मंदिर के तालाब या नदी में सिक्के क्यों प्रवाहित किये जाते हैँ? सनातन धर्म को मानने वाले लोग मंदिर प्रांगण में बने जलाशय में सिक्के प्रवाहित करते हैं। गंगा नदी में भी श्रद्घालु स्नान करने के बाद पैसे डालते हैं। जल में सिक्के डालने की परंपरा प्राचीन काल से चली आ रही है। उन दिनों तांबे के सिक्के हुआ करते थे। तांबा को शुद्घ धातु माना जाता है इसलिए इनका प्रयोग पूजा-पाठ में किया जाता है। तांबा सूर्य का धातु माना जाता है और यह हमारे शरीर के लिए भी आवश्यक तत्व है। तांबे का सिक्का पानी में डालकर हम सूर्य देव और अपने पितरों को यह बताते हैं कि हे देव और हे पितर हमने जल के माध्यम से अपने शरीर की रक्षा योग्य तांबा ग्रहण कर लिया है। हमें यह आपके माध्यम से प्राप्त हुआ है इसलिए आभार स्वरुप आप भी जल के माध्यम से तांबा ग्रहण करें। लाल किताब में भी सूर्य और पितरों को प्रसन्न करने के लिए तांबे को बहते जल में प्रवाहित करने का विधान बताया गया है। हालांकि अब तांबे के सिक्के नहीं होते हैं। स्टेनलेस स्टील के सिक्कों को उसी परंपरा के तौर पर अब लोग में पानी में प्रवाहित करते हैं। जबकि वैज्ञानिक दृष्टि यह कहती है कि जल में तांबे के सिक्के डालने से जल शुद्ध होता है और उस जल को पीने से अनेक बीमारियों का नाश स्वतः ही हो जाता है। ॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐॐ