महाराणा प्रताप।


                                  भारतके इतिहासमें राजा महाराणा प्रतापका नाम अमर है । महाराणा प्रताप राजस्थानके शूरवीर एवं स्वाभिमानी राजा थे। जयपुरके राणा मानसिंहने अकबर द्वारा अपने राज्यको कष्ट न हो; इसलिए अपनी बहनका विवाह अकबरसे किया । एक बार अपने वैभवके प्रदर्शन हेतु राजपूत दिल्ली जाते समय मार्गमें स्थित महाराणा प्रतापसे मिलने कुंभलगढ गये । महाराणा प्रतापने उन सभीका योग्य आदरसत्कार किया; परंतु उसने साथ बैठकर भोजन न करने की इच्छा व्यक्त की । मानसिंहद्वारा कारण पूछनेपर महाराणा प्रतापने कहा, ``समशेरी (मुगल शासक)से अपने राज्यकी रक्षा करनेकी अपेक्षा अपनी बेटी-बहनोंको मुगलोंके हाथ देकर उनसे राज्यकी रक्षा करानेवाले स्वाभिमान शून्य राजपूतोंके साथ बैठकर मैं भोजन नहीं करता ।'' महाराणा प्रतापजीद्वारा कहे गए कटु सत्य सुनकर मानसिंह भोजनकी थाली छोड, खडा हुआ और क्रोधित होकर चिल्लाया, ``महाराणा प्रताप ! रणक्षेत्रमें तेरा सत्यानाश नहीं किया, तो मेरा नाम मानसिंह नहीं !'' कुछ समय उपरांत मानसिंह, अकबरके पुत्र सलीम एवं प्रचंड सैन्यके साथ महाराणा प्रतापसे युद्ध करने निकला । यह सूचना मिलते ही महाराणा प्रतापने तत्परतासे अरावली पर्वतसे आनेवाले मार्गपर मानसिंहकी सेनापर आक्रमण आरंभ किया और उनकी अधिकांश सेनाको मिट्टीमें मिला दिया । महाराणा प्रतापजीकी तलवारसे सलीमका वध होनेवाला था; परंतु वह वार उसके हाथीपर हुआ और सलीम बच गया । महाराणा प्रतापकी तलवारके भयसे मानसिंह सेनाके पीछे था । महाराणा अपनी धारदार चमकती तलवारसे शत्रुके घेरेसे बाहर निकलनेका प्रयास कर रहे थे । इतनेमें किसी शत्रुसैनिकने महाराणाजीके घोडे चेतकके एक पैर में तीर मारकर उसे घायल कर दिया। ऐसी स्थितिमें भी वह स्वामीनिष्ठ घोडा अपनी पीठपर बैठे महाराणाजीको बचानेके लिए भागकर उस घेरेको भेदनेका प्रयास करने लगा । इतनेमें मार्गमें नाला आया । चेतकने छलांग लगाकर वह नाला पार किया, परंतु हृदय गति रुकनेके कारण उसने अपने प्राण त्याग दिए । महाराणा प्रतापजीने पीछे मुडकर देखा, तो अकबरकी सेनामें भर्ती हुआ उनका छोटा भाई शक्तिसिंह, चार-पांच मुगल सैनिकोंको जानसे मार रहा था । वह दृश्य देखकर महाराणाजी आश्चर्यचकित हुए । इतनेमें उन पांच सैनिकोंके प्राण लेकर शक्तिसिंह महाराणाके पास आया एवं उन्हें आलिंगनमें लेकर कहने लगा, ``भैया ! मैं मुगलोंकी सेनामें हूं, तो भी आपका असीम शौर्य, पराक्रमके कारण आप ही मेरा आदर्श हैं । मैं आपके इस स्वामीनिष्ठ घोडेसे भी तुच्छ हूं ।'' मेवाडका इतिहास लिखनेवाले कर्नल टॉण्डने महाराणा प्रतापजीका गौरव बताते हुए कहा है, `उत्कट महत्वाकांक्षी, शासन निपुणता एवं अपरिमित साधनसंपत्तिके बलपर अकबरने दृढनिश्चयी, धैर्यशाली, उज्ज्वल कीर्तिमान और साहसी महाराणा प्रतापके आत्मबलको गिरानेका प्रयास किया; परंतु वह निष्फल हुआ ।'