छत्रपति शिवाजी महाराजका अदम्य साहस।
शिवाजी
भारत के महान योद्धा एवं रणनीतिकार थे जिन्होंने 1674 में पश्चिम
भारत में मराठा साम्राज्य की नींव रखी। उन्होंने कई
वर्ष औरंगज़ेब के मुगल साम्राज्य से संघर्ष किया। सन 1674
में रायगढ़ में उनका राज्याभिषेक हुआ और छत्रपति बने। शिवाजी
ने अपनी अनुशासित सेना एवं सुसंगठित प्रशासनिक इकाइयों की सहायता से एक योग्य एवं
प्रगतिशील प्रशासन स्थापित किया। उन्होने समर-विद्या में अनेक नवाचार किये तथा
छापामार युद्ध की नयी शैली (शिवसूत्र) विकसित की। उन्होने
प्राचीन हिन्दू राजनैतिक प्रथाओं तथा दरबारी शिष्टाचारों को पुनर्जीवित किया और
फारसी के स्थान पर मराठी एवं संस्कृत को राजकाज की भाषा बनाया। भारत
के स्वतन्त्रता संग्राम में बहुत से लोगों ने शिवाजी के जीवन चरित्र से प्रेरणा
लेकर भारत की स्वतन्त्रता के लिये अपना तन, मन धन न्यौछावर
कर दिया।
उत्तर
भारत में बादशाह बनने की होड़ खत्म होने के बाद औरंगजेब का ध्यान दक्षिण की तरफ
गया। वो शिवाजी की बढ़ती प्रभुता से परिचित था और उसने शिवाजी पर नियंत्रण रखने के
उद्देश्य से अपने मामा शाइस्ता खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। शाइस्का
खाँ अपने 1,50,000 फौज लेकर सूपन और चाकन के दुर्ग पर
अधिकार कर पूना पहुँच गया। उसने 3 साल तक मावल मे लूटमार की। एक रात
शिवाजी ने अपने 350 मावलों के साथ उन पर हमला कर दिया। शाइस्ता तो
खिड़की के रास्ते बच निकलने में कामयाब रहा पर उसे इसी क्रम में अपनी चार उँगलियों
से हाथ धोना पड़ा। शाइस्ता खाँ के पुत्र, तथा चालीस रक्षकों
और अनगिनत फौज का कत्ल कर दिया गया। इस घटना के बाद औरंगजेब ने शाइस्ता को दक्कन
के बदले बंगाल का सूबेदार बना दिया और शाहजादा मुअज्जम शाइस्ता की जगह लेने भेजा
गया।
इस
जीत से शिवाजी की प्रतिष्ठा में इजाफ़ा हुआ। 6 साल पहले
शास्ताखान ने अपनी 1,50,000 फ़ौज लेकर राजा शिवाजी का पूरा मुलुख
जलाकर तबाह कर दिया था। इसलिए उसका हर्जाना वसूल करने के लिये शिवाजी ने मुगल
क्षेत्रों में लूटपाट मचाना आरंभ किया।
सूरत
उस समय पश्चिमी व्यापारियों का गढ़ था और हिन्दुस्तानी मुसलमानों के लिए हज पर
जाने का द्वार। यह एक समृद्ध नगर था और इसका बंदरगाह बहुत महत्वपूर्ण था। शिवाजी
ने चार हजार की सेना के साथ छः दिनों तक सूरत के धनाढ्य व्यापारियों को लूटा और
फिर लौट गए। इस घटना का जिक्र डच तथा अंग्रेजों ने अपने लेखों में किया है। उस समय
तक यूरोपीय व्यापारी भारत तथा अन्य एशियाई देशों में बस गये थे। नादिर शाह के भारत
पर आक्रमण करने तक (1739) किसी भी य़ूरोपीय शक्ति ने भारतीय मुगल
साम्राज्य पर आक्रमण करने की नहीं सोची थी।
सूरत
में शिवाजी की लूट से खिन्न होकर औरंगजेब ने इनायत खाँ के स्थान पर गयासुद्दीन खां
