मृत्यु के 14 प्रकार।
राम
और रावण का युद्ध चल रहा था।तब अंगद रावण को बोला तू तो मारा हुआ है। तुझे मारने
से क्या फायदा ?
रावण
बोला मैं जीवित हूँ मरा कैसे ? अंगद बोले सिर्फ
सांस लेनेवालों को जीवित नही कहते - सांस तो लुहार का भाता भी लेता है,
तब अंगद ने 14 प्रकार की
मृत्यु बतायी । अंगदद्वारा
रावण को बताई गई ये बातें आज के दौर में भी लागू होती हैं ।
यदि किसी व्यक्ति में इन 14
दुर्गुणों में से एक दुर्गुण भी आ जाता है तो वह मृतक समान हो जाता है।
विचार करें कहीं यह दुर्गुण हमारे पास
तो नहीं....कि हमें मृतक समान माना जाय।
1.कामवश-
जो व्यक्ति अत्यंत भोगी हो, कामवासना में
लिप्त रहता हो, जो संसार के भोगों में उलझा हुआ हो,
वह मृत समान है। जिसके मन की इच्छाएं कभी खत्म नहीं होती और जो
प्राणी सिर्फ अपनी इच्छाओं के अधीन होकर ही जीता है, वह
मृत समान है। वह अध्यात्म का सेवन नही करता। सदैव वासना में लिन रहता है।
2.वाम
मार्गी- जो व्यक्ति पूरी दुनिया से उल्टा चले। जो संसार की हर बात के पीछे
नकारात्मकता खोजता हो। नियमों, परंपराओं और लोक
व्यवहार के खिलाफ चलता हो, वह वाम मार्गी
कहलाता है। ऐसे काम करने वाले लोग मृत समान माने गए हैं।
3.कंजूस-
अति कंजूस व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जो व्यक्ति धर्म के कार्य करने में,
आर्थिक रूप से किसी कल्याण कार्य में हिस्सा लेने में हिचकता हो। दान
करने से बचता हो। ऐसा आदमी भी मृत समान ही है।
4.अति
दरिद्र- गरीबी सबसे बड़ा श्राप है। जो व्यक्ति धन, आत्म-विश्वास,
सम्मान और साहस से हीन हो, वो भी मृत ही
है। अत्यंत दरिद्र भी मरा हुआ हैं। दरिद्र व्यक्ति को दुत्कारना नहीं चाहिए,
क्योकि वह पहले ही मरा हुआ होता है। बल्कि गरीब लोगों की मदद करनी
चाहिए।
5.विमूढ़-
अत्यंत मूढ़ यानी मूर्ख व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसके पास विवेक,
बुद्धि नहीं हो। जो खुद निर्णय ना ले सके यानि हर काम को समझने या
निर्णय को लेने में किसी अन्य परआश्रित हो,
ऐसा व्यक्ति भी जीवित होते हुए मृत के समान ही है। मुढ़ को आत्मा
अध्यात्म समझता नही।
6.अजसि-
जिस व्यक्ति को संसार में बदनामी मिली हुई है, वह
भी मरा हुआ है। जो घर, परिवार, कुटुंब,
समाज, नगर या राष्ट्र,
किसी भी ईकाई में सम्मान नहीं पाता है, वह
व्यक्ति मृत समान ही होता है।
7.सदा
रोगवश- जो व्यक्ति निरंतर रोगी रहता है, वह भी मरा हुआ
है। स्वस्थ शरीर के अभाव में मन विचलित रहता है।नकारात्मकता हावी हो जाती है।
व्यक्ति मुक्ति की कामना में लग जाता है। जीवित होते हुए भी रोगी व्यक्ति स्वस्थ्य
जीवन के आनंद से वंचित रह जाता है।
8.अति
बूढ़ा - अत्यंत वृद्ध व्यक्ति भी मृत समान होता है, क्योंकि
वह अन्य लोगों पर आश्रित हो जाता है। शरीर और बुद्धि, दोनों
असक्षम हो जाते हैं। ऐसे में कई बार स्वयं वह और उसके परिजन ही उसकी मृत्यु की
कामना करने लगते हैं, ताकि उसे इन कष्टों से मुक्ति मिल सके।
9.सतत
क्रोधी- 24 घंटे क्रोध में रहने वाला भी मृत समान
ही है। हर छोटी-बड़ी बात पर क्रोध करना ऐसे लोगों का काम होता है। क्रोध के कारण
मन और बुद्धि, दोनों ही उसके नियंत्रण से बाहर होते
हैं। जिस व्यक्ति का अपने मन और बुद्धि पर नियंत्रण न हो, वह
जीवित होकर भी जीवित नहीं माना जाता है।पूर्व भव के संस्कार लेकर यह जीव क्रोधी
होता है। क्रोधी अनेक जीवों का घात करता है।और नरक गामी होता है।
10.अघ
खानी- जो व्यक्ति पाप कर्मों से अर्जित धन से अपना और परिवार का पालन-पोषण करता है,
वह व्यक्ति भी मृत समान ही है। उसके साथ रहने वाले लोग भी उसी के
समान हो जाते हैं। हमेशा मेहनत और ईमानदारी से कमाई करके ही धन प्राप्त करना
चाहिए। पाप की कमाई पाप में ही जाती है। और पाप की कमाई से नीच गोत्र निगोद की
प्राप्ति होती है।
11.तनु
पोषक- ऐसा व्यक्ति जो पूरी तरह से आत्म संतुष्टि और खुद के स्वार्थों के लिए ही
जीता है, संसार के किसी अन्य प्राणी के लिए उसके मन में कोई संवेदना ना हो तो
ऐसा व्यक्तिभी मृत समान है। जो लोग खाने-पीने में, वाहनों
में स्थान के लिए, हर बात में सिर्फ यही सोचते हैं कि
सारी चीजें पहले हमें ही मिल जाएं, बाकि किसी अन्य
को मिले ना मिले, वे मृत समान होते हैं। ऐसे लोग समाज और
राष्ट्र के लिए अनुपयोगी होते हैं। शरीर को अपना मानकर उसमें रत रहना मूर्खता है
क्यों की यह शरीर विनाशी है । पूरन गलन से सहित है। नष्ट होनेवाला है।
12.निंदक-
अकारण निंदा करने वाला व्यक्ति भी मरा हुआ होता है। जिसे दूसरों में सिर्फ कमियां
ही नजर आती हैं। जो व्यक्ति किसी के अच्छे काम की भी आलोचना करने से नहीं चूकता।
ऐसा व्यक्ति जो किसी के पास भी बैठे तो सिर्फ किसी नाकिसी की बुराई ही करे,
वह इंसान मृत समान होता है। पर की निंदा
करने से नीच गोत्र का बन्ध होता है।
13.परमात्म
विमुख- जो व्यक्ति परमात्मा का विरोधी है, वह
भी मृत समान है। जो व्यक्ति ये सोच लेता है कि कोई परमतत्व है ही नहीं। हम जो करते
हैं, वही होता है। संसार हम ही चला रहे हैं। जो परमशक्ति में आस्था नहीं
रखता है, ऐसा व्यक्ति भी मृत माना जाता है।
14. श्रुति
, संत विरोधी- जो संत, ग्रंथ,
पुराण का विरोधी है, वह भी मृत समान
होता है।
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