भगवान
पर भरोसा।
एक पुरानी सी
इमारत में था वैद्यजी का मकान था। पिछले हिस्से में रहते थे और अगले हिस्से में
दवाख़ाना खोल रखा था। उनकी पत्नी की आदत थी कि दवाख़ाना खोलने से पहले उस दिन के लिए
आवश्यक सामान एक चिठ्ठी में लिख कर दे देती थी। वैद्यजी गद्दी पर बैठकर पहले भगवान
का नाम लेते फिर वह चिठ्ठी खोलते। पत्नी ने जो बातें लिखी होतीं, उनके
भाव देखते , फिर उनका हिसाब करते। फिर परमात्मा से प्रार्थना करते कि हे भगवान !
मैं केवल तेरे ही आदेश के अनुसार तेरी भक्ति छोड़कर यहाँ दुनियादारी के चक्कर में
आ बैठा हूँ। वैद्यजी कभी अपने मुँह से किसी रोगी से फ़ीस नहीं माँगते थे। कोई देता
था, कोई नहीं देता था किन्तु एक बात निश्चित थी कि ज्यों ही उस दिन के
आवश्यक सामान ख़रीदने योग्य पैसे पूरे हो जाते थे, उसके बाद वह
किसी से भी दवा के पैसे नहीं लेते थे चाहे रोगी कितना ही धनवान क्यों न हो।
एक दिन वैद्यजी
ने दवाख़ाना खोला। गद्दी पर बैठकर परमात्मा का स्मरण करके पैसे का हिसाब लगाने के
लिए आवश्यक सामान वाली चिट्ठी खोली तो वह चिठ्ठी को एकटक देखते ही रह गए। एक बार
तो उनका मन भटक गया। उन्हें अपनी आँखों के सामने तारे चमकते हुए नज़र आए किन्तु
शीघ्र ही उन्होंने अपनी तंत्रिकाओं पर नियंत्रण पा लिया। आटे-दाल-चावल आदि के बाद
पत्नी ने लिखा था, “बेटी का विवाह 20 तारीख़ को है, उसके
दहेज का सामान।” कुछ देर सोचते रहे फिर बाकी चीजों की क़ीमत लिखने के बाद दहेज के
सामने लिखा, ” यह काम परमात्मा का है, परमात्मा जाने।”
एक-दो रोगी आए
थे। उन्हें वैद्यजी दवाई दे रहे थे। इसी दौरान एक बड़ी सी कार उनके दवाखाने के
सामने आकर रुकी। वैद्यजी ने कोई खास तवज्जो नहीं दी क्योंकि कई कारों वाले उनके
पास आते रहते थे। दोनों मरीज दवाई लेकर चले गए। वह सूटेड-बूटेड साहब कार से बाहर
निकले और नमस्ते करके बेंच पर बैठ गए। वैद्यजी ने कहा कि अगर आपको अपने लिए दवा
लेनी है तो इधर स्टूल पर आएँ ताकि आपकी नाड़ी देख लूँ और अगर किसी रोगी की दवाई
लेकर जाना है तो बीमारी की स्थिति का वर्णन करें।
वह साहब कहने
लगे “वैद्यजी! आपने मुझे पहचाना नहीं। मेरा नाम कृष्णलाल है लेकिन आप मुझे पहचान
भी कैसे सकते हैं? क्योंकि मैं 15-16 साल बाद आपके दवाखाने पर आया हूँ। आप
को पिछली मुलाकात का हाल सुनाता हूँ, फिर आपको सारी
बात याद आ जाएगी। जब मैं पहली बार यहाँ आया था तो मैं खुद नहीं आया था अपितु ईश्वर
मुझे आप के पास ले आया था क्योंकि ईश्वर ने मुझ पर कृपा की थी और वह मेरा घर आबाद
करना चाहता था। हुआ इस तरह था कि मैं कार से अपने पैतृक घर जा रहा था। बिल्कुल
आपके दवाखाने के सामने हमारी कार पंक्चर हो गई। ड्राईवर कार का पहिया उतार कर
पंक्चर लगवाने चला गया। आपने देखा कि गर्मी में मैं कार के पास खड़ा था तो आप मेरे
पास आए और दवाखाने की ओर इशारा किया और कहा कि इधर आकर कुर्सी पर बैठ जाएँ। अंधा
क्या चाहे दो आँखें और कुर्सी पर आकर बैठ गया। ड्राइवर ने कुछ ज्यादा ही देर लगा
दी थी।
एक छोटी-सी
बच्ची भी यहाँ आपकी मेज़ के पास खड़ी थी और बार-बार कह रही थी, ” चलो
न बाबा, मुझे भूख लगी है। आप उससे कह रहे थे कि बेटी थोड़ा धीरज धरो, चलते
हैं। मैं यह सोच कर कि इतनी देर से आप के पास बैठा था और मेरे ही कारण आप खाना
खाने भी नहीं जा रहे थे। मुझे कोई दवाई खरीद लेनी चाहिए ताकि आप मेरे बैठने का भार
महसूस न करें। मैंने कहा वैद्यजी मैं पिछले 5-6 साल से
इंग्लैंड में रहकर कारोबार कर रहा हूँ। इंग्लैंड जाने से पहले मेरी शादी हो गई थी
लेकिन अब तक बच्चे के सुख से वंचित हूँ। यहाँ भी इलाज कराया और वहाँ इंग्लैंड में
भी लेकिन किस्मत ने निराशा के सिवा और कुछ नहीं दिया।”
आपने कहा था, “मेरे
