संस्कृत के प्रचार-प्रसार के लिए 'सुधर्माको दिया जाएगा पद्मश्री 
                    देव वाणी 'संस्कृतअंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। संस्कृत भाषा के प्रसार में इस अख़बार का अहम योगदान है और इसीलिए 'सुधर्माके संपादक केवी संपत कुमार और विदुषी जयलक्ष्मी को पद्मश्री सम्मान की घोषणा हुई है। गौरतलब है कि 'सुधर्मा कर्नाटक में मैसूर से निकलने वाला संस्कृत का एकमात्र अखबार है ।

                    भारत की प्राचीन भाषा है संस्कृतजो संस्कृत अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। कर्नाटक में मैसूर से निकलने वाला संस्कृत का एकमात्र अखबार 'सुधर्मा', संस्कृत भाषा के प्रसार में इस अख़बार का अहम योगदान है और इसीलिए 'सुधर्माके संपादक केवी संपत कुमार और विदुषी जयलक्ष्मी को पद्मश्री सम्मान की घोषणा हुई है।

                    यूं तो हिंदीअंग्रेजी और कई भाषाओँ में दैनिक समाचार पत्र बुक स्टाल्स की शोभा बढ़ाते हैं। लेकिन संस्कृत के चाहने वालों के लिए कोई समाचार पत्र शायद ही कहीं दिखता हो। संस्कृतजिसे देववाणी भी कहा जाता है। बड़ी संख्या में संस्कृत को जानने और समझने वाले लोग मौजूद हैं। यही नहींअब तो आईटी प्रोफेशनल्स भी इसे काफी उपयोगी मान रहे हैं।ज़रुरत है तो आम लोगों में संस्कृत बोलने और समझने की इच्छा पैदा करने कीउसकी लोकप्रियता बढ़ाने की।

                    कर्नाटक में मैसूर से निकलने वाले संस्कृत के एकमात्र अखबार 'सुधर्माने इस काम में अपना काफी समय से योगदान दिया है लेकिन ये समाचार पत्र बहुत समय से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है। बहुत कठिनाइयों को झेलते हुए भी इसका प्रकाशन अनवरत जारी है। इसके पीछे मेहनत है अखबार के संपादक केवी संपत कुमार और उनकी पत्नी विदुषी जयलक्ष्मी की।

                    संस्कृत के विद्वान पंडित वरदराज आयंगर ने संस्कृत भाषा के प्रचार प्रसार के लिए 15 जुलाई 1970 को सुधर्मा की शुरुआत की थी। अब उनके पुत्र केवी संपत कुमार और उनकी पत्नी जयलक्ष्मी इस काम को पूरी लगन से आगे बढ़ा रहे हैं। आकार में छपने वाले इस अखबार के करीब 3000 सबस्क्राइबर्स हैंजिनमें से अधिकांशतः विभिन्न संस्थान अथवा लाइब्रेरी हैंजिन्हें यह अखबार डाक के द्वारा भेजा जाता है।

                    इस अखबार के ई-वर्जन के करीब एक लाख पाठक हैं। एक तरफ हिंदी और अन्य भाषाओं के अखबार लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रहे हैंवहीं संस्कृत के इस एकमात्र अखबार को चालू रखना काफी मुश्किल भरा काम था। पौने दो रुपए की कीमत वाले इस अखबार में वेदयोग और धर्म के साथ ही राजनीति व कल्चर समेत विभिन्न विषयों पर आर्टिकल रहते हैं।

                    अखबार को आगे बढ़ाने की दिशा में कोई जब कोई सहयोग न मिल रहा हो ऐसे में सुधर्मा फायदे का सौदा नहींबल्कि एक मिशन बन गया. और यह उस भाषा के लिए प्यार का प्रदर्शन हैजो अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी पहचान बना रही है। संस्कृत भाषा के प्रति इसी प्यार व समर्पण के लिए अखबार के संपादक केवी संपत कुमार और उनकी पत्नी विदुषी जयलक्ष्मी को भारत सरकार ने पद्मश्री जैसे देश के सर्वोच्च सम्मान से सम्मानित किया है।

                    इन्हें ये पुरस्कार साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में पत्रकारिता के लिए दिया गया है। इससे पहले भी इन्हें कई पुरस्कारों से नवाज़ा जा चूका है। संस्कृत भाषा को आगे बढ़ाने और उसे जन जन तक पहुँचाने उसे लोगों की आम बोली का हिस्सा बनाने का इस दंपत्ति की ये यात्रा कठिनाइयों से तो ज़रूर गुज़री लेकिन आज एक अलग पहचानएक अलग मुक़ाम बना चुकी है।