चिंतनिका परम पुरुषार्थ के मार्ग में कूद पड़ो। भूतकाल के लिए पश्चाताप और भविष्य की चिन्ता छोड़कर निकल पड़ो। परमात्मा के प्रति अनन्य भाव रखो।फिर देखो कि इस घोर कलियुग में भी तुम्हारे लिए अन्न, वस्त्र और निवास की कैसी व्यवस्था होती है। जिस साधना में तुम्हारी रुचि होगी उस साधना में ईश्वर मधुरता भर देंगे। तुम्हारी भावना, तुम्हारी निष्ठा पक्की होना महत्त्वपूर्ण है। तुम्हारे परम इष्टदेव तुम पर खुश हो जायें तो अनिष्ट तुम्हारा कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते। परम इष्टदेव है तुम्हारा आत्मा, तुम्हारा निजस्वरूप। परमात्मा में तुम्हारी अनन्य भक्ति हो जाये तो परमात्मा तुम्हें कुछ देंगे नहीं, वे तुम्हें अपने में मिला लेंगे। अब बताओ, आपको कुछ देना शेष रहा क्या? ईश्वर के सिवाय अन्य तमाम सुखों के इर्द गिर्द व्यर्थता के काँटे लगे ही रहते हैं। जरा सा सावधान होकर सोचोगे तो यह बात समझ में आ जायेगी और तुम ईश्वर के मार्ग पर चल पड़ोगे। लौकिक सरकार भी अपने सरकारी कर्मचारी की जिम्मेदारी सँभालते हैं। फिर ऊर्ध्वलोक की दिव्य सरकार, परम पालक परमात्मा अध्यात्म के पथिक का बोझ नहीं उठायेंगे क्या? पर्व के दिन किया हुआ शुभ कार्य अधिक फलदायी होता है। ध्यान करते समय मन यदि स्थिर न होकर इधर उधर भटकने लगे तो ध्यान करना छोड़कर मन को कहोः"अच्छा बेटा!जाओ.... जहाँ तुम्हारी इच्छा हो जाओ। सब रूप तो भगवान ने ही धराण कर रखे हैं। जो भी वस्तुएँ दिखलाई देती हैं वे सबपरमात्मा नारायण के ही रुप हैं। सारे संसार में सबको भगवान का रूप समझकर मन ही मन भगवदबुद्धि से सबको प्रणाम करो। एक परमात्मा ने ही अनन्तरूप धारण कर लिये हैं। बार-बार ऐसी धारणा दृढ़ करते रहने से भी भगवद् दर्शन सुलभ हो जाता है।