हिन्दू समाज में शूद्रों को क्या क्या शिक्षा दी जाती थीं?  🚩🚩


                   आजकल वामपंथी, कम्युनिस्ट, म्लेच्छ इतिहासकारों के द्वारा   ये बात बहुत अधिक फैलाई जाती है कि भारत में शूद्रों का बहुत अधिक शोषण हुआ, उन्हें अनपढ़ रखा जाता था। उनके धन को हड़प लिया था था या उन्हें केवल गुलाम बना के रखा जाता था। पर यदि प्राचीन भारत की शिक्षा पद्धति का सही से आंकलन करें तो हमें कुछ और ही दृश्य देखने को मिलता है।

 

                    प्राचीन भारतीय शिक्षा पद्धति ऐसी थी जिससे इहलौकिक और पारलौकिक दोनों सुखों की प्राप्ति हो सके। और समाज के सब लोग एक दूसरे के काम आ सकें। किसी को बेरोजगार न घूमना पड़े और सबके घरों में अन्न, धन, पशु इत्यादि हों। इसलिए समाज को चार वर्णों में बांटा गया ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, क्षुद्र। और इन चार वर्णों को अलग अलग कार्य सौंपा गया जिसमें ब्राह्मणों को धर्म, अध्यात्म व आजीविका की शिक्षा देने का कार्य, क्षत्रियों को धर्म व न्याय पूर्वक सब प्रजा की रक्षा व कर आदि के माध्यम से सबके पालन का कार्य, वैश्यों को कृषि, गौपालन, व्यापार का कार्य, और क्षुद्रों को लघु व कुटीर उद्योग के द्वारा उत्पादन विभाग, व सेवा प्रकल्प का कार्य।

 

                   क्षुद्रों पर ही अधिक बवाल है तो अभी उसी के कार्यों का वणर्न करेंगे। शुद्र के लिए शास्त्रों में अन्य तीन वर्णो की सेवा करना ही धर्म बताया गया है। अब आप कहेंगे कि सेवा मतलब गुलामी? तो नहीं, सेवा मतलब केवल गुलामी नहीं होता बल्कि सेवा मतलब दूसरों की मदद करना और आज्ञा पालन करना भी होता है। जैसे यदि कोई पिता अपने पुत्र को  पानी का गिलास लाने की आज्ञा देता है तो पुत्र उस आज्ञा का पालन करके सेवा ही तो कर रहा है। आज्ञा पालन करना ही सेवा का वास्तविक रूप है। आज्ञा पालन किसकी? माता पिता की, शास्त्रों की, गुरुजनों की आज्ञा पालन करना सेवा है।

 

                   तो शूद्रों को क्या आज्ञा दी जाती थी? क्षुद्रों के अंदर भी उपजातियां बनाकर उन्हें अलग अलग लघु, कुटीर उद्योग खोलने की आज्ञा दी गयी और उन उन उपजातियों के व्यक्तियों को अलग अलग काम सिखाये गए। जैसे :-

1. एक उपजाति बनाई गई जुलाहा जिन्हें कपड़ा बनाना सिखाया गया और उन्होंने राजा से लेकर गरीब ब्राह्मण तक सबके कपड़े बनाये। ऊन, सूत, रेशम आदि कई तरह के कपड़े बनाये। और विश्व भर में भारत का कपड़ा मशहूर हुआ करता था। तो इस प्रकार जुलाहों ने धन व कीर्ति दोनों प्राप्त करी। मतलब पूरी Textile Industry क्षुद्रों को दी गईं।

