मांगलिक कार्यक्रम में
निमंत्रण देने के लिए गणेश जी को इस मंदिर में भेजी जाती है चिट्ठी !
हिन्दू धर्म में
कई देवी-देवताओं का उल्लेख किया गया है और इसी कारण भारत में हमें जगह-जगह आस्था
और विश्वास के अनोखे व अद्भुत उदाहरण आए दिन देखने को मिलते हैं। आज के इस आधुनिक
युग में जहाँ मनुष्य चाँद तक पहुँच गया है वहां इंटरनेट, ई-मेल
और फोन आदि का चलन बच्चे से लेकर बूढ़ों तक हर किसी को प्रभावित कर रहा है, ऐसे
में आज हम आपको एक ऐसी दुर्लभ जगह के बारे में बताएंगे जहां हर साल देश-विदेश से
लाखों की संख्या में चिट्ठियाँ भेजी जाती हैं और सबसे हैरान करने वाली बात ये है
कि यह चिट्ठियाँ यहाँ किसी इंसान को नहीं बल्कि भगवान गणेश को भेजी जाती हैं।
राजस्थान के रणतभंवर
मंदिर में भगवान गणेश की होती है पूजा
जी हाँ, हम
बात कर रहे हैं राजस्थान के सवाई माधोपुर जिले के अंतर्गत आने वाले रणथंभौर में
स्थित प्रसिद्ध त्रिनेत्र गणेश जी के चमत्कारी मंदिर की। जिसे विश्व भर में
रणतभंवर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर अरावली और विंध्याचल की
पहाड़ियों पर समुद्र तल से करीब 1579 फीट ऊंचाई पर स्थित है। इस मंदिर की
सबसे बड़ी ख़ासियत है यहां आने वाले ‘पत्र’, जो इस मंदिर को
दुनियाभर में और भी दुर्लभ बनाते हैं। जिस प्रकार घर-परिवार में कोई भी शुभ या
मंगल काम होने पर सबसे प्रथम पूज्य को निमंत्रण भेजा जाना शुभ होता है, ठीक
उसी प्रकार यहाँ भक्त अलग-अलग कार्यक्रमों का निमंत्रण भगवान गणेश को चिट्ठी
द्वारा भेजते हैं।
भक्त अपनी समस्याएँ पत्र
के जरिये श्री गणेश को बताते हैं
इसके साथ ही
अपनी किसी भी प्रकार की परेशानियों को भी दूर करने हेतु उसकी अरदास यहाँ भक्त
भगवान गणेश को पत्र भेजकर लगाते है। जिसके चलते यहाँ रोज़ाना हजारों निमंत्रण पत्र
और चिट्ठियाँ डाक के जरिये पहुँचती हैं। इसके अलावा यहाँ कि मान्यता है कि यहां
सच्चे मन से मांगी गई हर मुराद गणेश जी पूर्ण करते हैं।
महाराजा हम्मीरदेव चौहान
द्वारा कराया गया था मंदिर का निर्माण
इस मंदिर के
निर्माण को लेकर एक कहानी बेहद प्रचलित है, जिसके अनुसार 1299-1301
ईस्वी के बीच में महाराजा हम्मीरदेव चौहान व दिल्ली शासक अलाउद्दीन खिलजी का युद्ध
राजस्थान के रणथम्भौर में आरम्भ हुआ था। जिस दौरान नौ महीने से भी ज्यादा समय तक
यह किला अलाउद्दीन खिलजी ने घेरे रखा। नौ महीने के लम्बे वक़्त के बाद दुर्ग में
राशन सामग्री समाप्त होने लगी, जिसके बाद भगवान गणेशजी ने हमीरदेव
चौहान के सपने में आकर उन्हें दर्शन दिए और उसी स्थान पर पूजा करने के लिए कहा
जहां आज यह अनूठा गणेशजी का मंदिर स्थित है। जब राजा हमीरदेव गणेशजी की बताई गई
जगह पर पूजा करने पहुंचे तो वहां उन्हे स्वयंभू प्रकट गणेशजी की एक दर्लभ प्रतिमा
मिली। जिसके बाद ही महाराजा हमीरदेव ने यहां मंदिर का निर्माण कराया।
त्रिनेत्र गणेश जी की
हैं अपनी कई पौराणिक मान्यताएँ
इस चमत्कारी
मंदिर में आपको त्रिनेत्र गणेश जी के दर्शन करने को मिलते हैं। पौराणिक शास्त्रों
