हिंदुओं दोबारा ये मत कहना कि सभी धर्म समान हैं!
                            मैंने अक्सर कई हिंदुओं को ये कहते सुना है कि सारे धर्म समान हैं। लेकिन ऐसे लोगों को शायद ये एहसास भी नहीं होगा कि ईसाई और मुसलमान ऐसा नहीं मानते। दुनिया में सिर्फ हिंदू ही हैं, जो ये बात बोलते और उस पर यकीन करते हैं। वरना मुस्लिम और ईसाई धर्म में इस बात को लेकर कोई कनफ्यूजन नहीं है कि धरती का इकलौता धर्म वही हैं और उनका भगवान ही असली है। दोनों के लिए ही हिंदू धर्म को मानने वाले ऐसे लोग हैं जिनका ‘उद्धार’ करके उन्हें असली ईश्वर के करीब लाने की जरूरत है। ईसाई और मुसलमान एक-दूसरे को बराबर नहीं मानते तो हिंदुओं को यह दर्जा मिलने का तो सवाल ही पैदा नहीं होता।

बच्चों को धर्म के बारे में बताएं
                            कुछ हिंदू कहते हैं कि हम सभी धर्मों का सम्मान करते हैं। हम अपने बच्चों को ये बात सिखाते हैं। हमारे बच्चों को ईसाई और इस्लाम की अच्छाइयों के बारे में बहुत कुछ जानने का मौका मिलता है। हम किसी धर्म की भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहते। इसलिए हम अपने ही बच्चों को हिंदू धर्म के बारे में बहुत कम बताते हैं। जो थोड़ा-बहुत बताते भी हैं वो काफी सतही होता है। जैसे कि हमारे त्यौहार और रीति-रिवाज क्या हैं। इनके पीछे क्या तर्क और क्या वैज्ञानिक सोच है ये हम अपने बच्चों को अक्सर बताते ही नहीं। हालांकि हिंदू नहीं चाहते कि ईसाई और इस्लाम धर्म को मानने वाले उनके धर्म का सम्मान नहीं करें। इसी बात को समझते हुए पादरी और मौलवी कभी ये बात हिंदुओं के मुंह पर तो नहीं कहते, लेकिन मस्जिदों और चर्च में होने वाली तकरीरों में वो खुलकर बोलते हैं कि ‘हिंदू धर्म को मानने वाले अगर धर्म नहीं बदलेंगे तो नर्क में जाएंगे। हम अपने बच्चों को जीसस और उनके पिता या पैगंबर और अल्ला के बारे में बताते हैं इसके बावजूद ईसाई और इस्लाम मानने वालों में इतना अहंकार और मूर्खता भरी हुई है कि वो अपने भगवान से जरा भी टस से मस नहीं होते। वो हमेशा यही कहेंगे कि जीसस/अल्लाह महान है। वो दूसरे धर्म के लोगों को नर्क की आग में जिंदा जलाएगा।

हर धर्म मानवता नहीं सिखाता!
                            मैंने देखा है कि हर हिंदू यह कहता हुआ मिल जाएगा कि “सभी धर्म मानवता की शिक्षा देते हैं और इंसान को ईश्वर के करीब ले जाने का रास्ता बताते हैं।” लेकिन मैंने गौर किया है कि हिंदुओं के अलावा ईसाई और मुसलमान यह बात कभी नहीं कहते। हिंदू अक्सर यह बात बिना जाने हुए बोलते हैं। उन्हें लगता है कि ऐसा कहने से धर्मों में आपसी भाईचारा बढ़ेगा। लेकिन यह सच नहीं है। हां यह सच जरूर है कि हर धर्म में आपको कुछ अच्छे लोग जरूर मिल जाएंगे। मुसलमान और ईसाई अपने एक काल्पनिक ईश्वर के लिए लड़ाई लड़ रहे हैं। वो उन सभी से नफरत करते हैं जो उनके ईश्वर में विश्वास नहीं रखता। इन दोनों ही धर्मों का इतिहास ऐसे खूनखराबे से भरा पड़ा है। हिंदुओं में भी लड़ाइयां हुईं लेकिन वो ईश्वर पर विश्वास करने वालों और नहीं करने वालों के बीच नहीं, बल्कि अच्छाई और बुराई के प्रतीक के तौर पर हुईं। उनका मकसद दूसरों को अपना धर्म मानने को मजबूर करना नहीं था। लेकिन हिंदू अपनी इस बड़ी खूबी को नजरअंदाज कर देते हैं। शायद ये हजारों साल की गुलामी की मानसिकता का नतीजा है कि वो आज ये सोचने लगे हैं कि क्यों बेवजह किसी को उकसाया जाए।

हिंदुओं में हीनभावना भरी गई है
                            सनातन परंपरा को मानने वालों को गलत को गलत कहना सीखना होगा। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हर हिंदू जो अपना धर्म छोड़ता है उससे सिर्फ एक हिंदू कम नहीं होता, बल्कि एक नया दुश्मन भी तैयार हो जाता है। जब उन्होंने यह बात कही थी उस दौर में देश पर ब्रिटिश राज था। ये वो दौर था कि ईसाई खुद को सामाजिक रूप से हिंदुओं से श्रेष्ठ मानते थे। यही स्थिति मुसलमानों की थी, क्योंकि उन्हें लगता था कि वो देश के शासक रहे हैं। दोनों ने ही हिंदुओं को ‘मूर्तिपूजक’ कहकर न सिर्फ अपमानित किया, बल्कि कमतर दिखाने की भी कोशिश की। बची-खुची कसर ब्रिटिश शिक्षा प्रणाली ने पूरी कर दी, जिसके चलते पढ़े-लिखे संभ्रांत हिंदू ने दब्बू बन गए। अब समय आ चुका है कि हम दुनिया को बताएं कि असली हिंदुत्व क्या है।

हिंदू धर्म जैसा कोई दूसरा नहीं
                            ये दुनिया पर राज करने वाली बात नहीं है। यह कोई मनगढ़ंत सिद्धांतों में विश्वास करने का मामला भी नहीं है। हिंदू धर्म कभी नहीं कहता कि अपने धर्म वालों के लिए अच्छा और न मानने वालों से बुरा बर्ताव करो। ये शरीर और मन से अलग हमारी सच्चाई क्या है उसे खोजने की बात है। पश्चिमी दुनिया के वैज्ञानिकों से बहुत पहले ही हमारे ऋषियों ने इस आभासी अनेकता में छिपी एकता को जान और समझ लिया था। ईश्वर एक है और वो सबके अंदर है। हम सभी उसे पा सकते हैं। हम सभी उसी एक ईश्वर की संतान हैं। हम सभी एक ही परिवार के सदस्य हैं। वसुधैव कुटुंबकम। विश्वशांति का सबसे तर्कसंगत आधार भी यही है। हिंदुत्व को छोड़ दें तो कोई और धर्म यह बात नहीं बताता। फिर सारे धर्म समान कैसे हुए?

                             (मारिया विर्थ जर्मनी के एक कैथलिक ईसाई परिवार में पैदा हुई थीं। धर्मों के अध्ययन के दौरान उनकी हिंदू धर्म के लिए रुचि पैदा हुई। करीब 35 साल से वो भारत में ही रहती हैं। वो यहां पर एक साधक का जीवन जी रही हैं। यह लेख हमने उनके ब्लॉग से अनुवाद किया है।)