भाई! भगवान से निराश न होओ। याद रखो कि उसके कोष में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं है।
आस-औलाद, धन-इज्जत, सुख-दुःख, जीवन-मृत्यु
सब कुछ उसी के हाथ में है। यह किसी वैद्य या डॉक्टर के हाथ में नहीं होता और न ही
किसी दवा में होता है। जो कुछ होना होता है वह सब भगवान के आदेश से होता है। औलाद
देनी है तो उसी ने देनी है। मुझे याद है आप बातें करते जा रहे थे और साथ-साथ
पुड़िया भी बनाते जा रहे थे। सभी दवा आपने दो भागों में विभाजित कर दो अलग-अलग
लिफ़ाफ़ों में डाली थीं और फिर मुझसे पूछकर आप ने एक लिफ़ाफ़े पर मेरा और दूसरे पर
मेरी पत्नी का नाम लिखकर दवा उपयोग करने का तरीका बताया था।
मैंने तब बेदिली
से वह दवाई ले ली थी क्योंकि मैं सिर्फ कुछ पैसे आप को देना चाहता था। लेकिन जब
दवा लेने के बाद मैंने पैसे पूछे तो आपने कहा था, बस ठीक है।
मैंने जोर डाला, तो आपने कहा कि आज का खाता बंद हो गया है। मैंने कहा मुझे आपकी बात
समझ नहीं आई। इसी दौरान वहां एक और आदमी आया उसने हमारी चर्चा सुनकर मुझे बताया कि
खाता बंद होने का मतलब यह है कि आज के घरेलू खर्च के लिए जितनी राशि वैद्यजी ने
भगवान से माँगी थी वह ईश्वर ने उन्हें दे दी है। अधिक पैसे वे नहीं ले सकते।
मैं कुछ हैरान
हुआ और कुछ दिल में लज्जित भी कि मेरे विचार कितने निम्न थे और यह सरलचित्त वैद्य
कितना महान है। मैंने जब घर जा कर पत्नी को औषधि दिखाई और सारी बात बताई तो उसके
मुँह से निकला वो इंसान नहीं कोई देवता है और उसकी दी हुई दवा ही हमारे मन की
मुराद पूरी करने का कारण बनेंगी। आज मेरे घर में दो फूल खिले हुए हैं। हम दोनों
पति-पत्नी हर समय आपके लिए प्रार्थना करते रहते हैं। इतने साल तक कारोबार ने फ़ुरसत
ही न दी कि स्वयं आकर आपसे धन्यवाद के दो शब्द ही कह जाता। इतने बरसों बाद आज भारत
आया हूँ और कार केवल यहीं रोकी है।
वैद्यजी हमारा
सारा परिवार इंग्लैंड में सेटल हो चुका है। केवल मेरी एक विधवा बहन अपनी बेटी के
साथ भारत में रहती है। हमारी भान्जी की शादी इस महीने की 21
तारीख को होनी है। न जाने क्यों जब-जब मैं अपनी भान्जी के भात के लिए कोई सामान
खरीदता था तो मेरी आँखों के सामने आपकी वह छोटी-सी बेटी भी आ जाती थी और हर सामान
मैं दोहरा खरीद लेता था। मैं आपके विचारों को जानता था कि संभवतः आप वह सामान न
लें किन्तु मुझे लगता था कि मेरी अपनी सगी भान्जी के साथ जो चेहरा मुझे बार-बार
दिख रहा है वह भी मेरी भान्जी ही है। मुझे लगता था कि ईश्वर ने इस भान्जी के विवाह
में भी मुझे भात भरने की ज़िम्मेदारी दी है।
वैद्यजी की
आँखें आश्चर्य से खुली की खुली रह गईं और बहुत धीमी आवाज़ में बोले, ” कृष्णलाल
जी, आप जो कुछ कह रहे हैं मुझे समझ नहीं आ रहा कि ईश्वर की यह क्या माया
है। आप मेरी श्रीमती के हाथ की लिखी हुई यह चिठ्ठी देखिये।” और वैद्यजी ने चिट्ठी
खोलकर कृष्णलाल जी को पकड़ा दी। वहाँ उपस्थित सभी यह देखकर हैरान रह गए कि ”दहेज का
सामान” के सामने लिखा हुआ था ” यह काम परमात्मा का है, परमात्मा
जाने।”
काँपती-सी आवाज़
में वैद्यजी बोले, “कृष्णलाल जी, विश्वास कीजिये कि आज तक कभी ऐसा नहीं
हुआ कि पत्नी ने चिठ्ठी पर आवश्यकता लिखी हो और भगवान ने उसी दिन उसकी व्यवस्था न
कर दी हो। आपकी बातें सुनकर तो लगता है कि भगवान को पता होता है कि किस दिन मेरी
श्रीमती क्या लिखने वाली हैं अन्यथा आपसे इतने दिन पहले ही सामान ख़रीदना आरम्भ न
करवा दिया होता परमात्मा ने। वाह भगवान वाह! तू महान है तू दयावान है। मैं हैरान
हूँ कि वह कैसे अपने रंग दिखाता है।”
वैद्यजी ने आगे
कहा,सँभाला है, एक ही पाठ पढ़ा है कि सुबह परमात्मा का
आभार करो, शाम को अच्छा दिन गुज़रने का आभार करो, खाते समय उसका
आभार करो, सोते समय उसका आभार करो।
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