क्या
इस ब्रह्मांड में 84 लाख या उससे भी अधिक समानांतर पृथ्वियां हैं? क्या
इस ब्रह्मांड में हमारे धरती जैसी अन्य ग्रह है जहां पर मनुष्यों का आवास है?
हमारे
वेद और पुराण के संस्कृत श्लोकों में ब्रह्मांड से जुड़े अनेक रहस्य हैं। इन
श्लोकों का वास्तविक अर्थ कुछ और ही होता है। हम इसे कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के रूप
में देख सकते हैं। जिस तरह हर साफ्टवेर का अलग कॊड होता है और वह कॊड केवल निश्चित
प्रॊग्रामर ही लिख या पड़ सकता हैं, उसी
तरह संस्कृत श्लोकों को केवल ब्रह्म ज्ञानी ही लिख या पड़ सकते हैं। इन ब्रह्म
ज्ञानियों को ही ब्राह्मण कहा गया है जो अपने ज्ञान की गंगा से भारत की भूमी को
पवित्र बनाते थे।
हम
गणेश की पूजा करते समय “वक्रतुंड महाकाय कॊटी सूर्य समप्रभा” कहते हैं। अगर हम इस
श्लोक को डीकोड करने की कोशिश करे तो हमें पता चलता है इस ब्रह्मांड में कॊटी
सूर्य हैं। हमारी धरती जिस सूर्य के इर्द गिर्द घूमती है, वैसे
ही एक करॊड़ सूर्य इस ब्रहांड में हो सकते हैं। अगर एक करॊड़ अलग अलग सूर्य इस
ब्रह्मांड में हैं, तो उस सूर्य के इर्द गिर्द हमारी ही
जैसी एक धरती भी हो सकती है जहां हमारी ही तरह या हमसे भी उत्तन तकनीक वाली एक
सभ्यता बसती है।
अब
तो विज्ञान भी मानता है कि इस ब्रहांड में हम अकेले नहीं है। यद्यपी इन प्रश्नों
का उत्तर हमारे पुराणॊं में निहित है। भगवदगीता के 2.22
श्लोक में कहा गया है कि जैसे मनुश्य पुराने वस्त्र को त्याग कर नया वस्त्र पहनता
है उसी प्रकार जीवात्म भी अपने पुराने शरीर को त्याग कर नया शरीर पाता है। इस बात
को विज्ञान भी मानता है कि अणु-परमाणु अलग अलग रूप ले सकता है। विज्ञान चाहे कितना
भी उन्नत हो चुका हो लेकिन कॊई आज तक यह नहीं जान पाया कि जीवियों के हृदय में
ऊर्जा का स्रॊत क्या है।
पद्म
पुराण में कहा गया है कि धरती पर 8.4
मिलियन भिन्न भिन्न प्रकार की प्रजातियां 6
विभागों में बंटी हुई है। जलज, स्थावर, कीड़े, पंछि, पशु
और मानव यह 6 विभाग है। लेकिन क्या 8.4
मिलियन प्रजातिया केवल हमारी पृथ्वी पर ही है? क्या
यह संभव है? व्यावहारिक रूप से यह संभव नहीं है।
आधुनिक विज्ञान के अनुसंधानों से यह पता लगाया गया है कि लगभग 1.2
मिलियन प्रजातियां ही इस धरती पर रहती है और ये प्रजातिया दिन ब दिन विलुप्त होती
जा रही है। अगर ऐसा है तो बाकी 7.2 प्रजातिया कहां गयी?
अगर
8.4 मिलियन प्रजातियां जिसे 84
लाख यॊनी भी कहा जाता है वह सत्य है तो यह भी सत्य है कि इस ब्रहांड में हम अकेले
नहीं है। हमारे ही जैसी धरती इस ब्रह्मांड के अन्य आकाश गंगाओं में अपने सूर्य के
इर्द गिर्द घूमती है। इन धरतियों में जीव विकास अपने अलग अलग चरम में होगें। जहां
एक धरती पर जीव विकास शुरू हुआ होगा वहां दूसरी धरती पर वह अपने आखरी पड़ाव पर
होगा। हमने पुराणों से सुना है कि देवता समय यात्रा यानी टाईम ट्रावेल किया करते
थे। तो क्या वे किसी अन्य ग्रह से हमारे पृथ्वी पर आये थे? अगर
ऐसा है तो उस सभ्यता के पास हमसे भी आधुनिक तकनीक हो सकता है।
ऋग्वेद
में जिस 84 लाख यॊनी का उल्लेख है वह यह नहीं कहता
कि आप का जन्म इन सभी 84 लाख यॊनियों में होगा। वास्तव में 84 लाख
यॊनी का अर्थ 84 लाख धरतियां हो सकती है। कॊटी सूर्य के
इर्द गिर्द घूमने वाली एक करॊड़ पृथ्वी भी हो सकती है। ब्रह्मांड का आकार और उसकी
सीमा हमारे कल्पना से भी अधिक विशाल है। ब्रह्मांड के सामने हम बौने हैं। तकनीक
कितना भी आधुनिक हुआ हो लेकिन अब तक हम अपने आकाशगंगा से बाहर नहीं जा सके हैं फिर
अनंत ब्रह्मांड में क्या हो रहा है कैसे जाने?
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