क्षेत्रीय लोगों की मान्यता है कि जगन्नाथपुरी की
यात्रा उस समय तक पूरी नहीं होती, जब तक राजिम
की यात्रा नहीं कर लें।
राजिम के देवालय
राजिम के देवालय
ऐतिहासिक और पुरातात्विक दोनों ही दृष्टियों से महत्वपूर्ण हैं। इन्हें इनकी
स्थिति के आधार पर चार भागों में देखा जाता है।
- पश्चिमी
समूह: कुलेश्वर (9वीं सदी), पंचेश्वर (9वीं
सदी) और भूतेश्वर महादेव (14वीं सदी) के मंदिर।
- मध्य
समूह: राजीव लोचन (7वीं सदी), वामन, वाराह, नृसिंह
बद्रीनाथ, जगन्नाथ, राजेश्वर एवं राजिम तेलिन मंदिर।
- पूर्व
समूह: रामचंद्र (8वीं सदी) का मंदिर।
- उत्तरी
समूह: सोमेश्वर महादेव का मंदिर।
गरियाबंद
के उत्तर-पूर्व में महानदी के दाहिने किनारे पर स्थित है, जहाँ
इसकी पैरी ओर सोंढ़ूर नामक सहायक नदियाँ इससे मिलती है। यह जिला मुख्यालयों से
सड़क द्वारा जुड़ा हुआ है और सड़क पर नियमित बसे चलती है। यह जिला मुख्यालय रायपुर
से दक्षिण-पूर्व में 45 किलोमीटर दूर है। एक रेललाईन
रायपुर-धमतरी छोटी लाईन अभनपुर से निकलती है और महानदी के बाये किनारे पर राजिम के
ठीक दूसरी ओर स्थित नवापारा को जोड़ती है। राजिम के पास नदी पर एक ऊँचा पुल बन
जाने से बारहमासी सड़क सम्पर्क स्थापित हो गया है।
सुविधाएं –
राजिम छत्तीसगढ़
में महानदी के तट पर स्थित प्रसिद्ध तीर्थ है। इसे छत्तीसगढ़ का “प्रयाग” भी कहते
हैं। यहाँ के प्रसिद्ध राजीव लोचन मंदिर में भगवान विष्णु प्रतिष्ठित हैं।
प्रतिवर्ष यहाँ पर माघ पूर्णिमा से लेकर महाशिवरात्रि तक एक विशाल मेला लगता है।
यहाँ पर महानदी, पैरी नदी तथा सोंढुर नदी का संगम होने के कारण यह स्थान छत्तीसगढ़ का
त्रिवेणी संगम कहलाता है। संगम के मध्य में कुलेश्वर महादेव का विशाल मंदिर स्थित
है। कहा जाता है कि वनवास काल में श्री राम ने इस स्थान पर अपने कुलदेवता महादेव
जी की पूजा की थी। इस स्थान का प्राचीन नाम कमलक्षेत्र है। ऐसी मान्यता है कि
सृष्टि के आरम्भ में भगवान विष्णु के नाभि से निकला कमल यहीं पर स्थित था और
ब्रह्मा जी ने यहीं से सृष्टि की रचना की थी। इसीलिये इसका नाम कमलक्षेत्र पड़ा।
राजिम को छत्तीसगढ़ का प्रयाग मानते हैं, यहाँ पैरी नदी, सोंढुर
नदी और महानदी का संगम है। संगम में अस्थि विसर्जन तथा संगम किनारे पिंडदान, श्राद्ध
एवं तर्पण किया जाता है।
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