श्रावण संक्रांति में सूर्य कर्क राशि में प्रवेश करेंगे| संक्रांति के पुण्य काल समय दान, जप, पूजा पाठ इत्यादि का विशेष महत्व होता है इस समय पर किए गए दान पुण्य का कई गुना फल प्राप्त होता है| ऐसे में शंकर भगवान की पूजा का विशेष महत्व माना गया है| सूर्य का एक राशि से दूसरा राशि में प्रवेश संक्रांति कहलाता है| सूर्य का कर्क राशि में प्रवेश ही ‘कर्क संक्रांति या श्रावण संक्रांति कहलाता है| सूर्य के उत्तरायण होने को मकर संक्रांति तथा दक्षिणायन होने को कर्क संक्रांति कहते हैं| श्रावण से पौष मास तक सूर्य का उत्तरी छोर से दक्षिणी छोर तक जाना दक्षिणायन होता है| कर्क संक्रांति में दिन छोटे और रातें लंबी हो जाती हैं| शात्रों एवं धर्म के अनुसार उत्तरायण का समय देवतायओं का दिन तथा दक्षिणायन देवताओं की रात्री होती है| इस प्रकार, वैदिक काल से उत्तरायण को देवयान तथा दक्षिणायन के पितृयान कहा जाता रहा है| सावन संक्रांति समय काल में सूर्य पितरों का अधिपति माना जाता है| सावन संक्रांति अर्थात कर्क संक्रांति से वर्षा ऋतु का आगमन हो जाता है| देवताओं की रात्रि प्रारम्भ हो जाती है और चातुर्मास या चौमासा का भी आरंभ इसी समय से हो जाता है| यह समय व्यवहार की दृष्टि से अत्यधिक संयम का होता है क्योंकि इसी समय तामसिक प्रवृतियां अधिक सक्रिय होती हैं| व्यक्ति का हृदय भी गलत मार्ग की ओर अधिक अग्रसर होता है अत: संयम का पालन करके विचारों में शुद्धता का समावेश करके ही व्यक्ति अपने जीवन को शुद्ध मार्ग पर ले जा सकने में सक्षम हो पाता है| पुण्यात्माओं के लिए उत्तरायण मार्ग है…. भीष्म पितामह ने उत्तरायण होने तक प्राण रोक के रखे…लेकिन पापियों के लिए क्या उत्तरायण और क्या दक्षिणायन..उन को कोई फरक नही पङता.. धर्मात्मा के लिए शरीर छोड़ते तो सूर्य लोक चन्द्र लोक को प्राप्त होते…लेकिन पापी लोग मरते तो वासनाओ के अनुसार गीध बन जाते…कबूतर बन गए ….शरीर मिला तो ठीक नही तो नाली में बहे गए… ऐसे पापी के दुखो की गिनती नही… जिन की वासनाओ की पूर्ण तृप्ति नही हुयी ऐसे धर्मात्मा लोग दक्षिणायन में प्राण छोड़ते तो भी चंद्रलोक में जाते… चन्द्र लोक से फिर वापस आते और अपनी वासनाओ के अनुसार जनमते… वर्षा ऋतु से ‘आदान काल’ समाप्त होकर सूर्य दक्षिणायन हो जाता है और विसर्गकाल शुरु हो जाता है। इन दिनों में हमारी जठराग्नि अत्यंत मंद हो जाती है। वर्षाकाल में मुख्य रूप से वात दोष कुपित रहता है। अतः इस ऋतु में खान-पान तथा रहन-सहन पर ध्यान देना अत्यंत जरूरी हो जाता है।