हिंदुओं में माँसाहार की प्रवृति कब और कैसे हो गयी ?
हिंदुओँ
में माँसाहार का कोई स्थान न पहले था न अब है क्योँकी हिँदुओँ का मूल सनातन धर्म
है। सनातन धर्म मेँ हर बात का बैज्ञानिक महत्व है। सनातन धर्म मेँ वो सारे कार्य
किये जाते है जो अनिवार्य हैँ जिनके बिना दैनिक जीवन ठीक तरह से नहीँ चल सकता।
सनातन धर्म मेँ सारे प्राणी समान हैँ। मनुष्य उनमेँ शेष्ट है क्योँकी मनुष्य मेँ
सोचन समझने की शक्ति है। मनुष्य ये विचार करके अपना जीवन अच्छे से जी सकता है की
क्या करना चाहिए? और क्या नहीँ करना चाहिए। जैसे एक पशु को प्यास
लगी है और एक मनुष्य को प्यास लगी है तो पशु तो आसानी से उसकी शुद्धता नहीँ पता कर
पाएगा जबकी एक मनुष्य आसानी से उसकी शुद्धता परख कर फिर पानी पिएगा। सनातन धर्म
मेँ बिना कारण किसी को नहीँ मार सकते "अहिँसा परमो धर्मः धर्मँ हिँसा तथैव
च।" अर्थात कोई बिना कारण किसी को परेशान कर या मार रहा है तो उसे मारने पर
पाप लगेगा। यही कारण है की हिँदुओँ मेँ बिना कारण किसी को नहीँ मारा जाता। और किसी
का माँस खाना ये तो पूर्ण रुप से गलत है जैसा की वेद, पुराण
और ग्रंथोँ मेँ बताया गया है।
अब
आते है की हिँदुओँ ने माँस खाना कब से शुरु किया और क्योँ? जब
से हिँदुओँ का धर्मग्रंथ और गुरुकुल शिक्षा पद्धति को नष्ट किया गया। तभी से
हिँदुओँ को धर्मशिक्षा न मिल पाने के कारण धार्मिक ज्ञान तेजी से नष्ट होने लगा।
हिँदुओँ मेँ १९४७ तक कोई माँस नहीँ खाता था। १९४७ के बाद हिँदुओँ का धार्मिक दमन
किया गया। झूठा इतिहास लिखा गया और पढाया गया। गुरुकुलोँ को नष्ट करके कान्बेँट
स्कूल (Convent School) बनाया गया और इन स्कूलोँ मेँ इसाईयोँ
और मुसलमानोँ ने वही झूठा इतिहास पढाया जो मुसलमानोँ और ईसाईयोँ द्वारा लिखा गया
था। (ध्यान रहे : अंग्रेज इसाई थे एवं जबाहर लाल नेहरु और महात्मा गाँधी मुसलमान
थे जो हिँदुओँ से घृणा करते थे।) इन कान्बेँट स्कूलोँ मेँ अंडे, माँस, मछली
और माँस से बने उत्पादोँ को शाकाहारी बताया गया और खूब प्रचार किया गया ये बताकर
कि स्वास्थय के लिए अच्छा है जबकी से पूर्णतः गलत है। और यही अब तक पढाया जा रहा
है। और १९४७ की कथित आजादी के बाद फिल्म इंडस्ट्री, बालीबुड बना जो
मुसलमानोँ से भरा पडा है। पहले इन मुसलमानोँ की फिल्म तक देखना कोई हिँदू पसंद
नहीँ करता था जिसके कारण मुसलमानोँ ने अपना नाम बदलकर हिँदू नाम रख लिए। लेकिन नाम
बदलने से आदतेँ तो आसानी से नहीँ बदलती। फिर धीरे धीरे नाम बदलू सारे मुसलमान अपनी
असली औकात मेँ आते गये और अपनी फिल्मोँ मेँ माँसाहार का खूब समर्थन किया। जिसके
कारण हिँदू समाज दूषित होने लगा। और एक बडा कारण है भारत मेँ जितने भी मुसलमान थे
और विदेशी घुसपैठिऐ मुसलमान जो भारत मेँ रह रहे थे उन्होँने बडी मात्रा मेँ माँस
का व्यापार करने लगे।
इसी दौर मेँ
बौलीबुड फिल्मेँ के साथ भारतीय बिकाऊ मीडिया का उदय हुआ जो पुर्णतः विदेशियोँ
द्वारा चलाया जाता है और पूर्ण रूप से बिकाऊ है जो बेश्या जैसे किसी के चरित्र पर
