दिवाली के ठीक ग्यारह दिन बाद उत्तराखंड में मनाया जाता है ये ख़ास त्यौहार !
                   भारत को यूँ ही विविधताओं का देश नहीं कहा जाता है, यहाँ हर सौ मीटर पर आपकी मुलाक़ात एक नई भाषा और संस्कृति से होती है। हमारे देश में हर राज्य और प्रदेश में त्योहारों को अलग-अलग अंदाज से मनाया जाता है। आज हम उत्तराखंड के एक ख़ास त्यौहार के बारे में आपको बताने जा रहे हैं जिसे दिवाली के ठीक ग्यारह दिनों के बाद बेहद हर्ष और उत्साह के साथ मनाया जाता है। आइये जानते हैं कौन सा है ये त्यौहार और पहाड़ों में क्यों इसे इतनी महत्ता दी जाती है।

उत्तराखंड की सभ्यता और संस्कृति की पहचान है ये ख़ास त्यौहार
                   आपको बता दें कि, आज हम जिस ख़ास त्यौहार के बारे में आपको बताने जा रहे हैं उसका नाम है इगास बग्वाल। इस ख़ास त्यौहार को पूरे उत्तराखंड में खूब धूम धाम के साथ हर साल दिवाली के ग्यारह दिनों के बाद मनाया जाता है। इगास बग्वाल को ही पहाड़ों में दीपावली का त्यौहार माना जाता है। जिस प्रकार से उत्तर भारत में दिवाली के दिन मुख्य रूप से देवी लक्ष्मी की पूजा अर्चना के बाद पटाखे जलाते हैं और त्यौहार का आनंद लेते हैं ठीक उसी प्रकार से इगास बग्वाल के दौरान भी उत्तराखंड निवासी पटाखों के साथ इस त्यौहार को मनाते हैं। इस त्यौहार की मुख्य विशेषता ये है की इस दिन परिवार के सभी सदस्य एकत्रित होकर भैलो नृत्य करते हैं। इस समूह नृत्य को इस त्यौहार का मुख्य आकर्षण भी माना जाता है।

भैलो नृत्य का महत्व  
                   उत्तराखंड के पहाड़ी संस्कृति में इगास बग्वाल को ख़ासा महत्वपूर्ण त्यौहार माना जाता है। इस दिन किये जाने वाले भैलो नृत्य को इस संस्कृति का अहम हिस्सा माना जाता है। भैलो नृत्य में मुख्य रूप से लोग एक रस्सी लेकर उसमें आग लगाकर उसे गोल-गोल घुमाते हुए नृत्य करते हैं। इस नृत्य के लिए विशेष रूप से जो रस्सी इस्तेमाल की जाती है वो पेड़ के छालों से बनाई जाती है, इसके दोनों कोनों पर आग लगाकर भैलो नृत्य किया जाता है।

दिवाली के ग्यारह दिनों के बाद क्यों मनाया जाता है ये त्यौहार
                   बता दें कि, दिवाली के ग्यारह दिनों के बाद इस त्यौहार को मनाये जाने के पीछे एक प्रचीन पौराणिक कथा है। इसके अनुसार जब भगवान श्री राम बनवास समाप्त करने के बाद माता सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अयोध्या पहुंचे तो, समस्त अयोध्या वासी ने उनका स्वागत घी के दीये जलाकर किया था और इस दिन को ही हम सभी दिवाली के रूप में हर साल मनाते हैं। लेकिन ऐसा माना जाता है कि, पहाड़ों में रहने वाले लोगों को भगवान राम के अयोध्या पहुँचने की बात ग्यारह दिनों के बाद मालूम चली थी। इसलिए यहाँ के लोगों के ग्यारह दिनों के बाद अपनी प्रशंसा जाहिर करते हुए दिवाली का त्यौहार मनाया। एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार मुख्य दिवाली के दिन भैलो बनाने के लिए चंबा का एक आदमी जंगल गया लेकिन वो शाम तक वापिस नहीं लौटा। उस शख्स के ना लौटने के कारण गावं वालों ने उस दिन दिवाली नहीं मनाई। हालाँकि जब ग्यारह दिनों के बाद वो शख्स घर लौटा तब जाकर धूम धाम के साथ लोगों ने दिवाली मनाई और उसे इगास बग्वाल का नाम दिया।

                   इस साल मुख्य रूप से उत्तराखंड की सरकार इस त्यौहार को अपने परिवार वालों के साथ मनाने के लिए राज्य से बाहर रहने वाले लोगों को भी ख़ासा प्रेरित कर रहे हैं। उत्तराखंड की सभ्यता और संस्कृति का एक अहम हिस्सा माने जाने वाले इस त्यौहार के लिए प्रशासन भी ख़ासा जागरूक रहती है।