गोस्वामी तुलसीदास ने
राम चरित मानस से भारतीय समाज को एकसूत्र में पिरोया।
अवधी भाषा मे
श्री रामचरित मानस जैसे महाकाव्य की रचना कर मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम की आदर्श
कथा को घर-घर में पहुंचाने वाले प्रातः स्मरणीय महान संत तुलसीदास जी। एक ऐसे दौर
में पूज्य कवि का जन्म हुआ था जब हमारे समाज में सत्य सनातन धर्म को गंभीर
चुनौतियों से दो चार होना पड़ रहा था। अनेक वितंडावाद,शासकों
के आपसी कलह तथा पाखंड वाद के चलते हमारा सत्य सनातन धर्म गंभीर संकट के दौर में
था। समाज मे विधर्मियों द्वारा वेद विहीन आचरण फैला कर सभी सनातनी लोंगों की आस्था
को तार- तार किया जा रहा था।ऐसे में गोस्वामी तुलसीदास जी का अवतरण भारत के
लोकमंगल के लिए हुआ।
स्वयं गोस्वामी तुलसीदास जी ने
कवितावली में तत्कालीन समाज का चित्रण करते हुए कहा है कि ‘खेती न किसान को, भिखारी
को न भीख, बलि, वनिक को बनिज न चाकर को चाकरी।
जीविका-विहीन लोग सीद्यमान सोच बस, कहैं
एक एकन सौ “कहां जाइ, का करी”।
बेद हूं पुरान कही, लोकहू
बिलोकिअत, साकरे सबै पै राम रावरें कृपा करी।
दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु
! दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी ॥
ऐसे किंकर्तव्यविमूढ़ समाज मे गोस्वामी
तुलसीदास जी ने श्री राम चरित मानस के जरिये संस्कार सूत्र में भारतीय समाज को
एकसूत्र और एकबद्ध किया। श्री राम चरित मानस भारत के कण-कण में रचा -बसा महाकाव्य
है जिसमे हमारा सनातन धर्म,मूल्य और भारतीयता का मूलाभाव निहित
है। यह महाकाव्य सत्य सनातन धर्म का प्राण है।
नाना प्रकार के संघर्षों से दो चार
होते हुए,सगुण और निर्गुण के द्वंद में उलझे समाज को जागरूक करने तथा वैष्णव
और शैव के आपसी द्वैष को खत्म करने वाले गोस्वामी तुलसीदास जी ऐसे महान संत थे
जिन्होंने समाज को बदलने के लिए शस्त्र को उठाने की जगह अपनी लेखनी के बल पर समाज
में रामराज्य का आदर्श स्थापित करने का प्रयास किया। समाज में सदाचार,मर्यादा
और लोकमंगल की प्रतिष्ठा सहित आदरणीय जनों का सम्मान और आसुरी प्रवृत्तियों के
पराभव को अपनी सशक्त लेखनी से धार देते हुए उन्होंने भगवान श्री राम के आदर्श रूप
की समाज में स्थापना कर सम्पूर्ण तत्कालीन भारतीय समाज को एकसूत्र में पिरोया।
श्री राम को मर्यादा पुरुषोत्तम का स्वरूप देते हुए परहित सरिस धर्म नहि भाई की
अवधारणा को स्थापित किया। उन्होंने समाज में परहित की भावना पर बल देते हुए
रामजन्म जग मंगल हेतू का भाव लोंगो में जागृत किया।
भारत में सामंतवाद हर्षोत्तर कालीन
भारत से ही अपने उफान पर था और मुगल सल्तनत तक यह चर्मोत्कर्ष पर हो गया था जहां
रिश्ते-नाते तार-तार थे।सगा भाई अपने सगा भाई का हन्ता था। आपसी कलह से,दुराचार
से संपूर्ण भारत में त्राहि -त्राहि मची थी।ऐसे वक्त में उन्होंने मर्यादा का
स्वरूप पत्नी के रूप में भगवती सीता,भाई के चरित्र
में सौतेले भाई भरत,सगे भाई के चरित्र में लक्ष्मण के आदर्श को समाज के समक्ष प्रस्तुत
किया। श्री राम चरित मानस के जरिये उन्होंने उन पात्रों को विशेष रूप से रेखांकित
किया जिसकी समाज को आवश्यकता थी। भरत जैसे सौतेले भाई के साथ आपसी प्यार के
चर्मोत्कर्ष को दिखाकर वह समाज मे वह बोध स्थापित करना चाहते थे। वह निगम-आगम तथा
वैष्णव-शैव के विवादों में न पड़ कर समाज की एक रूपता के लिए उन्होंने इस महाग्रन्थ
को लिखने का कारण भी स्पष्ट कर दिया था-
नानापुराणनिगमागमसम्मतं
यद् रामायणे निगदितं क्वचिदन्यतोऽपि।
स्वान्तःसुखाय
तुलसी रघुनाथगाथाभाषानिबन्धमतिमंजुलमातनोति॥
आज भारतीय लोक जीवन ही राममय है।
नमस्कार हो या तिरस्कार,जन्म हो या मृत्यु श्री राम सदा साथ
हैं। भारत भूमि में एक से एक प्रतिभाशाली और विद्वान सन्तों ने समय- समय पर जन्म
लिया है जिनके उपदेश और ज्ञान के समक्ष आज पूरा विश्व नतमस्तक है लेकिन गोस्वामी
तुलसीदास ने अपने लोकमंगलकारी महाकाव्य से जिस स्थान को हासिल किया उस स्थान तक
लोकमानस में कोई भी विद्वान और सन्त नही पहुंच पाया है। यह महान देश कभी भी
गोस्वामी तुलसीदास जैसे महान सन्त से उऋण नही हो सकता। आज उनकी जयंती पर विश्व का
हिन्दू समाज गौरवान्वित है कि उनके आराध्य और हम भारतीयों के जन-जन के नायक
मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम का भव्य मंदिर शताब्दियों की प्रतीक्षा के बाद
अयोध्या में बनने जा रहा है। गोस्वामी तुलसीदास जी की जयंती के अवसर पर श्री राम
जन्मभूमि पर भव्य मंदिर के निर्माण के तिथि की घोषणा कितनी उत्साहजनक है यह इस
महान संत को राष्ट्र की तरफ से नमन करने का अभूतपूर्व क्षण है।
0 टिप्पणियाँ