लांछन लगा रहा है। और फिर बौलीबुड मेँ हिँदू धर्म को कलंकित करने वाली फिल्मेँ
बनने लगीँ जिनमेँ पूरे हिँदू धर्म पर लांछन लगाया जा रहा है, महिलाओँ
को चरित्रहीन बनाया गया, साधू संतोँ को और मंदिर के पुजारियोँ
को चोर, अपराधी दिखाया गया। जिनको दिखाने के लिए दाऊद
इब्राहिम जैसे लुच्चे लफंगे और इसाई मिश्नरियोँ और अरब देशोँ द्वारा पैसा दिया
जाता है हिन्दू विरोधी फिल्मेँ दिखाकर हिन्दुओँ को सनातन हिन्दू धर्म मेँ घृणा
पैदा करने के लिए। इसी का लाभ उठा कर कई करोडोँ की संख्या मेँ पूरे भारत मेँ
बाईबिल बाँटी गयी POWER TO CHANGE INDIA नाम की पुस्तक कई भाषाओँ मेँ बनाकर BIBLE के
साथ घर घर बाँटी गयीँ। और साथ मेँ बिकाऊ मीडिया के माध्यम से अंडे और माँसाहार का
सबसे अधिक प्रचार किया जा रहा है।
और
इसी कडी मेँ बिकाऊ समाचार चैनलोँ ने जो इसाई मिश्नरियोँ और अरब देशोँ के मुल्ला
शेखोँ के डालर पर टुकडोँ पर पलते हैँ, भारत के संतो पर
लांछन लगा दिया और सनातन धर्म के धार्मिक ग्रंथोँ का भी दुष्प्रचार किया। ((
उदाहरण स्वामी विवेकानंद पर भी इसाई मिश्नरियोँ ने आरोप लगाया था, संत
आशारामजी बापू को छेडछाड के झूठे आरोप मेँ खतरनाक षड्यंत्र के तहत जेल की सजा, लक्षमणानंद
की हत्या, स्वामी नित्यानंद को फर्जी अश्लील सीडी के कारण
जेल और साध्वी प्रज्ञा को भी जेल मेँ अकल्पनीय यातनाएँ दी गयी और कई बार नार्को
टेस्ट ब्रेन मैपिँग किया गया )) जिससे जो संत जीवन जीना सिखाते थे और धार्मिक
ग्रंथ थे उन पर से लोगोँ की आस्थाऐँ और विश्वास कम होने लगा। जिसके कारण लोगोँ की
धार्मिक शिक्षा पूरी तरह से बाधित होने लगी और लोग अपने सनातन धर्म के वैज्ञानिक
महत्व को खोते चले गये। और अब तक हिँदुओँ का दैनिक जीवन मेँ उपयोगी धार्मिक ग्रंथ
तो सामान्य व्यक्ति की पहुँच से बाहर ही हो गया।
बिकाऊ
मीडिया जो पूरा दिन अण्डे, माँसाहार का समर्थन माँस से बने
उत्पादोँ का खुलकर प्रचार करता है और कर रहा है ये टीवी सीरियलोँ के माध्यम से
लोगोँ के घर मेँ घुस गया। सिरियलोँ के माध्यम से घर की महिलाओँ को और छोटे बच्चोँ
का मन बदल कर दूषित कर दिया। जैसे जब कोई झूठी बात भी बार बार किसी को कही जाए तो
वो सच लगने लगती है ठीक इसीप्रकार इन बिकाउ मिडिया चैनलोँ ने माँसाहार को पौष्टिक, सस्ता
और स्वादिष्ट भोजन बताया। अण्डे को तो शाकाहारी बताकर प्रचार किया और छोटे बच्चोँ, गर्भवती
महिलाओँ और बिमार लोगोँ का अनिवार्य भोजन बता दिया अण्डे को और एक दिन मेँ १०० बार
यही प्रचार दिखाते हैँ। आजकल जो माँसाहारी उत्पाद हैँ उनको शाकाहारी बता कर बेँचा
जा रहा है जैसे मैगी, लेस, चिप्स, बर्गर, पिज्जा
इत्यादि। इन पर कानूनी कार्यवाही भी नहीँ की जा सकती क्योँकी उस समय जो कानून बना
था उसमेँ अण्डे माँस शाकाहारी की श्रेणी मेँ रखा गया था जो आज भी चल रहा है।
इन्हीँ कारणोँ से हिँदू समाज तामसी प्रवृति का हो गया और फिर पैशाचिक यानी
माँसाहारी हो गया।
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