की माने तो त्रिनेत्र गणेश जी के इस स्वरूप का उल्लेख रामायण काल और द्वापर युग
में भी मिलता है। मान्यता है कि भगवान राम ने लंका कूच से पहले भगवान गणपति के इसी
रूप का अभिषेक किया था। वहीं एक अन्य मान्यता के अनुसार जब द्वापर युग में भगवान
कृष्ण का विवाह रूकमणी संग हुआ था, तो श्री कृष्ण
अपने विवाह में गणेशजी को बुलाना भूल गए थे। इससे क्रोध में आकर गणेशजी के वाहन
मूषकों ने कृष्ण के रथ को के आगे-पीछे हर जगह से खोद दिया था। जिसके बाद कृष्ण को
अपनी इस बड़ी गलती का अहसास हुआ और उन्होंने गणेशजी को मनाया और तभी से आज तक हर
मंगल कार्य करने से पहले गणेश जी की पूजा-वंदना किये जाने का विधान है। माना जाता
है कि भगवान कुष्ण ने जिस स्थान पर गणेशजी को मनाया था वह स्थान रणथंभौर ही था।
यही कारण है कि रणथम्भौर गणेश मंदिर को भारत का प्रथम गणेश मंदिर कहा जाता है।
मान्यता तो ये भी है कि सम्राट विक्रमादित्य इस मंदिर के चमत्कारों के चलते ही
यहाँ हर बुधवार को गणेश जी की पूजा करने आते थे।
अपने पूर्ण परिवार के
साथ यहाँ विराजमान है भगवान गणेश
जैसा हमने पहले
ही बताया कि इस मंदिर में भगवान गणेश जी त्रिनेत्र स्वरूप में विराजमान है, जिसमें
उनका तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक बताया गया है। पूरी दुनिया का यहाँ अकेला ऐसा
मंदिर है जहां गणेश जी अपने पूर्ण परिवार, अपनी दो पत्नी
रिद्दि-सिद्दि एवं दो पुत्र शुभ-लाभ के साथ विराजमान है।
त्रिनेत्र गणेश जी के इस
मंदिर को प्राप्त है पहला स्थान
इस मंदिर की
महत्वता इसलिए भी बढ़ जाती है क्योंकि पूरे देश में सबसे बड़े चार स्वयंभू गणेश
मंदिर माने जाते है, जिनमें से रणथम्भौर स्थित त्रिनेत्र गणेश जी के इस मंदिर को प्रथम
स्थान प्राप्त है। इसके बाद गुजरात का सिद्दपुर गणेश मंदिर, उज्जैन
का अवंतिका गणेश मंदिर एवं मध्यप्रदेश स्थित तसिद्दपुर सिहोर मंदिर के नाम आते है।
इसकी महत्ता को देखते हुए ही यहाँ हर साल भाद्रपद शुक्ल की चतुर्थी को भव्य मेले
का आयोजन किया जाता है। जिसमें देश से ही नहीं बल्कि विदेशों से भी श्रद्धालु
गणेशजी के दरबार में उनके दर्शन करने आते हैं। इस दौरान यह पूरा क्षेत्र गजानन के
जयकारों और गणेश भक्ति में डूबा नज़र आता है। यहाँ मौजूद भगवान त्रिनेत्र गणेश की
परिक्रमा करीब 7 किलोमीटर के लगभग है। जिसे करते हुए भक्त गजानन से उनका आशीर्वाद
मांगते हैं।
प्राकृतिक सुंदरता से
घिरा हुआ है मंदिर
रणथंभौर गणेशजी
के इस मंदिर की भौगोलिक विशेषता को देखें तो यह प्रसिद्ध रणथंभौर टाइगर रिजर्व में
स्थित है, जहाँ की प्राकृतिक सुंदरता का दिलदार करने हर साल बड़ी तादाद में
पर्यटक यहाँ आते हैं। वर्षा ऋतु के दौरान तो यहां जगह-जगह ज़मीन से मानों झरने फूट
पड़ते है, जिससे ये पूरा इलाक़ रमणीय हो जाता है। गणेश जी का ये दर्लभ मंदिर
यहाँ संरक्षित धरोहर घोषित किले के अंदर स्थित है, जिसके कारण इसके
रख-रखाव का ज़िम्मा खुद प्रशासन उठता है।
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