हम्पी, कर्नाटक में अंजनेद्रि
पहाड़ी - इसे भगवान हनुमानजी का जन्मस्थान माना जाता है।
हनुमान जी को
भगवान शिव का ही अवतार माना जाता है। हनुमानजी का जन्म कहां और कैसे हुआ था इसका
उल्लेख बहुत ही कम ग्रंथों में हैं, लेकिन
वाल्मीकि रामायण में बताई गई जगहों और प्रसंगों को जोड़कर मान्यताओं के अनुसार
हनुमानजी के जन्म का स्थान झारखंड के आंजन गांव में स्थिति एक गुफा में माना जाता
है। इसके अलावा उनके जन्म से जुड़ी एक अन्य कथा भी है।
देवी अंजनी के नाम पर
पड़ा इस जगह का नाम
स्थानीय
मान्यताओं के अनुसार, हनुमानजी का
जन्म गुमला जिले के आंजनधाम स्थित एक पहाड़ी की गुफा में हुआ था। जिस गुफा में
भगवान हनुमान का जन्म हुआ था, उसका दरवाजा
कलयुग में अपने आप बंद हो गया। गुफा के दरवाजे को भगवान हनुमान की माता अंजनी ने
स्वयं बंद कर लिया, क्योंकि स्थानीय
लोगों द्वारा वहां दी गई बलि से वे नाराज थीं। यह गुफा आज भी मौजूद है।
जिस गांव में ये
गुफा है उसका नाम आंजन है, जो कि हनुमानजी
की माता अंजनी के नाम पर ही पड़ा। यह गांव गुमला जिले से लगभग 22 किमी की दूरी पर है। यहां पर एकमात्र ऐसा मंदिर है, जहां भगवान हनुमान अपनी माता की गोद में बैठे दिखाई देते हैं।
यहां एक छोटा सा मंदिर है, जिसकी स्थापना भगवान हनुमान के भक्तों ने 1953 में की थी। इस मंदिर में भगवान हनुमान और माता अंजना की सुंदर
मूर्ति है। यहां भगवान हनुमान अपनी माता की गोद में बैठे दिखाई देते हैं।
हनुमानजी के जन्म से
जुड़ी एक पौराणिक कथा
हनुमान जी को
भगवान शिव का 11वां अवतार माना
जाता है। हनुमान जी के जन्म से जुड़ी पौराणिक कथा के मुताबिक एक बार अमरत्व की
प्राप्ति के लिये जब देवताओं और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तो उससे निकले अमृत को असुरों ने छीन लिया। इसके बाद देव और दानवों
में युद्ध छिड़ गया। इसे देख भगवान विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया, जिसे देख देवताओं और असुरों के साथ ही भगवान शिव भी कामातुर हो गए।
इस दौरान भगवान शिव ने वीर्य त्याग किया, जिसे पवनदेव ने वानरराज केसरी की पत्नी
अंजना के गर्भ में प्रविष्ट कर दिया। इसके फलस्वरूप माता अंजना के गर्भ से श्री
हनुमान का जन्म हुआ।
हम में से बहुत
कम लोग जानते हैं कि हनुमानजी का जन्म भारत में कहां हुआ था। हनुमानजी की माता का
नाम अंजना है इसीलिए उन्हें आंजनेय भी कहा जाता है। उनके पिता का नाम केसरी है
इसीलिए उन्हें केसरीनंदन भी कहा जाता है। केसरी को कपिराज भी कहा जाता था, क्योंकि
वे कपिक्षेत्र के राजा थे। अब सवाल यह उठता है कि यह कपि क्षेत्र भारत में कहां
स्थित है? इस विषय में विद्वानों में मतभेद हैं।
हनुमानजी का
जन्म कल्पभेद से कई विद्वान चैत्र सुद 1 मघा नक्षत्र को
मानते हैं। कोई कार्तिक वद 14, कोई कार्तिक सुद 15 को
मानते हैं। कुछ चैत्र माह की पूर्णिमा को उनके जन्म का समय मानते हैं और कुछ
कार्तिक, कृष्ण चतुर्दशी की महानिशाको, लेकिन ज्यादातर
जगह चैत्र माह की पूर्णिमा को मान्यता मिली हुई है।
हनुमानजी की जन्मतिथि को लेकर मतभेद हैं। कुछ
हनुमान जन्मोत्सव की तिथि कार्तिक कृष्णचतुर्दशी मानते हैं तो कुछ चैत्र शुक्ल
पूर्णिमा। इस विषय में ग्रंथों में दोनों के ही उल्लेख मिलते हैं, किंतु
इनके कारणों में भिन्नता है। वास्तव में पहला जन्मदिवस है और दूसरा विजय अभिनन्दन
महोत्सव।
1. डांग जिला का
अंजनी पर्वत : कुछविद्वान मानते हैं कि नवसारी (गुजरात) स्थित डांग जिला पूर्व काल
में दंडकारण्य प्रदेश के रूप में पहचाना जाता था। इस दंडकारण्य में राम ने अपने
जीवन के 10 वर्ष गुजारे थे। डांग जिला आदिवासियों का क्षेत्र है। आजकल यहां
ईसाई मिशनरी सक्रिय है। हालांकि आदिवासियों के प्रमुख देव राम हैं। आदिवासी मानते
