दुनिया में सूक्ष्मदर्शक के आने से पहले ही सनातन भारत
में निषेचन का विज्ञान का अस्तित्व का सच 6000 वर्ष पुराने मंदिर के वास्तुकला से सामने
आया ।
भारत विज्ञान और
तकनीक की जननी है। इस बात का ठॊस साक्ष्य तमिलनाडू में स्थित ‘अरियतुरय’ मंदिर के
वास्तुकला में देखने को मिलता है। किंवदंतियों के अनुसार यह मंदिर ऋषि रॊमर और
मुकुंदन के काल का है जो करीब 6000 वर्ष पुराना हो सकता है। लेकिन 1000
वर्ष पूर्व में चॊल राजा कुंजरा ने इस मंदिर मॆं कई सारे बदलाव किये हैं। अगर हम
एक हज़ार साल को भी द्यान में रखते हैं तब भी हमें यह ज्ञात होता है कि निषेचन ( fertilization)
विज्ञान सदियो पूर्व से ही भारत में आस्तित्व में था। एक हज़ार वर्ष
पूर्व में सूक्ष्मदर्शक का अन्वेषण भी नहीं हुआ था।
इस मंदिर के वास्तुकला में मनुष्य के प्रजनन के विधान की चित्रकला को देखा जा सकता है। एक ग्रहण वाले चांद के जैसे दिखने वाले अंडाकार को सांप निगलने की यह वास्तुकला पुरुष के वीर्य और महिला के अंडे के निषॆचन को दिखाता है। यानी हज़ारों वर्ष पूर्व जब दुनिया में सूक्ष्मदर्शक का अस्तित्व ही नहीं था तबसे ही हमारे पूर्वज सृष्टि के रहस्य को भॆद कर उसे लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे थे।
इस मंदिर के वास्तुकला में मनुष्य के प्रजनन के विधान की चित्रकला को देखा जा सकता है। एक ग्रहण वाले चांद के जैसे दिखने वाले अंडाकार को सांप निगलने की यह वास्तुकला पुरुष के वीर्य और महिला के अंडे के निषॆचन को दिखाता है। यानी हज़ारों वर्ष पूर्व जब दुनिया में सूक्ष्मदर्शक का अस्तित्व ही नहीं था तबसे ही हमारे पूर्वज सृष्टि के रहस्य को भॆद कर उसे लोगों तक पहुंचाने का काम कर रहे थे।
इसी मंदिर में
एक औंधे मुहुं रखे गये कलश में एक मछली द्वारा ‘कली’ को उसके अंदर रखने का चिन्ह
है। पुराणॊं में उल्लेख है कि कुम्ब में भ्रूण का निषॆचन किया जाता था। महाभारत
में कुम्भ में ही कौरवों का निशॆचन हुआ था। प्राचीन काल में तमिल लोग अपने
पूर्वजों को मिट्टी के बड़े कुम्भ में दफ़नाया करते थे। मत्स्य को एक दैवी सितारा के
रूप में देखा जाता है। हिन्दुओं के संस्कृति में मत्स्य का बड़ा महत्व है। भारत के
अनेक कलाकृतियों में मत्स्य का चिह्न प्राचीन काल से ही पाया गया है। मत्स्य यानी
दैवी सितारा हमारे पूर्वज हैं, जो इस दुनिया में हमारे नाति पॊते के
रूप में में पुनः प्रवेश करते हैं। पुनर्जन्म के विचार को लोगों को दिखाने के लिए
इस वास्तुकला को मंदिर में खुदाया गया है।
हमारे उपनिषदों
में एक पूरा उपनिषद मनुष्य के जन्म के ऊपर लिखा गया है। ‘गर्भोपनिषद’ में किस
प्रकार एक आत्मा मनुष्य के शरीर में वीर्य और अंडे के संयोग से जन्म लेता है और
गर्भावस्ता से लेकर प्रसव तक की सभी विषयों को इसमें लिखा गया है। यह ग्रंथ करीब 3000 BC पहले
लिखा गया है लेकिन इससे भी पुराना हमारे वेदों में भी इन सभी बातों का उल्लेख है।
तात्पर्य यह है कि यह सारी तकनीक कई साल पुरानी हैं।
आधुनिक विज्ञान
एक शिशु की तरह है, जिसने मात्र अभी अभी अपने चक्षु खोले हैं।
हमारे वेद-पुराण-उपनिषदों में इन सभी बातों का वर्णन कई वर्ष पूर्व ही हो चुका है।
भारत के मंदिरों की वास्तुकला में भी विज्ञान छुपा है। बस हमारे आंखो पर पश्चिमी
लोगो द्वारा पहनाई गयी पट्टी है। उसे निकाल लेंगे तो सत्य दिख जायेगा।
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