को सूरत का फौजदार नियुक्त किया। और शहजादा मुअज्जम तथा उपसेनापति राजा जसवंत सिंह
की जगह दिलेर खाँ और राजा जयसिंह की नियुक्ति की गई। राजा जयसिंह ने बीजापुर के
सुल्तान, यूरोपीय शक्तियाँ तथा छोटे सामन्तों का सहयोग
लेकर शिवाजी पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में शिवाजी को हानि होने लगी और हार की
सम्भावना को देखते हुए शिवाजी ने सन्धि का प्रस्ताव भेजा।
जून
1665 में हुई इस सन्धि के मुताबिक शिवाजी 23 दुर्ग मुग़लों
को दे देंगे और इस तरह उनके पास केवल 12 दुर्ग बच
जाएंगे। इन 23 दुर्गों से होने वाली आमदनी 4
लाख हूण सालाना थी। बालाघाट और कोंकण के क्षेत्र शिवाजी को मिलेंगे पर उन्हें इसके
बदले में 13 किस्तों में 40 लाख हूण अदा
करने होंगे। इसके अलावा प्रतिवर्ष 5 लाख हूण का
राजस्व भी वे देंगे। शिवाजी स्वयं औरंगजेब के दरबार में होने से मुक्त रहेंगे पर
उनके पुत्र शम्भाजी को मुगल दरबार में खिदमत करनी होगी। बीजापुर के खिलाफ शिवाजी
मुगलों का साथ देंगे।
शिवाजी
को आगरा बुलाया गया जहाँ उन्हें लगा कि उन्हें उचित सम्मान नहीं मिल रहा है। इसके
खिलाफ उन्होंने अपना रोष भरे दरबार में दिखाया और औरंगजेब पर विश्वासघात का आरोप
लगाया। औरंगजेब इससे क्षुब्ध हुआ और उसने शिवाजी को नज़रकैद कर दिया और उनपर 5000
सैनिकों के पहरे लगा दिए गए।
कुछ
ही दिनो बाद[18 अगस्त 1666 को] शिवाजी को
मार डालने का इरादा औरंगजेब का था। लेकिन अपने अजोड साहस और युक्ति के साथ शिवाजी
और सम्भाजी दोनों इससे भागने में सफल रहे[19 अगस्त 1666]।
सम्भाजी को मथुरा में एक विश्वासी ब्राह्मण के यहाँ छोड़ शिवाजी बनारस, गया, पुरी
होते हुए सकुशल राजगढ़ पहुँच गए [2 सितम्बर 1666 ] इससे
मराठों को नवजीवन सा मिल गया। औरंगजेब ने जयसिंह पर शक करके उसकी हत्या विष देकर
करवा डाली। जसवंत सिंह के द्वारा पहल करने के बाद सन् 1668
में शिवाजी ने मुगलों के साथ दूसरी बार संधि की। औरंगजेब ने शिवाजी को राजा की
मान्यता दी। शिवाजी के पुत्र साम्भाजी को 5000 की मनसबदारी
मिली और शिवाजी को पूना, चाकन और सूपा का जिला लौटा दिया गया।
पर, सिंहगढ़ और पुरन्दर पर मुग़लों का अधिपत्य बना रहा। सन् 1670
में सूरत नगर को दूसरी बार शिवाजी ने लूटा। नगर से 132 लाख की
सम्पत्ति शिवाजी के हाथ लगी और लौटते वक्त उन्होंने मुगल सेना को सूरत के पास फिर
से हराया। इस प्रकार कई बार मुगलों के छक्के छुड़ाये
शिवाजी महाराज ने।
कैसे कैसे वीर सपूत हुए इस धरा
पर...जिन्होंने अपने जीवन काल में कभी दुश्मनों के आगे घुटने नही टेके बल्कि साम,दाम, दण्ड़
भेद की निति द्वारा दुश्मनों को हराया।
जय माँ भवानी
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