हैं कि भगवान राम वनवास के दौरान पंचवटी की ओर जाते समय डांग प्रदेश से गुजरे थे।
डांग जिले के सुबिर के पास भगवान राम और लक्ष्मण को शबरी माता ने बेर खिलाए थे।
शबरी भील समाज से थी। आज यह स्थल शबरी धाम नाम से जाना जाता है।
शबरीधाम से लगभग
7 किमी की दूरी पर पूर्णा नदी पर स्थित पंपा सरोवर है। यहीं मातंग
ऋषिका आश्रम था। डांग जिले के आदिवासियों की सबसे प्रबल मान्यता यह भी है कि डांग
जिले के अंजना पर्वत में स्थित अंजनी गुफा में ही हनुमानजीका जन्म हुआ था।
कैथल का अंजनी मंदिर :
कैथल हरियाणा
प्रान्त का एक शहर है। इसकी सीमा करनाल, कुरुक्षेत्र, जिंद, और
पंजाब के पटियाला जिले से मिली हुई है। इसे वानर राज हनुमान का जन्म स्थान माना
जाता है। इसका प्राचीन नाम था कपिस्थल। कपिस्थल कुरू साम्राज्य का एक प्रमुख भाग
था। आधुनिक कैथल पहले करनाल जिले का भाग था।
पुराणों के
अनुसार इसे वानरराज हनुमान का जन्म स्थान माना जाता है। कपि के राजा होने के कारण
हनुमानजी के पिता को कपिराज कहा जाता था।
कैथल में पर्यटक
ऐतिहासिक और पौराणिक कथाओं से जुड़े अवशेष भी देखे जा सकते हैं। इसके अलावा यहां
पर हनुमानजी की माता अंजनी का एक प्राचीन मंदिर भी और अजान किला भी।
गुमला का पंपा सरोवर :
कुछ लोग मानते
हैं कि हनुमानजी का जन्म झारखंड राज्य के उग्रवाद प्रभावित क्षेत्र गुमला जिला
मुख्यालय से 20 किलोमीटर दूर आंजन गांव की एक गुफा में हुआ था। इसी जिले के पालकोट
प्रखंड में बालि और सुग्रीव का राज्य था। माना यह भी जाता है कि यहीं पर शबरी का
आश्रम था।
यह क्षेत्र
रामायण काल में दंडकारण्यण क्षेत्र का हिस्सा था। यहीं पर पंपा सरोवर हैं जहां राम
और लक्ष्मण ने रुककर जल ग्रहण किया था।
जंगल और पहाड़ों
में से घिरे इस आंजन गांव में एक अति प्राचीन गुफा है। यह गुफा पहाड़ की चोटी पर
स्थित है। माना जाता है कि यहीं पर माता अंजना और पिताकेसरी रहते थे। यहीं पर
हनुमानजी का जन्म हुआ था। गुफा का द्वार बड़े पत्थरों से बंद है लेकिन छोटे छिद्र
से आदिवासी लोग उस स्थान के दर्शन करते हैं और अक्षत व पुष्प चढ़ाते हैं। लेकिन
कुछ लोग मानते हैं कि यह स्थान माता अंजना के जन्म से जुड़ा है।
एक जनश्रुति के
अनुसार आदिवासियों को इस बात का भान नहीं था कि हनुमानजी और उनके माता-पिता
पवित्रता और धर्म के पालन करने वालों के प्रति प्रसन्न रहते हैं। आदिवासियों ने
माता अंजना को प्रसन्न करने के लिए एक दिन उनकी गुफा के समक्ष बकरे की बलि दे दी।
इससे माता अप्रसन्न हो गई और उन्होंने एक विशालकाय पत्थर से हमेशा-हमेशा के लिए
गुफा का द्वार बंद कर दिया। अब जो भी इस गुफा के द्वार को खोलने का प्रयास करेगा
उसके ऊपर विपत्ति आएगी।
इस गुफा की
लंबाई 1500 फीट से अधिक है। इसी गुफा से माता अंजना खटवा नदी तक जाती थीं और
स्नान कर लौट आती थीं। खटवा नदी में एक अंधेरी सुरंग है, जो
आंजन गुफा तक ले जाती है।
मान्यता अनुसार
इस गुफा के आंजन पहाड़ पर रामायण काल में ऋषि-मुनियों ने सप्त जनाश्रम स्थापित किए
थे। यहां सात जनजातियां निवास करतीं थीं- 1.शबर, 2.वानर, 3.निषाद्, 4.गृद्धख्
5.नाग, 6.किन्नर व 7.राक्षस। जनाश्रम के प्रभारी थे-अगस्त्य, अगस्त्यभ्राता, सुतीक्ष्ण, मांडकणि, अत्रि, शरभंग
व मतंग। यहां छोटानागपुर में दो स्थानों पर आश्रम है- एक आंजन व दूसरा टांगीनाथ
धाम है।
अन्य मतातंर से
कुछ लोग राजस्थान के चुरु जिले के सुजानगढ़ में, कुछ हंफी में तो
कुछ लोग नासिक के त्र्यंबकेश्वर के पास अंजनेरी पहाड़ी को हनुमान जी का जन्म स्थल
मानते हैं।
हम लोगो के लॉक डाउन में रहने का मतलब! की
— ⛳🌅 #सनातन_धर्म स्वीकार करो 🌅⛳ (@hinduconversion) April 12, 2020
मंदिर में घंटे नहीं बजेंगे?
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