अपने इस अनोखे अवतार में
सदियों बाद आज भी इस किले में भगवान शिव करते हैं वास
हिन्दू धार्मिक
ग्रन्थ महाभारत के बारे में भला कौन नहीं जनता है और महाभारत को जानने वाले लोग
अवश्य ही अश्वत्थामा के बारे में तो जानकारी रखते ही होंगे। महाभारत के कई प्रमुख
चरित्रों में से एक अश्वत्थामा भी थे, जिनको लेकर
मान्यता है कि उनका वजूद सदियों बाद आज भी आपको मिल जाएगा।
भगवान शिव के अवतार थे
अश्वत्थामा
महाभारत अनुसार, द्रोणाचार्य
के पुत्र अश्वत्थामा को काल, क्रोध, यम और भगवान शिव
के अंशावतार माना जाता था। लेकिन उनको लेकर जो एक मान्यता बेहद हैरान करने वाली है
वो ये हैं कि कई लोग मानते है कि अश्वत्थामा आज भी जिंदा हैं जो मध्य प्रदेश के एक
किले में हर दिन भगवान शिव की पूजा करने आते हैं।
जी हाँ, माना
जाता है कि भगवान शिव के अवतार अश्वत्थामा आज भी मध्यप्रदेश के जबलपुर शहर के
ग्वारीघाट ( नर्मदा नदी ) के किनारे भटकते रहते हैं। इतना ही नहीं असीरगढ़ किले
में भी इनके भटकने की बातें सुनने को मिलती रहती हैं।
शास्त्र व शस्त्र विद्या
में सर्वश्रेष्ठ थे अश्वत्थामा
१. अश्वत्थामा
को लेकर कई रोचक तथ्य आपको महाभारत में मिल जाएंगे, जिसके अनुसार:-
२. उनका
जन्म द्वापरयुग में भारद्वाज ऋषि के पुत्र द्रोण के यहां हुआ था।
३. उनकी
माता ऋषि शरद्वान की पुत्री कृपी बेहद धर्मज्ञ, सुशील और
तपस्विनी थीं।
४. चूँकि
द्रोणाचार्य का गोत्र अंगिरा था। ऐसे में तपस्यारत द्रोण ने अपने पूर्वजों की
आज्ञा से संतान प्राप्ति हेतु कृपी से विवाह किया था।
५. जन्म
लेते ही अश्वत्थामा ने उच्चैःश्रवा (अश्व) के समान घोर शब्द बोला, जिसकी
ध्वनि सभी दिशाओं और व्योम में गुंज उठी। तब जाकर कही बालक का नाम अश्वत्थामा रखा
गया।
६. अश्वत्थामा
की गिनती उस युग के श्रेष्ठ योद्धाओं में होती थी।
७. वो
गुरु द्रोणाचार्य के पुत्र तो थे ही साथ ही कुरु वंश के राजगुरु कृपाचार्य के
भांजे भी थे।
८. उनके
पिता द्रोणाचार्य ने ही कौरवों और पांडवों को शस्त्र विद्या सिखाई थी।
९. अश्वत्थामा
में भी अपने पिता जैसा तेज था जिसके चलते उन्होंने भी पिता की भांति शास्त्र व
शस्त्र विद्या में खुद को निपुण बनाया था।
१०. पिता-पुत्र
की ये जोड़ी इतनी मजबूत थी कि महाभारत के युद्ध के दौरान दोनों ने पांडवों की सेना
को छिन्न-भिन्न कर दिया था।
११. अश्वत्थामा
और द्रोणाचार्य से पांडव सेना को हारता देख श्रीकृष्ण ने द्रोणाचार्य का वध करने
के लिए युधिष्ठिर से एक कूटनीति का सहारा लेने को कहा था।
१२. श्री
कृष्ण की उसी योजना के तहत युद्ध भूमि में यह बात फैला दी गई कि अश्वत्थामा मारा
गया है, जो असल में योध्या अश्वत्थामा नहीं बल्कि एक हाथी था।
१३. इस
योजना के बाद ही पांडव सेना महाभारत का युद्ध जीत पाने में कामयाब हुई थी।
१४. जब श्रीकृष्ण ने दिया अश्वत्थामा को श्राप
महाभारत युद्ध
में अश्वत्थामा के मारे जाने की खबर सुनकर जब द्रोणाचार्य ने धर्मराज युधिष्ठिर से
अश्वत्थामा की मृत्यु की सत्यता जाननी चाही तो उसका जवाब योजना के तहत युधिष्ठिर
ने देते हुआ कहा कि “अश्वत्थामा मारा गया है, लेकिन….”
