खाड़ी देशों से आ रही संस्कृत शिक्षकों की मांग, जानिए विदेशी क्यों सीखना चाहते हैं ये भाषा।
 
                     अपने देश में संस्कृत भले ही उपेक्षा की शिकार हो, लेकिन वैश्विक स्तर पर कई देश इसे सीखना चाहते हैं। अपनी जड़ों को तलाश रहे इरान-इराक जैसे पश्चिमी एशियाई देशों और संस्कृत साहित्य में छिपे रहस्यों को समझने को आतुर यूरोपियन देशों में भी संस्कृत सीखने की ललक बढ़ी है। इन मुल्कों से संस्कृत के विद्वानों की मांग लगातार बढ़ी है। लेकिन पूरे देश के बच्चों को संस्कृत सिखाने की हो रही चर्चा के बीच खबर है कि भारत के पास संस्कृत के 'स्तरीय' शिक्षकों की कमी है और वह इस जरुरत को पूरा नहीं कर पा रहा है। संस्कृत भाषा के विकास के लिए काम कर रही संस्था संस्कृत भारती ने अपने स्तर पर कई देशों को संस्कृत शिक्षक उपलब्ध कराये हैं, लेकिन वह भी बढ़ती जरुरतों को पूरा करने में समर्थ नहीं है।
कई भाषाओं का आधार है संस्कृत
                 जानकारी के मुताबिक पर्शियन मूल के लोगों का मानना है कि उनकी संस्कृति के विकास का आधार संस्कृत भाषा थी। आज भी उनकी भाषा में भी संस्कृत के शब्द बड़ी मात्रा में मिलते हैं। यही कारण है कि वे अपने मूल का सही विस्तार क्रम समझने के लिए संस्कृत को पढ़ना चाहते हैं। इसी प्रकार मलेशिया, इंडोनेशिया और सऊदी अरब जैसे देशों से भी संस्कृत विद्वानों की मांग बढ़ी है। आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति में उपलब्ध ज्ञान पर शोध कर रहे पश्चिमी देशों में भी संस्कृत विद्वानों की मांग बढ़ी है, लेकिन यह आवश्यकता पूरी नहीं हो पा रही है।
संस्कृत भारती के पास भी केवल सौ शिक्षक
                भारत सरकार की प्रस्तावित शिक्षा नीति में संस्कृत को अधिक महत्व दिए जाने के प्रयास जारी हैं। नई शिक्षा नीति को संस्कृत पर सलाह देने के लिए एन. गोपालस्वामी की अध्यक्षता में गठित समिति ने सरकार को स्कूली शिक्षा से लेकर व्यावसायिक शिक्षा तक, हर स्तर पर संस्कृत सीखने की सुविधा उपलब्ध कराने की सलाह दी है। संस्कृत विद्वान पद्मश्री चमूकृष्ण शास्त्री इस समिति के सदस्य थे।

                     लेकिन स्थिति यह है कि संस्कृत भारती के पास भी संस्कृत बोलने में योग्य शिक्षकों की भारी कमी है। एक अधिकारी के मुताबिक संस्था ने अपने स्तर पर कई देशों में संस्कृत शिक्षक उपलब्ध कराए हैं। लेकिन आज की स्थिति में उसके पास भी संस्कृत में दक्ष शिक्षकों की कमी है और उसके पास तकरीबन सौ शिक्षक ही उपलब्ध हैं। जबकि संस्था भारत के ही कई शहरों में संस्कृत भाषा सीखने के लिए कई नियमित और अंशकालिक कक्षाएं चला रही है।
रोडमैप बना लेकिन काम नहीं
                     उत्तराखंड के बाद हिमाचल ने भी संस्कृत को अपनी दूसरी राजभाषा का दर्जा दे दिया है। संस्कृत का प्रसार करने के लिए केंद्र सरकार को एक दस वर्षीय एजेंडा सौंपा गया था, जिसे स्वीकार कर लिया गया है। लेकिन इस पर जमीनी अमल अब तक शुरु नहीं किया गया है। त्रिस्तरीय भाषा फार्मूले में भी स्कूली बच्चों को संस्कृत के रुप में तीसरी भाषा पढ़ने का विकल्प देने की बात कही गई है। विचार है कि हिंदी भाषा का दक्षिणी राज्यों में विरोध होता है, जबकि संस्कृत का नहीं। ऐसे में संस्कृत को भारत की संपर्क भाषा में विकसित करने पर भी विचार किया जा रहा है क्योंकि यह सभी भारतीय भाषाओं के मूल में है और इसे सीखना अंग्रेजी की तुलना में सहज होगा।
संस्कृत का विश्व सम्मेलन नवंबर में
                    संस्कृत भारती नौ नवंबर से 11 नवंबर के बीच विश्व संस्कृत सम्मेलन का आयोजन कर रही है। इस कार्यक्रम में 17 देशों से लगभग चार हजार लोग शामिल होंगे। इसमें संस्कृत भाषी परिवारों और शिक्षकों का समन्वय किया जाएगा। नेपाल, न्यूजीलैंड और रुस इसमें प्रेक्षक की भूमिका में शामिल होंगे। कार्यक्रम के समापन सत्र को उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू संबोधित करेंगे।