2.  दूसरी उपजाति बनी शिल्पकार जिन्हें स्थापत्य वेद व शिल्पकला, वास्तु आदि की शिक्षा दी गयी । और इन्होंने उस शिक्षा के बल पर सख्त से सख्त चट्टानों को चीरकर भी कैलाश मन्दिर जैसे सुंदर मजबूत मन्दिर बनाये जिनकी तुलना विश्वभर में कहीं नहीं है। केदारनाथ मंदिर इतनी भयंकर बाढ़ सहकर भी खड़ा है। बहुत से किले 500, 700 वर्ष से अभी तक खड़े हैं जिनपर तोप के गोले भी विफल हुए। और म्लेच्छों द्वारा तोड़े जाने का बावजूद अब भी भारत में ऐसे बढ़िया मन्दिर खड़े हैं जिनके आगे आज के वैज्ञानिक भी दांतो तले उंगली चबाते हैं। तो उस समय के जो शिल्पकार थे उनके पास तो आज के Civil Engineer/Architect से भी अधिक मेधा व श्रम शक्ति रही थीं जिसके बल पर उन्होंने वो सब बनाया। मतलब Infrastructure Construction Sector पूरा क्षुद्रों के लिए।

3. राजाओं व सेना के लिए युद्ध में लड़ने के लिए हथियार बनाने का काम भी शुद्र ही करते थे। और सब तरह के औजार, पुर्जे वैगेरह बनाने का काम ये सब शुद्र ही तो करते थे। सुई से लेकर मन्दिर बनाने तक का सब काम क्षुद्रों को सौंपा गया। मतलब DRDO Arms Manufacturing Industry क्षुद्रों को दी गईं।

4. तेल निकालने वाले लोग जिन्हें तेली भी कहा जाता है। वे सब क्षुद्रों की ही उपजातियां हैं। मतलब Edible Oil Industry पूरी क्षुद्रों को दी गईं।

5. किस मिट्टी से कौन सा बर्तन बनाना है इसका विज्ञान कुम्हारों को दिया गया। ताकि वे ऐसे बर्तन बना सकें जिनका सेहत पर कोई साइड इफ़ेक्ट न पड़े। वरना आजकल तो एल्युमीनियम, स्टील व प्लास्टिक के बर्तन तो महारोग ही उतपन्न करते हैं। मिट्टी के बर्तनों का प्रयोग तो समाज के सभी लोग ही करते थे, और विशेषकर साधु लोग। मठ मंदिरों में तो आज भी मिट्टी के ही बर्तनों का प्रयोग होता है।

6. ये जो यातायात के साधन थे बैलगाड़ी, रथ, घोड़ागाड़ी, नाव/समुद्री जहाज इत्यादि ये सब बनाने वाले भी तो शुद्र होते थे। मतलब पूरा automobile sector उनको दिया गया।

7. चमड़े के जूते बनाने का काम जिन्हें आजकल चमार कहा जाता है वे सब शुद्र वर्ण के ही तो थे। मतलब पूरी Footwear Industry उनको दी गयी

8. धातुविज्ञान क्षुद्रों को दिया गया ताकि वे लोहा, तांबा, स्वर्ण, चांदी, पीतल आदि धातुओं से अलग अलग तरह के बर्तन, आभूषण, औजार व मूर्तियां बना सकें। तो बिना chemsitry का ज्ञान लिए क्या वे लोग ये सब कर पाते? तो पूरी Metallurgy की पढ़ाई उनके लिए आरक्षित रखी गयी।

                    यज्ञ, पूजा, ध्यान में बैठने के लिए आसन चाहिए, तो बनायेगा कौन, शुद्र ही तो बनाते थे ये सब आसन, चटाई, इत्यादि और आज भी बनाते हैं।

                   राज्य की रक्षा के लिए मजबूत अस्त्र, शस्त्र, व रथ आदि चाहियें तो बनाता कौन था जी? सब शुद्र ही बनाते थे। लोगो को रहने के लिए घर, मकान चाहियें। बनाए वाले शुद्र होते थे। पीने के लिए जल चाहिए तो कुआं, तालाब खोदने वाले कौन थे? खेती करने के लिए हल, फावड़ा, खुरपी, दरांती, आरी आदि चाहियें तो इन सब औजारों को कौन बनाता था? और भी बहुत कुछ लिखा जा सकता है पर बड़े लेख को अक्सर लोग पढ़ते नहीं। मोटा मोटा समझ लीजिए कि समाज के लोगों के काम को साधने के लिए जिन जिन वस्तुओं का उपयोग होता था वे सब बनाने वाले शुद्र ही होते थे।