इतने श्री कृष्ण ने शंखनाथ कर दिया जिसके
बाद गुरु द्रोण ने पुत्र मोह में आकर अपने शस्त्र त्याग दिए और वो वहीं युद्ध भूमि
में बैठ गए। इतने में ही उस अवसर का लाभ उठाकर पांचाल नरेश द्रुपद के पुत्र
धृष्टद्युम्न ने उनका वध कर दिया।
जिसके बाद पिता
द्रोणाचार्य की मृत्यु ने अश्वत्थामा को अंदर तक झकझोर कर रख दिया था। इसके बाद
प्रतिशोद की आग में जल रहे अश्वत्थामा ने महाभारत युद्ध के दौरान अपने पिता की
मृत्यु का बदला लेने के लिए सभी पांडव पुत्रों का वध कर दिया। इसके बाद भी मानो
अश्वत्थामा का क्रोध शांत नहीं हुआ और उसने पांडव वंश के समूल नाश के लिए अर्जुन
की पत्नी और श्री कृष्ण की बहन उत्तरा के गर्भ में पल रहे पुत्र अभिमन्यु को मारने
के लिए ब्रह्मास्त्र चलाया, तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी बहन के
गर्भ की रक्षा कर दंड स्वरूप अश्वत्थामा के माथे पर लगी मणि निकालकर उन्हें तेजहीन
कर दिया और इसके साथ ही उन्हें युगों-युगों तक भटकते रहने का श्राप भी दे दिया था।
तभी से माना जाता है कि अश्वत्थामा महाभारत युग से आज तक पृथ्वी पर भटक रहे हैं।
शिव मंदिर में
अश्वत्थामा आज भी करने आते हैं पूजा-अर्चना
मध्यप्रदेश के
असीरगढ़ किले के आस-पास के गाँव वालों की माने तो असीरगढ़ किले में एक तालाब स्थित
है, जहाँ आज भी अश्वत्थामा पहले उसी तालाब में स्नान कर और उसके बाद वहां
के शिव मंदिर में पूजा-अर्चना भी करते हैं। कुछ लोगों का तो ये भी कहना है कि वे
उतावली नदी में स्नान करके ही भगवान शिव की पूजा के लिए इस किले में आते हैं।
इस किले से भी जुड़े कई
और रोचक तथ्य आपको सुनने को मिल जाएंगे। उन्ही तथ्य के अनुसार:-
१. पहाड़
की चोटी पर बने किले में स्थित ये तालाब बुरहानपुर की तपती गरमी में भी कभी सूखता
नहीं।
२. किले
के अंदर और तालाब के थोड़ा आगे गुप्तेश्वर महादेव का एक प्राचीन मंदिर भी बना हुआ
है।
३. ये
प्राचीन शिव मंदिर चारों तरफ से डरावनी खाइयों से घिरा है।
४. मान्यता
अनुसार इन्हीं खाइयों में एक गुप्त रास्ता है, जो खांडव वन (
मध्यप्रदेश के खंडवा जिला ) से होते हुए सीधा इस मंदिर में निकलता है और इसी गुप्त
रास्ते का प्रयोग आज भी शिव के अवतार अश्वत्थामा मंदिर में आने के लिए करते
हैं।
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